दूसरी कथा – आप कौन हैं ?
बात उस समयकी है, जब श्रीरामजी सीताजीके साथ एकान्तस्थान में सुखपूर्वक बैठे हुए थे, उसी समय माता सुमित्रा उनके पास आर्यों और कहने लगी- हे राजीवलोचन राम ! मैं आपसे विनय करती हूँ कि मुझे कुछ उपदेश प्रदान करें, ताकि मेरा अज्ञान नष्ट हो जाय। श्रीरामने पहले तो क्षणभर विचार किया और फिर बड़े ही विनयसे बोले- माँ ! पहले तो मुझे यह बतायें कि आप कौन हैं ? इस समय आप अपने भवनमें जायें और स्वस्थचित्त होकर मेरे इस प्रश्नपर विचार करके इसका उत्तर मुझे कल बतलायें, तब में आपको उपदेश दूंगा’का त्वं चेति यदादी मां पश्चादुपदिशामि ते। (00 मनो0 2104) रामका यह वचन सुनकर सुमित्राजी विस्मित हो उठी और उस वचनपर विचार करते हुए चुपचाप अपने भवनमें चली आयीं। वे सोचने लगीं कि रामने मुझसे यही पूछा है कि ‘मैं कौन हूँ’ तो इसका उन्हें क्या उत्तर दूँ? आखिर में देवी हूँ या दानवी हूँ, राक्षसी हूँ या मानुषी हूँ? वास्तवमें रामने जो पूछा है, वह प्रश्न बड़ा ही जटिल है। इसका उत्तर बताना और भी कठिन है। यदि मैं रामसे जाकर कह दूँ कि मैं मानुषी हूँ तो यह सटीक उत्तर नहीं बनता; क्योंकि इस शरीरने नाटकके पात्रकी तरह अनेक योनियाँ प्राप्त की हैं तो फिर में मानुषी कैसे ? मानुषी, राक्षसी, पाशविक आदि ये उपाधियाँ तो देहकी हैं, जीवात्माकी नहीं यह देह नाशवान् पदार्थ है, इससे यही मालूम होता है कि मैं इस देहसे भिन्न कोई और ही है, पर मैं कौन है, यह मैं नहीं जानती। विचार करनेपर मुझे यही निश्चित होता है कि जैसे भगवान् अनेक रूप धारण करके आते हैं, ठीक उन्होंकी तरह मैं भी हैं, वे भी
मत्स्य-कूर्मादि अवतार धारणकर आते हैं और जाते हैं, फिर हममें और भगवान्में क्या अन्तर है ? अन्तर यही है कि वे स्वाधीन हैं और हम उनके अधीन हैं, हममें और उनमें कोई अन्तर नहीं है, केवल अंशांशिभाव है। जब हम और
भगवान् एक ही हैं * तो अब मैं रामसे जाकर क्या पूछें, मुझे उनके प्रश्नने ही तत्त्वज्ञान करा दिया। इस प्रकार तत्त्वका निर्णय हो जानेपर रात्रि बिताकर माता सुमित्रा श्रीरामके पास पहुँचीं और जैसे उन्हें तत्त्वबोध हुआ था, वह सब कह सुनाया और कहा कि हे राम ! अब मुझे कुछ नहीं पूछना है। श्रीराम हँसकर बोले- माता! सचमुच आपको प्रश्नका सही समाधान प्राप्त हो गया है। जो आपको उत्तर प्राप्त हुआ है, वही वास्तविक स्थिति है। अब आप जीवन्मुक्त हो गयीं। आनन्दपूर्वक अपने भवनमें निवास करें। सुमित्राजीका मोह नष्ट हो गया था। अब वे कमलदलकी भाँति असम्पृक्त होकर श्रीराम-गुणगानमें निरत रहने लगीं।
Story 2 – Who are you?
It is a matter of that time, when Shri Ramji was sitting happily in solitude with Sitaji, at the same time Mother Sumitra started coming to him and said – Hey Rajivlochan Ram! I request you to give me some teachings, so that my ignorance can be destroyed. Shriram first thought for a moment and then said very politely – Mother! First of all tell me who are you? At this time, you go to your house and after thinking about this question of mine in a healthy mind, tell me the answer tomorrow, then I will preach to you. (00 Mano 0 2104) Sumitraji was surprised to hear this word of Ram and silently went to her house thinking about that word. She started thinking that Ram has asked me ‘Who am I’, so what answer should I give to him? In the end, am I a goddess or a demon, a demon or a human being? Actually what Ram has asked, that question is very complex. It is even more difficult to answer this. If I go to Ram and tell him that I am a human being, it will not be a correct answer; Because this body has attained many births like a character in a drama, then how can I be human? Manushi, Rakshasi, Pashvik etc. these titles are of the body, not of the soul, this body is a perishable substance, from this it is known that I am someone other than this body, but I do not know who I am. On reflection, I am sure that just as God comes in many forms, I am also like him, he too.
Matsya-Kurmadi come and go in the form of incarnations, then what is the difference between us and God? The difference is that they are independent and we are under them, there is no difference between us and them, only partiality. when we and
God is only one * so what should I ask Ram now, his question itself gave me philosophy. In this way, after the matter was decided, mother Sumitra reached Shri Ram after spending the night and narrated all that as she had understood the matter and said that O Ram! Now I don’t want to ask anything. Shri Ram smiled and said – Mother! Really you have got the right solution to the question. The reply you received is the actual situation. Now you are free of life. Live happily in your house. Sumitraji’s fascination was destroyed. Now she became unattached like a lotus flower and started singing the praises of Shri Ram.