सिंहिनीका दूध !

loneliness man sea

छत्रपति शिवाजी महाराज समर्थ गुरु रामदासस्वामीके | भक्त थे। समर्थ भी सभी शिष्योंसे अधिक उन्हें प्यार करते। शिष्योंको भावना हुई कि शिवाजीके राजा। हरिके कारण समर्थ उनसे अधिक प्रेम रखते हैं। समर्थने तत्काल उनका संदेह दूर कर दिया।

समर्थ शिष्यमण्डलीके साथ जंगलमें गये। सभी रास्ता भूल गये और समर्थ एक गुफामें जाकर उदरशूलका बहाना करके लेट गये।

इधर शिवाजी महाराज समर्थके दर्शनार्थ निकले। उन्हें पता चला कि वे इस जंगलमें कहीं हैं। खोजते एक गुफाके पास आये गुफामें पीड़ासे विह्वल शब्द सुनायी पड़ा। भीतर जाकर देखा तो साक्षात् गुरुदेव ही विफलतासे करवटें बदल रहे हैं। शिवाजीने हाथ जोड़कर उनकी वेदनाका कारण पूछा। समर्थने कहा—’शिवा, भीषण उदरपीड़ासे विकल हूँ।’ ‘महाराज! इसकी दवा ?’

शिवा! इसकी कोई दवा नहीं, रोग असाध्य है। ही एक ही दवा काम कर सकती है, पर जाने दो…”

नहीं, गुरुदेव! निःसंकोच बतायें, शिवा गुरुको स्वस्थ किये बिना चैन नहीं ले सकता।’

‘मिहिनीका दूध और वह भी ताजा निकाला हुआ, पर शिवबा ! वह सर्वथा दुष्प्राप्य है।’

पासमें पड़ा गुरुदेवका तुंबा उठाया और समर्थको प्रथम करके शिवाजी तत्काल सिंहिनीकी खोजमें निकल पड़े।

कुछ दूर जानेपर एक जगह दो सिंह शावक दीख शिवाने सोचा निश्चय ही यहाँ इनकी माताआयेगी। संयोगसे वह आ भी गयी। अपने बच्चोंके पास अनजाने मनुष्यको देख वह शिवापर टूट पड़ी और अपने जबड़े में उनकी नटई पकड़ ली।

शिवा कितने ही शूर-वीर हाँ, पर यहाँ तो उन्हें सिंहिनीका दूध जो निकालना था। उन्होंने धीरज धारण किया और हाथ जोड़कर वे सिंहिनीसे विनय करने लगे

“माँ मैं यहाँ तुम्हें मारने या तुम्हारे बच्चोंको उठा ले जानेको नहीं आया। गुरुदेवको स्वस्थ करनेके लिये तुम्हारा दूध चाहिये, उसे निकाल लेने दो गुरुदेवको दे आऊँ, फिर भले ही तुम मुझे खा जाना।’- शिवाजीने ममताभरे हाथसे उसकी पीठ सहलायी।

मूक प्राणी भी ममतासे प्राणी के अधीन हो जाते हैं। सिंहिनीका क्रोध शान्त हो गया। उसने शिवाका गला छोड़ा और बिल्लीकी तरह उन्हें चाटने लगी।

मौका देख शिवाजीने उसकी कोखमें हाथ डाल दूध निचोड़ तुंबा भर लिया और उसे नमस्कार कर बड़े आनन्दके साथ वे निकल पड़े।

इधर सभी शिष्य भी गुरुसे आ मिले गुरु उन्हें साथ ले एक आर्य दिखाने पीछेके मार्ग से जंगलमें बड़े शिवा बड़े आनन्दसे आगे बढ़ रहे थे कि समर्थ शिष्योंसहित उसके पीछे पहुँच गये। उन्होंने आवाज लगायी।

शिवाने पीछे मुड़कर गुरुदेवको देखा। पूछा ‘उदर शूल कैसा है?’

‘आखिर तुम सिंहिनीका दूध भी ले आये, धन्य हो शिवबा तुम्हारे जैसा एकनिष्ठ शिष्य रहते गुरुको पीड़ा ही क्या रह सकती है।’-समर्थने सिरपर हाथ रखते हुए कहा। गो0 न0 बै0 (‘समर्थांचे सामर्थ्य’)

छत्रपति शिवाजी महाराज समर्थ गुरु रामदासस्वामीके | भक्त थे। समर्थ भी सभी शिष्योंसे अधिक उन्हें प्यार करते। शिष्योंको भावना हुई कि शिवाजीके राजा। हरिके कारण समर्थ उनसे अधिक प्रेम रखते हैं। समर्थने तत्काल उनका संदेह दूर कर दिया।
समर्थ शिष्यमण्डलीके साथ जंगलमें गये। सभी रास्ता भूल गये और समर्थ एक गुफामें जाकर उदरशूलका बहाना करके लेट गये।
इधर शिवाजी महाराज समर्थके दर्शनार्थ निकले। उन्हें पता चला कि वे इस जंगलमें कहीं हैं। खोजते एक गुफाके पास आये गुफामें पीड़ासे विह्वल शब्द सुनायी पड़ा। भीतर जाकर देखा तो साक्षात् गुरुदेव ही विफलतासे करवटें बदल रहे हैं। शिवाजीने हाथ जोड़कर उनकी वेदनाका कारण पूछा। समर्थने कहा—’शिवा, भीषण उदरपीड़ासे विकल हूँ।’ ‘महाराज! इसकी दवा ?’
शिवा! इसकी कोई दवा नहीं, रोग असाध्य है। ही एक ही दवा काम कर सकती है, पर जाने दो…”
नहीं, गुरुदेव! निःसंकोच बतायें, शिवा गुरुको स्वस्थ किये बिना चैन नहीं ले सकता।’
‘मिहिनीका दूध और वह भी ताजा निकाला हुआ, पर शिवबा ! वह सर्वथा दुष्प्राप्य है।’
पासमें पड़ा गुरुदेवका तुंबा उठाया और समर्थको प्रथम करके शिवाजी तत्काल सिंहिनीकी खोजमें निकल पड़े।
कुछ दूर जानेपर एक जगह दो सिंह शावक दीख शिवाने सोचा निश्चय ही यहाँ इनकी माताआयेगी। संयोगसे वह आ भी गयी। अपने बच्चोंके पास अनजाने मनुष्यको देख वह शिवापर टूट पड़ी और अपने जबड़े में उनकी नटई पकड़ ली।
शिवा कितने ही शूर-वीर हाँ, पर यहाँ तो उन्हें सिंहिनीका दूध जो निकालना था। उन्होंने धीरज धारण किया और हाथ जोड़कर वे सिंहिनीसे विनय करने लगे
“माँ मैं यहाँ तुम्हें मारने या तुम्हारे बच्चोंको उठा ले जानेको नहीं आया। गुरुदेवको स्वस्थ करनेके लिये तुम्हारा दूध चाहिये, उसे निकाल लेने दो गुरुदेवको दे आऊँ, फिर भले ही तुम मुझे खा जाना।’- शिवाजीने ममताभरे हाथसे उसकी पीठ सहलायी।
मूक प्राणी भी ममतासे प्राणी के अधीन हो जाते हैं। सिंहिनीका क्रोध शान्त हो गया। उसने शिवाका गला छोड़ा और बिल्लीकी तरह उन्हें चाटने लगी।
मौका देख शिवाजीने उसकी कोखमें हाथ डाल दूध निचोड़ तुंबा भर लिया और उसे नमस्कार कर बड़े आनन्दके साथ वे निकल पड़े।
इधर सभी शिष्य भी गुरुसे आ मिले गुरु उन्हें साथ ले एक आर्य दिखाने पीछेके मार्ग से जंगलमें बड़े शिवा बड़े आनन्दसे आगे बढ़ रहे थे कि समर्थ शिष्योंसहित उसके पीछे पहुँच गये। उन्होंने आवाज लगायी।
शिवाने पीछे मुड़कर गुरुदेवको देखा। पूछा ‘उदर शूल कैसा है?’
‘आखिर तुम सिंहिनीका दूध भी ले आये, धन्य हो शिवबा तुम्हारे जैसा एकनिष्ठ शिष्य रहते गुरुको पीड़ा ही क्या रह सकती है।’-समर्थने सिरपर हाथ रखते हुए कहा। गो0 न0 बै0 (‘समर्थांचे सामर्थ्य’)

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