संत त्यागराजके जीवनकी एक घटना है। उनकी राम-भक्ति और दिव्य संगीत-माधुरीसे जिस समय समस्त दक्षिण भारत भागवतरसमें निमग्न हो रहा था, उस समय तंजौर नरेशके मनमें संतके दर्शनकी इच्छा जाग पड़ी। वह त्यागराजको अपनी राजसभामें बुलाना चाहता था, पर त्यागराज नहीं गये। उन्होंने कहलवा दिया कि ‘मेरा मन रामभजनमें ही सुख मानता है; उसे राजवैभव और धनोपार्जनकी कोई आवश्यकता नहीं है।’ उन्होंने राजाके निमन्त्रणकी उपेक्षा कर दी।
एक दिन आधी रातको भावविभोर होकर संत त्यागराज अपने मनको समझा रहे थे कि ‘हे मन! सुन्दर राजमार्ग रहते हुए तुम गलियोंका आश्रय क्यों लेते हो। मुक्तिके लिये भक्तिमार्ग सुलभ है। कुमार्गमें पड़कर क्योंनष्ट होते हो।’ इस भावका सरस पद वे अपने सितारपर गा रहे थे कि सहसा चौंक पड़े; उन्हें ऐसा लगा कि उनके सिवा कोई दूसरा व्यक्ति भी उपस्थित है। उनका अनुमान ठीक निकला तंजौर-नरेश छतमें छेद करके उनका संगीत सुन रहे थे। वे शापके भयसे सामने आ गये और चरणोंपर गिरकर क्षमा-याचना की।
‘महाराज ! मेरा कल्याण हो गया। आपने ठीक ही कहा है कि हे सुन्दर राजा ! राजपथ छोड़कर तुम रहस्यमार्गसे मेरे घरमें क्यों आ गये।’ राजाके मुखसे अपने पदका विलक्षण अर्थ सुनकर तथा उसके सच्चे भावसे प्रसन्न होकर त्यागराजने उन्हें पद सुनाया। राजा निहाल हो गये संतकी रामभक्ति-माधुरीसे। उनका सचमुच कल्याण हो गया।
– रा0 श्री0
There is an incident in the life of Saint Tyagaraja. At a time when the whole of South India was engrossed in Bhagavataras by his devotion to Rama and divine music, at that time the Tanjore king had a desire to see the saint. He wanted to invite Tyagaraja to his court, but Tyagaraja did not go. He got it said that ‘my mind finds happiness only in Rambhajan’; He has no need for royalty and wealth. He ignored the invitation of the king.
One day in the middle of the night Saint Tyagaraja was explaining to his mind that ‘O mind! Why do you take shelter of lanes when there is a beautiful highway. The path of devotion is accessible for salvation. Why do you get destroyed by falling in bad path? He was singing this hymn on his sitar that suddenly he was shocked; He felt that there was someone else present besides him. His guess turned out to be correct – the king of Tanjore was listening to his music through a hole in the roof. He came forward in fear of curse and fell at his feet and begged for forgiveness.
‘King ! I got well. You have rightly said that O beautiful king! Why did you leave the royal path and come to my house through a secret path?’ Hearing the unique meaning of his post from the king’s mouth and being pleased with his true spirit, Tyagaraja recited the post to him. The king became happy with the devotion of Saint Ram-Madhuri. He really got well.