प्रातः वंदन
भीतर का राग जगाओ तो कुछ बात बने
ध्यान का चिराग जलाओ तो कुछ बात बने
जल जाये अहंकार दमक उठो कुंदन से
ऐसी इक आग जलाओ तो कुछ बात बने
बाहर की होली के रंग कहां टिकते हैं
शाश्वत के फाग रचाओ तो कुछ बात बने
बोते बबूल अगर बींधेंगे कांटे ही
खुशबू का बाग लगाओ तो कुछ बात बने
टूटें सब जंजीरें अंतर-पट खुल जायें
भीतर वह राग जगाओ तो कुछ बात बने
गैरों की यारी में खोते ही पतियारा
प्रीतम से लाग लगाओ तो कुछ बात बने
भीतर का राग जगाओ तो कुछ बात बने
ध्यान का चिराग जलाओ तो कुछ बात बने
जल जाये अहंकार दमक उठो कुंदन से
ऐसी इक आग जलाओ तो कुछ बात बने।
होलीका दहन 🙏