नित्य रास विहार है – यहाँ निकुञ्ज में…
अनादिकाल से “युगल” मिल रहे हैं… एक क्षण का भी इनका वियोग नही है… फिर भी इन्हें लगता है कि “अभी तो अच्छे से निहारा भी नही” ।
“मिले रहत मानों कबहुँ मिले ना”
प्रेम का एक छोटा-सा “अणु” हम जीवों में विद्यमान रहता है ।
…इसलिये तो हम जीवों के प्रेम में भी यह स्थिति देखी गयी है कि… हम को प्रेम में लगता है… कि दिनों दिन रातों रात बीत गए… फिर भी प्रेयसि या प्रेमी से अच्छे से मुलाकात भी नही हुयी ।
अब विचार कीजिये… अणु भर प्रेम भी हम जीव की ये दशा बना देता है… तो “युगलवर” तो साक्षात् प्रेम ही हैं…पूर्ण प्रेम हैं…सम्पूर्ण प्रेम इन्हीं में हैं…इन्हीं से ही इधर उधर अणु के रूप में फैला है… तो उन प्रेममूर्ति युगल की तड़फ़ अगर ऐसी है… तो आश्चर्य क्या ?
ये रास विहार नित्य है…यहाँ कौन ईश्वर ? और कौन भक्त ?
यहाँ “प्रेम” ही ईश्वर है… वही सबको संचालित कर रहा है…सर्वत्र प्रेम का ही राज्य है… इस निकुञ्ज का राजा प्रेम है प्रजा भी प्रेम है… कुञ्ज – वन – नदी सब प्रेम हैं ।
यहाँ प्रेम के फूल खिलते हैं…यहाँ प्रेम की सुरभित हवा चलती है ।
यहाँ की धरती प्रेम है…यहाँ का आकाश प्रेम है ।
यहाँ सुबह प्रेम की होती हैं – तो साँझ भी प्रेम का ही होता है ।
चलिये – उसी प्रेम की दुनिया में…जहाँ सब कुछ प्रेममय है ।
हृदय में सिंहासन रखिये प्रेम का…प्रेम मूर्ति युगल को विराजमान कीजिये… और “नित्य रास विहार” का आनन्द लीजिये ।🙏
🙏प्यारी तन श्याम, श्यामा तन प्यारौ !!
प्रतिबिम्बित तन अरस-परस दोउ, एक पलक दिखियत नहीं न्यारौ !!
ज्यौं दरपन में नैंन नैंन में, नैंन सहित दरपन दिखवारौ !!
“श्रीभट्ट” जोट की अति छबि ऊपर, तन मन धन न्यौछावरि डारौ !!
“दोनों एक हैं…प्यारी के तन में प्यारे हैं…और प्यारे के तन में प्यारी !”
क्या अद्भुत जोरी है !… एक प्राण दो देही हैं…देखने में लगते हैं “दो” हैं…पर हैं “एक” ही ।
नयनों की धन्यता इसी में है जिन नयनों ने इस छवि को जी भर कर छका है…आहा ! सखी ! देखो तो… ये दोनों सुन्दरता की हद्द हैं ।
सुन्दरता भी लज्जित हो जाए इन्हें देखकर, ऐसी रूप राशि है इनकी ।
सखियों की वार्ता चल रही थी… तभी रंगदेवी सखी आगे आईँ और हाथ जोड़कर बोलीं… हे युगलवर ! कुञ्ज – निकुञ्ज की एक अभिलाषा है…अब इनकी अभिलाषा भी तो आप ही पूरी करोगे !
क्या अभिलाषा है कुञ्ज निकुञ्जों की ? युगलवर ने सखी से पूछा ।
नवीन कुञ्जों का निर्माण किया है… और “वृन्दा सखी” का कहना है कि आप उन कुञ्ज में अपने चरण रख देंगे और एक बार निहार लेंगे तो ये धन्य अनुभव करेंगे…रंगदेवी ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की थी ।
बहुत सुन्दर सखी ! पर मैं अपनी प्यारी श्रीजी की आज्ञा तो ले लूँ !
इतना कहकर श्याम सुन्दर ने श्रीजी की ओर देखा… .
🙏”श्रीश्यामाजू विपिन पधारो !!
विपिनराज नव कुंजन वन में, वन विहार रस केलि प्रसारो !!”
🙏हे प्यारी ! मेरी और सब सखियों की इच्छा है कि आप नव निकुञ्ज में हमारे साथ विहार करो… ये सब वन – कुञ्ज – निकुञ्ज सब सखी रूप हैं… इनको बस आप एक बार निहार लो…ये धन्य हो जायेंगें… और हमारी “लीला रस” का विस्तार भी हो जायेगा ।
श्याम सुन्दर मुस्कुराते हुये बोल रहे हैं – हे श्रीजी ! देखो इन पक्षियों को, इन लताओं को… इन खिले हुए पुष्पों को… ये कितनी उत्सुकता से हमारे प्रतीक्षा कर रहे हैं… चलो ! प्यारी ! चलो !
हाँ हाँ प्यारे ! मेरी भी तो यही अभिलाषा है…मैं भी आतुर हूँ इन नव निकुञ्ज के दर्शन के लिये…पधारो प्यारे !
श्रीजी ने श्याम सुन्दर का हाथ पकड़ा और बड़ी उत्सुकता से चलीं नव निकुञ्ज का दर्शन करने के लिये ।🙏
“युगलवर” चल रहे हैं श्रीधाम वृन्दावन की भूमि में… रंगदेवी ने छत्र सम्भाला है… इन्दुलेखा और विशाखा अगल बगल में चँवर ढुराते हुए चल रही हैं…चित्रा और तुंगविद्या छड़ी लेकर चल रही हैं… पान व इत्र का पात्र ललिता सखी के हाथों में है…
आहा ! क्या दिव्य झाँकी है…युगल प्रेम रस से पगे हुए… झूमते हुए… उमंग से भरे वन कुञ्ज की शोभा को निरखते हुए चल रहे हैं ।
निकुञ्ज की भूमि मणि मण्डित है… नाना प्रकार के मणियों से खचित दिव्य भूमि है… …
चलते हुये युगलवर का ध्यान भूमि की ओर गया…
बस इन मणियों में स्वयं का प्रतिविम्ब दिखाई दे रहा था…अब तो दृष्टि वहीं टिक गयी…वन की शोभा देखना ही भूल गए…आहा ! हम इतने सुन्दर हैं ! यही विचार मन में कौंधनें लगा युगल के… मन्त्रमुग्ध से बस नीचे ही देख रहे हैं ।
तभी…ललिता सखी युगल के सामनें आईँ… और बड़े प्रेम से बोलीं
क्या बात है युगलवर ! क्या कोई वस्तु खो गयी है ? जो आप बार-बार नीचे की ओर ही देख रहे हो ?
अरे ! नही सखी ! हम तो बस मार्ग की सुन्दर रचना को देख रहे हैं…
श्याम सुन्दर ने कहा ।
हम सब समझती हैं प्यारे ! आप युगल, मार्ग की रचना को नही… अपने ही प्रतिविंब को देख कर मोहित हुए जा रहे हो… ।
और हमने ये भी देख लिया है… कि आप एक दूसरे के रूप को प्रतिबिंव में निहार रहे हो…ये कहते हुए सखियाँ हँसी ।
पर अब हमारी एक प्रार्थना है कि – वृन्दा सखी दुःखी है…आप उनकी “नव कुञ्ज” की रचना तो देख लो…ललिता सखी ने ही कहा ।
श्री जी ने जैसे ही सुना “वृन्दा सखी” दुःखी है… सुनते ही उनका हृदय करुणा से भर गया… और ऊपर की ओर देखते हुये युगलवर चलने लगे थे ।
लताओं से भरा हुआ कुञ्ज है… मार्ग में फूल बिछे हुए हैं… सब सखियाँ आनन्दित हैं… सब लताएँ झुक रही हैं बारबार… युगल को छूना चाहती हैं…जब श्रीजी एक लता का स्पर्श करती हैं… तो बाकी सब लताएँ झुक कर मार्ग को रोक देती हैं… मानो वो सब कह रही हैं…कि हमें भी छूओ… हमें भी आपके “मृदुल कर” का स्पर्श चाहिये ।
आगे पक्षियों का गायन सुनाई देने लगा था…तोता, सारिका, कोयल मधुर स्वर में… “युगल मन्त्र” गा रहे थे…
श्री राधा ! श्री राधा!…इन नामों का उच्चारण कोयली बड़ा सुन्दर कर रही थी… वातावरण बड़ा दिव्य हो रहा था निकुञ्ज का ।
तभी आगे – शीतल हवा चलने लगी… सामने सरोवर है… छोटे-छोटे कई सरोवर हैं…उनमें कमल खिले हुए हैं…हवा से उन कमल के पराग उड़ने लगे… और देखते ही देखते… पुष्प पराग की झड़ी लग गयी… मार्गों में पराग ही पराग छा गए थे ।
सुगन्ध ही सुगन्ध से पूरा निकुञ्ज महक उठा था ।
तभी… श्री जी एकाएक बैठ गयीं…
क्या हुआ प्यारी ! श्याम सुन्दर घबरा गए…
नयनों को मींच रही थीं श्रीजी… ..
बताओ ना ! क्या हुआ ? श्याम सुन्दर परेशान हो उठे थे ।
श्रीजी को इस तरह देखकर सखियाँ काँप गयीं… कुञ्ज निकुञ्ज काँप गया… पक्षी जन दुःखी हो गए… क्या हुआ ? क्या हुआ ?
“कमल फूल” का पराग श्रीजी के नयनों में चला गया था ।
प्यारी ! नयनों को खोलो .. श्याम सुन्दर आग्रह करने लगे थे… मेरी बात मानो ! पहले नयनों को तो खोलो !…पर श्रीजी नयन खोल नही पा रही थीं ।
श्याम सुन्दर समीप गए… दो ऊँगली से श्रीजी के पलकों को धीरे से उठाया और फूँक मारी…
बस पराग चला गया… श्री जी प्रसन्न होती हुई बोलीं – “अब ठीक हो गया”… श्री जी को प्रसन्न देखा तो श्याम सुन्दर प्रसन्न हो गए… युगल को प्रसन्न देखा तो सखियाँ प्रसन्न हो गयीं…पक्षी प्रसन्न हो गए… कुञ्ज निकुञ्ज सब प्रसन्न हो गए ।
श्याम सुन्दर ने प्रसन्नता के अतिरेक में अपनी प्यारी श्रीजी को अपने बाहु पाश में कस लिया था ।
सखियाँ झूम उठी थीं…आज “जय जयकार” निकुञ्ज ही कर रहा था ।
🙏राधे कृष्ण राधे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण राधे राधे !!
राधे श्याम राधे श्याम, श्याम श्याम राधे राधे !!
🙏पूरा निकुञ्ज वन यही गाते हुये नाच रहा था आज ।
शेष “रस चर्चा” कल –
🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩
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