सब कुछ नया नया है यहाँ…निकुञ्ज में कुछ भी पुराना नही है ।
ये रसोपासना है… साधकों ! आप किसी भी साधना में जाइए… ज्ञान, कर्म, भक्ति, योग… प्रारम्भ में तो आपका मन लगेगा… पर धीरे-धीरे मन बोर होगा… मन को जबरदस्ती लगाना पड़ेगा… क्यों कि मन की गति बड़ी विचित्र है… मन जल्दी बोर हो जाता है… एक ही चीज को दोहराना पड़े तो मन बोर हो जाएगा… मन नया नया चाहता है… पर रसोपासना में मन बोर नही होगा… नही होता… क्यों कि यहाँ सब नया है…हर दिन… नही नही… हर क्षण नया है यहाँ… यहाँ के युगल नये नये हैं…ये निकुञ्ज नया नया है… यहाँ की “लीला रस” नयी नयी है…
रसोपासना के रसिक सन्तों नें कहा – “नयो नेह”…यहाँ का प्रेम नया है… और हर क्षण नव नूतन है यहाँ का नेह – यानि प्रेम ।
“नव रंग”…यहाँ का रंग नया है… ऐसा रंग आपको किसी उपासना में नही मिलेगा… इस रंग को अपने मन में रंग दो… फिर देखो… किसी में हिम्मत नही कि आपके मन से उस रंग को निकाल कर अलग कर सके…जैसे पिघले हुए लाख में कोई भी रंग मिला दो… फिर लाख और रंग को आप अलग नही कर सकते ।
ऐसे ही “निकुञ्ज भाव सिन्धु” में डूबते हुये…जब आपका मन पिघलने लगे… तब उस पिघले हुए मन में युगल के प्रेम का रंग मिला दो… बस फिर देखो ! मन उस रसोपासना को छोड़ ही नही पायेगा… चित्त रम जाएगा… चित्त प्रेममय हो जाएगा… आपके चित्त में जितने पाप ताप के संस्कार होंगे सब पिघल कर बह जाएंगे ।
आइये ! चलिये उसी “प्रेम देश” में… जहाँ रंग ही रंग बरस रहा है ।
सब उस रंग में भींग गए हैं… हमारा भी प्रयास यही होना चाहिये कि हम भी भींगें… मन को भिंगो दें… डुबो दें ।
देखो तो – कितने नये-नये हैं हमारे युगलवर !
नव पीताम्बर नवल चूनरी, *नई नई बूंदन भीजत गोरी !!*
चलिये ! निकुञ्ज में, देर मत कीजिये… वैसे भी बहुत देर कर दी है ।
होली खेलकर थक कर बैठ गए हैं श्याम सुन्दर… पर प्रिया जु थकी नही हैं ।
वो श्याम सुन्दर को देखकर मुस्कुरा रही हैं…।
रंग से सने हुये… बड़े अद्भुत लग रहे हैं… और प्रिया जु की छवि तो ऐसी लग रही है… जैसे – गोरे लाल ।
पर ये क्या… श्रीजी के हाथों में रंगदेवी ने गुलाब के फूलों की एक सुन्दर सी छड़ी दे दी… उस छड़ी में गुलाब ही गुलाब हैं ।
अन्य सखियों के हाथों में गुलाब के फूलों की पंखुड़ी… की सुन्दर सी डलिया है… सब सखियाँ लेकर खड़ी हो गयीं हैं ।
और श्रीजी गुलाब की छड़ी लेकर स्वयं त्रिभंगी बनकर छड़ी हिलाते हुये श्याम सुन्दर को देख रही हैं ।
🙏हे प्यारी ! अब मुझे तो पहले से भी ज्यादा डर लग रहा है आपसे… क्यों इस तरह हमें देख रही हो ? श्याम सुन्दर ने श्रीजी से कहा ।
हँसी श्रीजी… अभी से ही डर रहे हो… अरे लाल जी ! अभी तो खेल शुरू भी नही हुआ… श्रीजी इतना कहते हुए फिर फूलों की छड़ी को हिलाने लगी थीं ।
🙏”हे राधिके ! आपके हाथ में ये छड़ी… और फिर आपकी ये “भाव भंगिमा” भी कुछ बदली बदली सी लग रही है… मुझे डर लग रहा है कि कहीं आप अपनी सखियों के साथ मिलकर “…श्याम सुन्दर कितने भयभीत हो रहे थे ।
अब श्यामा जु की हँसी छूट गयी… अरे ! लालन ! मेरे साथ जितनी सखियाँ हैं… आपके साथ भी तो उतनी ही हैं ..।
🙏हे प्राण वल्लभे श्री राधा ! सच कह रही हो तुम… संख्या में तो हम दोनों के पास बराबर सखियाँ हैं… पर जब खेल शुरू हो जाता है… तब मेरे साथ की सखियाँ भी आपके साथ मिल कर आपको ही जिता देती हैं… सब आपकी ही हैं… मेरी कोई नही है ।
ये सुनकर श्रीजी खूब हँसीं… तब आगे बढ़कर ललिता सखी ने कहा…
अब आगे देखो… इस बार कुछ नया ही होगा… प्यारे !
बस इसके बाद फिर होरी प्रारम्भ हो जाती है…
“श्यामा जु खेलत रंग भरी , रंग हो हो हो हो हो होरी !!
भयो विपिन सब राग रंग मय, कौतुक बरन्यो जात न री !! “
हे सखियों ! मेरे मन में एक अभिलाषा उदय हो रही है…
धीरे से अपने दल की सखियों से श्रीजी ने कहा ।
रंगदेवी ने आगे बढ़कर पूछा – आपके मन में क्या अभिलाषा है ?
बस यही कि मैं अपने प्रियतम के मुखारविन्द में रंग लगाना चाहती हूँ… और अच्छे से लगाना चाहती हूँ ।
सब सखियाँ विचार करने लगीं… फिर श्रीजी से बोलीं –
🙏हे स्वामिनी ! इसके लिये तो आप हमारे बीच में छुप जाओ… हम प्यारे श्याम सुन्दर को बातों में लगाकर आपके पास ले आयेंगी तभी आप उनको अच्छे से रंग लगा देना…रंगदेवी ने ये बात कही ।
उसी समय ललिता सखी, केशर को गाढ़ा घोलकर एक चाँदी की कटोरी में ले आयीं… इसे आप छुपा लो… और श्रीजी ! आप स्वयं भी हमारे मध्य छुप जाओ… ललिता सखी ने कहा ।
श्रीजी सखियों के मध्य छुप गयीं ।
तभी ललिता सखी जोर से चिल्लाकर बोलीं…
🙏श्याम सुन्दर ! आप तो ऐसे खड़े हो जैसे अब होरी खेलनी ही नही है ।
नही सखी ! होरी तो खेलनी है… पर श्रीजी दिखाई नही दे रहीं… कहाँ चली गयीं ? श्याम सुन्दर इधर उधर खोजने लगे थे ।
श्रीजी थक गयी हैं ना… इसलिये थोड़ी देर के लिये उनको विश्राम दे रही हैं हम सखियाँ । ललिता सखी ने कहा ।
तो मैं वही तो पूछ रह्यो हूँ… कि कहाँ विश्राम ले रही हैं श्रीजी ?
श्याम सुन्दर क्षण में ही परेशान हो उठे थे… श्रीजी को न देखकर ।
इधर आओ प्यारे ! सखियों ने श्रीजी के बहाने से अपने पास जैसे ही बुलाया श्याम सुन्दर को… और वे जैसे ही आये… अवसर अच्छा था… श्रीजी निकलीं बाहर… और श्याम सुन्दर को पकड़ कर… केशर अच्छे से उनके गालों में मल दिया… श्याम सुन्दर अचम्भे से खड़े देखते ही रह गए… कुछ समझ में नही आया कि अब क्या करें ? क्यों कि लाल ही लाल तो आज इन “लाली” ने “लाल” को ही कर दिया था…सखियाँ का हँसते हँसते बुरा हाल हो गया ।
तब श्रीजी ने दौड़कर अपने लाल जु को हृदय से लगा लिया था ।
पर सखियों ने भी कह दिया… ना ! भले ही श्रीजी ने तुम्हें छोड़ दिया है… पर हम नही छोड़ेंगी… रंगदेवी ने आगे बढ़ते हुए बड़ी ठसक से कहा था ।
क्या करोगी तुम लोग ? श्याम सुन्दर डरते हुए बोले ।
अभी बताती हैं…इतना कहते हुए… सखियों की भीड़ ने श्याम सुन्दर को पकड़ लिया… और दूर ले गयीं… श्याम सुन्दर चिल्लाते रहे… पर… उनकी पीताम्बरी फेंक दी… उनके वस्त्र फेंक दिए…
और…
हे प्रिया जु ! ये नई सखी है…रंगदेवी ने अपनी हँसी छुपाई ।
बड़ी भोरी हैं हमारी श्रीजी… अच्छा ! कहाँ नाम है याको ?
याको नाम है ? ललिता सखी बताने लगी थीं… पर श्रीजी ने कहा… क्या ये बोल नही सकती ?
हाँ हाँ बोल सकती है ! बोलो – क्या नाम है ?
“श्यामा सखी”…सखियाँ हँसी… श्री जी ! इसका नाम है श्यामा सखी… ये आपको नृत्य दिखाएगी… बहुत अच्छा नृत्य जानती है ये…
और वो श्यामा सखी बस नाचने लगी… जैसे ही नाचने लगी…
श्रीजी पास में गयीं… और बोलीं… श्यामा सखी ! तेरे हाथ, तेरे पाँव इतने कठोर क्यों हैं ?
श्यामा सखी बोली… आपके वियोग में हे श्रीजी ! मैं बहुत दूर से चलके आयी हूँ… इसलिये मेरे पांव कठोर है गए ।
श्रीजी ने पकड़ कर अपने हृदय से लगा लिया…
श्यामा सखी ! तेरी छाती इतनी सूख क्यों गयी है ?
हे स्वामिनी ! तुम्हारे वियोग में रो रोकर मेरी छाती सूख गयी है ।
श्री जी ने श्यामा सखी की चुनरी उतार के फेंकी… अरे ! ये तो श्याम सुन्दर खड़े हैं !
श्रीजी आनन्दित हो उठीं… और हँसते हुए बोलीं… बस यही बाकी रह गया था प्यारे !… और बड़े प्रेम से प्यारे के कपोल को चूम लिया ।
अब चलो मेरे साथ नाचो… श्रीजी ने कहा ।
नही… मैं थक गया हूँ… श्याम सुन्दर बोले ।
नही… मेरे साथ तो आपको नाचना ही पड़ेगा… और इतनी जल्दी होरी में हार गए ?…आप तो सकल कला निपुण हो प्यारे !
जब श्रीजी का अति उत्साह देखा… तो ये “नटवर नागर” भी कहाँ रुकने वाले थे… दोनों युगल सरकार उन्मुक्त होकर नित्य करने लगे ।
रंग अबीर की वर्षा युगल पर करनी शुरू कर दी थी सखियों ने ।
पर, श्याम सुन्दर के श्रम बिन्दु झलकने लगे थे माथे पर… उसे देखकर श्रीजी नें अपनी ओढ़नी से बड़े प्रेम से पोंछ दिया… और प्यारे को अपने हृदय से लगाकर बहुत देर तक रखा… सखियाँ इस झाँकी का दर्शन करती हैं…और मुग्ध होकर उन्मुक्त नृत्य करती हैं ।
हो हो हो हो होरी है… हो हो हो हो होरी है…
🙏यही ध्वनि निकुञ्ज में गूँज रही है ।🙏
शेष “रस चर्चा” कल –
🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩
🌷🌻🌷🌻🌷🌻🌷
Everything is new here… nothing is old in Nikunj.
This is Rasopasana… Sadhaks! You go into any spiritual practice…knowledge, karma, devotion, yoga…in the beginning your mind will be engaged…but gradually the mind will get bored…the mind will have to be forced…because the speed of the mind is very strange…the mind gets bored quickly. Yes… If you have to repeat the same thing, mind will get bored… Mind wants new… But in cooking, mind will not get bored… It does not happen… Because everything is new here… Every day… No no… Every moment is new here… The couples here are new… This Nikunj is new… The “Leela Rasa” here is new…
Saints who are fond of Rasopasana said – “Nyo Neh”… the love here is new… and every moment is new, the Neh means love.
“Nav Rang”…the color here is new…you will not find such a color in any worship…color this color in your mind…then see…no one has the courage to separate that color from your mind…like Mix any color in the melted lac… then you cannot separate the lac and the colour.
Drowning in “Nikunj Bhav Sindhu” like this… when your mind starts melting… then mix the color of couple’s love in that melted mind… just look again! The mind will not be able to leave that cooking… the mind will be happy… the mind will become loving… all the sins and rituals of heat in your mind will melt away.
Come on! Let’s go to the same “love country”… where colors are raining.
Everyone is drenched in that colour… Our effort should also be to drench… drench the mind… drown it.
Look how new our couple are!
New pitambar naval chunri, *new new drops also fair!!*
Move ! In Nikunj, don’t be late… anyway it’s too late.
Shyam Sundar has sat down tired after playing Holi… but Priya is not tired.
She is smiling seeing Shyam Sundar….
Stained with colours… they are looking amazing… and Priya Ju’s image is looking like… like – fair red.
But what is this… Rangdevi gave a beautiful stick of rose flowers in the hands of Shreeji… There are only roses in that stick.
Other friends have beautiful bunches of rose petals in their hands… all the friends have stood up with them.
And Shreeji is looking at Shyam Sundar waving the stick by taking a rose stick himself as Tribhangi.
🙏 Oh dear! Now I am scared of you even more than before… Why are you looking at us like this? Shyam Sundar said to Shreeji.
Laughter Shreeji… You are getting scared from now itself… Hey Lal ji! The game hasn’t even started yet… Saying this Shreeji again started shaking the stick of flowers.
🙏”Hey Radhike! This stick in your hand… and then your “Bhav Bhangima” also seems to be a bit changed… I am afraid that somewhere you are together with your friends”… Shyam Sundar was getting so scared. .
Now Shyama Ju has lost her laughter… Hey! Lalan! The number of friends I have with you, you have the same number of friends.
🙏 O Prana Vallabhe Shri Radha! You are telling the truth… we both have equal number of friends… but when the game starts… then my friends also join hands with you and make you win… all are yours… I have no one .
Shreeji laughed a lot hearing this… Then Lalita Sakhi went ahead and said…
Now look ahead… this time there will be something new… dear!
Just after this the hori starts again…
“Shyama ju khelat rang bhari, rang ho ho ho ho ho hori!!
Bhayo vipin sab raag rang mey, kutuk barnyo jaat na ri !! ,
Hey friends! A desire is rising in my heart…
Shreeji said softly to his teammates.
Rangdevi went ahead and asked – What is the desire in your mind?
Just that I want to apply color to the face of my beloved… and I want to apply it well.
All the friends started thinking… then said to Shreeji –
🙏 Oh mistress! For this, you hide among us… We will bring the lovely Shyam Sundar to you by engaging in talks, only then you paint him well… Rangdevi said this.
At the same time, Lalita’s friend brought saffron in a silver bowl after mixing it thickly… you hide it… and Shreeji! You yourself hide among us… Lalita Sakhi said.
Shreeji hid among the friends.
That’s why Lalita Sakhi shouted loudly…
🙏 Shyam Sundar! You are standing as if you don’t have to play hori now.
No friend! Hori has to be played… but Shreeji is not visible… where has she gone? Shyam Sundar started searching here and there.
Shreeji is tired, isn’t he? That’s why we friends are giving him rest for a while. Lalita Sakhi said.
So I am asking the same thing… Where is Shreeji taking rest?
Shyam Sundar was upset at the moment itself… not seeing Shreeji.
Come here dear! As soon as the friends called Shyam Sundar to them on the pretext of Shreeji… and as soon as he came… the occasion was good… Shreeji came out… and holding Shyam Sundar… rubbed saffron nicely on his cheeks… Shyam Sundar stood surprised. Kept watching… could not understand what to do now? Because red is red, today this “Lali” had made “Lal” itself… The friends were in a bad condition while laughing.
Then Shreeji ran and hugged his red yoke to his heart.
But the friends also said… no! Even though Shreeji has left you… but we will not leave you… Rangadevi had said with a big thud while moving forward.
what will you guys do Shyam Sundar spoke in fear.
Now she tells… Having said this much… the crowd of friends caught Shyam Sundar… and took him away… Shyam Sundar kept on shouting… but… threw his Pitambari… threw away his clothes…
And…
Hey Priya Ju! She is a new friend… Rangadevi hid her laughter.
Our Shreeji is very Bhori… Ok! Where is the name Yako?
What is your name? Lalita sakhi started telling… but Shreeji said… can’t she speak?
Yes yes can speak! Speak – what is the name?
“Shyama Sakhi”… The friends laughed… Mr. Her name is Shyama Sakhi… She will show you dance… She knows dance very well…
And that Shyama Sakhi just started dancing… as soon as she started dancing…
Shreeji went nearby… and said… Shyama Sakhi! Why are your hands and feet so hard?
Shyama Sakhi said… Hey Shreeji in your separation! I have come from a long distance… That’s why my feet are hard.
Shreeji held it close to his heart…
Shyama friend! Why is your chest so dry?
O mistress! My chest has dried up crying in your separation.
Shri ji took off Shyama Sakhi’s chunri and threw it… Hey! Here Shyam Sundar is standing!
Shreeji became happy… and smilingly said… this was all that was left dear!… and kissed the beloved’s cheek with great love.
Now come dance with me… Shreeji said.
No… I am tired… Shyam Sundar said.
No… you will have to dance with me… and you got lost in Hori so soon?… You are a master of all arts, dear!
When Shreeji’s enthusiasm was seen… then where was this “Natwar Nagar” also going to stop… Both the couple started doing government daily without being free.
The friends had started raining the colors of Abir on the couple.
But, Shyam Sundar’s labor points were visible on his forehead… Seeing him, Shreeji wiped him with his cover with great love… and kept the beloved close to his heart for a long time… The friends see this tableau… and are freed after being mesmerized. dances.
Ho ho ho ho ho hori hai… ho ho ho ho hori hai…
🙏 This sound is echoing in Nikunj.🙏
The rest of “Juice Discussion” tomorrow –
🚩Jai Shri Radhe Krishna🚩
🌷🌻🌷🌻🌷🌻🌷