( निकुञ्ज की “अकथ कथा” )
🙏इस निकुञ्ज विलास का कोई अंत नही है…अनन्त काल से चल रही है…प्रतिपल नवला किशोरी की नयी कांति है…और श्याम सुन्दर का नेह नवीन है…एक दूसरे का मुख देखते हुए वे प्रीति रस में ऐसे पड़े हैं कि अपना सब कुछ खो चुके हैं…हद्द है ये इस प्रेम की, कि अपनी ईश्वरता भी भुला चुके हैं…एक पास, एक साथ रहते हुए वे मृदुहास करते हैं…यही तो अकथ कथा है ।
🙏संयोग में वियोग है…दोनों मिले हैं…अंग अंग मिले हैं…मन मिले हैं…आत्मा मिली हुयी है…फिर भी लगता है…कि मिलन अभी हुआ ही नही है…इसी को तो अकथ कथा कहते हैं ।
सखियाँ नित उठाती हैं…पर उन्हें भी युगलवर नये नये लगते हैं ।
निकुञ्ज नित नूतन रूप बदलता रहता है…और इतना ही नही…प्रातः काल से रात्रि तक सभी समय विभिन्न आकृतियों में नित्य विहार फलता फूलता है ।
क्या अद्भुत है ये निकुञ्ज की रसोपासना ! प्रातः काल ही सखियाँ निकुञ्ज के द्वार पर जाकर वीणा बजाती हैं…गाती हैं…युगल को जगाती हैं…अब ये लाल ललना रात भर सोये भी कहाँ थे !
सारी रात जागते ही तो बीती थी इनकी । एक दूसरे को देखने में एक दूसरे में खोने में… पूरी रात बिता दी थी ।
सखियाँ दर्शन करती हैं…अलकें बिखरी हुयी हैं…पलक अलसाये हैं…नेत्र उनिदें हैं…वाणी अटपटी है… उफ़ ! क्या झाँकी है ।
सभी रसिकों ने इसी तरह का चिन्तन किया है…और ये चिन्तन ब्रह्मानन्द के चिन्तन से कई गुना अद्भुत और दिव्य है ।
सखियाँ ही ख्याल नही रखती युगल का… ख्याल तो श्रीजी को भी है सखियों का…और क्यों न हो…सखियाँ हैं तभी तो युगल की ये प्रेम केलि है…सखियाँ ही तो इस लीला विलास को आगे बढ़ाती हैं ।🙏
प्रियाप्रियतम की लीलाएँ अनन्त हैं…निकुञ्ज में नई नई ऋतुएँ आती हैं…और लीलाओं को नवीनता प्रदान कर जाती हैं ।
कोई क्रम नही हैं…और क्रम हो भी नही सकता… वर्षा के बाद बसन्त भी आ सकता है…या फिर बसन्त के बाद सीधे शरद का आगमन भी हो तो कोई आश्चर्य नही है…क्यों कि सब कुछ निकुञ्ज में सखियों की अभिलाषा से ही होता है ।
कभी दिवारी मनाई जाती है…तो दिवारी में निकुञ्ज में शतरंज की बिसात भी बिछ जाती हैं…दोनों खेलते हैं…पर श्रृंगार रस है… श्रृंगार रस की भूमि है निकुञ्ज… इसलिये जीतती यहाँ श्रीजी ही हैं…और हारते लाल जु ही है…पर हार कर भी अपने आपको धन्य अनुभव करते हैं ये रसिक शेखर… यही तो है अकथ कथा… प्रेम की ।
निकुञ्ज में काल का कोई प्रभाव नही है…दिन भर में छ: ऋतुएँ तो कई बार आकर चली भी जाती हैं…और हद्द ये है कि अलग अलग कुञ्जों में अलग अलग ऋतुएँ वास ही करती हैं ।
बसन्त फिर आ गया…राग रागिनी बदल गए… चल पड़े धमार… पिचकारी की फुहारें…विचित्र रंग उपस्थित हो गया… एकाएक ।
क्यों कि काल की यहाँ गति नही है…निकुञ्ज प्रेम देश है…और प्रेम में उत्सव अनिवार्य है…जहाँ प्रेम होगा वहाँ उत्सव होगा ही ।
उत्सव होगा तो त्यौहार भी होंगे…और त्यौहार नित्य है…और त्यौहारों का सम्बन्ध ऋतुओं से हैं…।
प्रिया प्रियतम थक कर कुञ्ज में चले जाते हैं…तो सखियाँ तुरन्त भोग पदार्थ लेकर उपस्थित हो जाती हैं…नही नही…इन्हें रसोई बनानी नही पड़ती…ये तो सहज भावना से संचालित देश है ।
चलिये…उसी भाव मय देश में…जहाँ सब कुछ प्रेममय है ।
मैं कहना चाहता हूँ…जो मैं देखता हूँ… पर कह नही पाता…
और कह पाऊँगा भी नही…कौन पतियावे ?🙏
अब थक गए हैं युगलसरकार सखी ! इनको “ब्यारु भोग” कराओ ।
रात्रि के भोग को “ब्यारु” कहा जाता है ।
सुन्दर गहनों से सजी हैं श्रीजी… अजी ! गहना क्या… अंग अंग का सौन्दर्य ही तो गहना है…वही तो प्रियतम के नयनों का अंजन है ।
ये लाल जु… श्रीजी के अंगों को छूने से भी डरते हैं…क्यों कि श्रीजी का अंग अत्यन्त कोमल है…ज्यादा एकटक देखते हैं…तो डरते हैं कि कहीं नयनों की गर्मी से भी प्रिया जु का मुख कमल कुम्हला न जाए…
सखियाँ निहार रही हैं…पर फिर उन्हें लगता है कि… रात होती जा रही है…कहीं भूख ज्यादा ही लग रही होगी… चौसर खेल कर… दिवारी मना कर थक भी तो गए हैं ना !
अरी ! सखियों ! क्या निहारती ही रहोगी युगल को…या इन सुकुमार को ब्यारु का भोग भी लगाओगी ! रंगदेवी ने सबको फिर सावधान किया… ।
हम क्या करें इनको निहारने का सुख अवर्णनीय है…हम तो सब कुछ भूल जाती हैं…यहाँ “रस केलि” नही होती… सखी ! “रस” ही केलि कराती रहती है…उफ़ ! क्या बताएं !
ललिता सखी ने रंगदेवी को अपने हृदय की बात बताई ।
“ब्यारु कुञ्ज”… चलो ! अब ब्यारु कुञ्ज में युगल सरकार को भोग लगावें… ताकि ये सुकुमार सुखपूर्वक ब्यारु कर सकें ।
रंगदेवी ने कहा…और युगल सरकार को लेकर सब सखियाँ चल पड़ी थीं…रात्रि हो चुकी है…
सुन्दर दीपों से सुसज्जित ब्यारु कुञ्ज है…लाल वर्ण के फूल चारों ओर खिले हुए हैं…वातावरण बड़ा ही मन मोहक है ।
दिव्य आसन है…उस आसन में फूलों की पच्चीकारी बड़ी ही प्यारी लग रही है…
उसी आसन में युगल सरकार विराजें हैं…
उनके सामने एक सुवर्ण की चौकी रखी जाती है…उस चौकी पर रेशमी वस्त्र बिछाया गया है…
तभी चम्पकलता सखी स्वर्ण की झारी में सुगन्धित जल लेकर आती हैं…युगल के हस्त और मुख प्रक्षालन कराती हैं ।
चित्रा सखी सुवर्ण की थाल में नाना व्यंजन सजाकर लेकर आयी हैं…पर ऊपर से रेशमी वस्त्र से ढंका हुआ है…जैसे ही उस वस्त्र को हटाती हैं चित्रा सखी…सज्जित व्यंजन भोग देखकर युगल सरकार आनन्दित हो उठते हैं…पिय प्यारी के मन हर्षित हो गए हैं ।
🙏प्यारी ! आज तो “ब्यारु भोग” को देखकर और याकी सुगन्ध से हमारी रसना तो और रसीली हो गयी है…फिर पकवान के स्वाद का तो कहना ही क्या ! श्याम सुन्दर की बातें सुनकर सखियाँ आनन्दित हो जाती हैं…
दोनों एक दूसरे को ग्रास दे रहे हैं…और सखियाँ इस झाँकी का दर्शन करके अपने नेत्रों को शीतल बना रही हैं ।
सखी ! इस मिष्ठान्न का क्या नाम है ?
श्याम सुन्दर मिठाई को हाथ में लेकर सखी से पूछते हैं ।
🙏हे श्याम ! इस मिठाई का नाम है…”रस भरी” ।
आहा ! सखी… सच में ही ये तो रस से भरी ही है ।
ये कहते हुए श्याम सुन्दर श्रीजी के मुख में “रस भरी” दे देते हैं ।
पर आधा ही मुख में देते हैं…और आधी रस भरी लेकर अपने मुख में डाल लेते हैं…और हँसते हुए कहते हैं…अब सार्थक हुआ है इसका नाम… रस भरी…सखियों ! श्रीजी के मुख में जाकर ये सच में रस से और भर गयी है ।
ये सुनते हुए सखियाँ गदगद् हो उठती हैं…और बलैयां लेकर पानी वार कर पी लेती हैं ।
आचमन कराती हैं सखियाँ तब, जब ब्यारु पूरा हो जाता है ।
ललिता सखी बीरी (पान) बनाकर प्रिया प्रियतम को खिलाती हैं ।
नींद आ रही है युगलसरकार को ये जानकर सखियाँ…बड़े प्रेम से आरती उतारती हैं…और उन्मत्त होकर नाचती हैं…गाती हैं ।
🙏”आरती वारति अलि मृगनैंनी !
निज सहचरी इच्छा अनुसारनि, समझ सैंन की सैना बैंनी !!
जगमग जोति जगत दीपावली, कनक थार मधि सचित सुचैंनी !!
“श्रीहरिप्रिया” हितवाय हियनि में, लै बलाय सन्मुख सुखदैनी !!
🙏जय जय श्री राधे ! जय जय श्री राधे ! जय जय श्री राधे !! 🙏
शेष “रसचर्चा” कल –
🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩
(The “Untold Story” of the Park)
🙏 There is no end to this Nikunj Vilas… It is going on since eternity… Pratipal Navla is the new Kanti of Kishori… and Shyam Sundar’s affection is new… Looking at each other’s face, they are lying in such a way that their everything They have lost…this is the limit of this love, that they have even forgotten their divinity…they laugh softly while living together…this is an untold story.
🙏 There is separation in coincidence…both have met…organs have met…mind has met…soul has met…yet it seems…that the meeting has not happened yet…this is called Akath Katha.
Friends pick up everyday… but they also find the couple new.
Nikunj keeps on changing its new form everyday…and not only this…from morning till night, Nitya Vihar flourishes in different forms all the time.
How wonderful is this worship of Nikunj’s kitchen! Early in the morning, friends go to the gate of Nikunj and play Veena…sing…wake up the couple…now where was this Lal Lalna sleeping all night!
The whole night was spent awake. Spent the whole night looking at each other, getting lost in each other.
Friends visit…lights are scattered…eyelids are lazy…eyes are sleepy…speech is awkward…oops! What a spectacle
All the devotees have thought like this… and this thought is many times more wonderful and divine than the thought of Brahmananda.
Not only the friends take care of the couple… Shreeji also cares for the friends… and why not… That is why this love of the couple is due to the presence of friends… Only the friends take this leela-vilas forward.🙏
The pastimes of the Beloved are eternal… New seasons come in Nikunj… and the pastimes are given newness.
There is no order…and there can be no order…after the rain spring can also come…or even if autumn arrives directly after spring then there is no surprise…because everything happens in Nikunj only because of the wishes of the friends. Is .
Sometimes Diwari is celebrated… then chessboard is also spread in Nikunj in Diwari… both play… but Shringar is Rasa… Nikunj is the land of Shringar Rasa… That’s why only Shreeji wins here… and only Lal Ju loses… but This Rasik Shekhar feels blessed even after losing… This is the untold story… of love.
There is no effect of time in Nikunj…six seasons come and go many times in a day…and the limit is that different seasons reside in different kunjs.
Spring has come again… Ragas and Raginis have changed… Dhamar has started… Sprays of sprays… Bizarre colors have appeared… Suddenly.
Because there is no speed of time here…Nikunj is the country of love…and celebration is essential in love…where there is love, there will be celebration.
If there is a festival then there will be festivals… and festivals are daily… and festivals are related to seasons….
Priya Beloved goes to Kunj after getting tired… then friends immediately present with food items… no no… they do not have to cook… this is a country governed by instincts.
Let’s go…in the same spirit country…where everything is love.
I want to say… what I see… but cannot say…
I will not even be able to say… who is the husband?
Couple Sarkar Sakhi is tired now! Give them “Byaru Bhog”.
The night offering is called “Byaru”.
Shreeji is adorned with beautiful ornaments… Aji! What a jewel…the beauty of every part is a jewel…that itself is the beauty of the eyes of the Beloved.
This Lal Ju…is afraid to even touch Shreeji’s body…because Shreeji’s body is very soft…he stares too much…so he is afraid that Priya Ju’s lotus face might wither even because of the heat of his eyes…
The friends are watching… but then they feel that… it is getting late… somewhere they must be feeling very hungry… they are tired of playing backgammon… celebrating the wall, aren’t they?
Hey! Friends! Will you keep looking at the couple… or will you also offer bhog to this Sukumar! Rangdevi warned everyone again….
What should we do, the pleasure of seeing them is indescribable…we forget everything…here there is no “ras keli”… friend! Only ′′ juice ′′ keeps making Kelly… Oops! what should i tell you !
Lalita Sakhi told Rangdevi about her heart.
“Byaru Kunj”… Come on! Now the couple should offer bhog to Sarkar in Byaru Kunj… so that this Sukumar can do Byaru happily.
Rangdevi said…and all the friends had started talking about the couple government…it is night…
Byaru Kunj is decorated with beautiful lamps… Red colored flowers are blooming all around… The atmosphere is very attractive.
It is a divine seat…the mosaic of flowers in that seat is looking very lovely…
The couple government is sitting in the same seat…
A golden post is placed in front of them… a silk cloth is spread on that post…
That’s why Champakalata Sakhi brings scented water in a golden jar…the couple’s hands and faces are washed.
Chitra Sakhi has brought various dishes decorated in a golden plate… but it is covered with a silk cloth from above… as soon as Chitra Sakhi removes that cloth… the couple government gets happy seeing the decorated dishes… May the heart of the beloved be happy. went .
🙏 Dear! Today, after seeing the “Byaaru Bhog” and because of its aroma, our taste has become even more juicy… then what to say about the taste of the dish! Friends become happy after listening to the words of Shyam Sundar…
Both are feeding each other… and the friends are making their eyes cool by seeing this tableau.
Friend! What is the name of this dessert?
Shyam Sundar takes the sweet in his hand and asks his friend.
🙏 Hey Shyam! The name of this sweet is…”Ras Bhari”.
Ouch! Friend… really it is full of juice.
Saying this, Shyam Sundar gives “Ras Bhari” to Shreeji’s mouth.
But they give only half of it in their mouth… and take half of the juice and put it in their mouth… and say with a smile… Now its name has become meaningful… Juice Bhari… Friends! After going into Shreeji’s mouth, it is really filled with juice.
On hearing this, the friends get upset… and drink water after taking balls.
Friends do aachaman only when the description is complete.
Lalita’s friend makes beeri (betel leaf) and feeds it to the beloved.
Knowing that the couple government is feeling sleepy, the friends… perform aarti with great love…and dance frantically…sing.
🙏” Aarti Varati Ali Mriganaini! According to the wishes of my companion, understand the army of the army!! Jagmag Jyoti Jagat Diwali, Kanak Thar Madhi Sachit Suchaini!! “Sri Haripriya” in Hitvay Hiyani, La Balay in front of Sukhdaini!!
🙏 Jai Jai Shri Radhe! Hail Hail Lord Radhe ! Hail Hail Lord Radhe !!
The rest of the “Ruscharcha” tomorrow –
🚩Jai Shri Radhe Krishna🚩