रसोपासना – भाग-14 (भावयोग से भावित दिव्य लीलाएं

भावना का बड़ा महत्व है… अजी ! भावना का ही तो महत्व है ।

भावना कीजिये – कि आप निकुञ्ज में बैठे हैं… भावना कीजिये कि – श्याम सुन्दर और श्रीजी सिंहासन में विराजमान हैं… अब भावना कीजिये कि – श्रीजी के दिव्य आभूषणों का आप ध्यान कर रहे हैं… उनकी दिव्य चन्द्रिका… उनके हार, उनकी दिव्य नीली साड़ी ।

आप लोगों नें कभी “समाज गायन” सुना है ? जो वृन्दावन के रसिक सन्त जन गान करते हैं ? महावाणी जी, युगलशतक, हित चौरासी, इनका गान सुना है ? उसमें यही आता है… कि युगलवर ऐसे बैठे हैं आज ऐसे आभूषण धारण किये हैं… वे आभूषण सामान्य नही हैं… दिव्यातिदिव्य हैं…श्री कृष्ण सत्य रूप ब्रह्म हैं…तो श्री राधारानी आनन्द और प्रेम की सिन्धु हैं…सत्य और आनन्द की लीला अनवरत चल रही है नित्य निकुञ्ज में… सत्य स्वयं आनन्द है… पर स्वयं से मिलने की ही जो अद्भुत छटपटाहट है…वही “रस है… उसी रस का विलास है ये ।

कीजिये भावना… और ये भावना आध घन्टे या एक घन्टे मन्त्र जाप की तरह नही करनी है… इसे अपने जीवन का अंग बनाइये ।

किसी सुन्दर लड़की को देखिये तो “मन ही मन” उसको पता भी न चले…इस तरह प्रणाम कीजिये… आहा ! श्री जी की सखी हैं ये, ऐसी भावना कीजिये…वृक्ष दिखे तो भावना कीजिये निकुञ्ज है ये… अभी यहीं विराजेंगे युगलवर !

पक्षी दिखें तो आहा ! ये तो निकुञ्ज के पक्षी हैं…यही तो हमारे युगलवर को रिझाते हैं…आप बाहर कहीं गए… कोई भी नदी दिखी तो ये तो यमुना जी हैं…मेरे युगल जल क्रीड़ा करेंगे ।

इस तरह से “रस की साधना” कीजिये… ..सर्वत्र और सर्वदा आपको इसी भावना से भावित रहना है ।

चलिये ! “जल केलि” चल रही है युगल की…चलते हैं…वहाँ ।

हाँ… आप ने कोई सेवा ली निकुञ्ज में ?

कुछ नही तो “सोहनी सेवा ( जिस मार्ग पर युगल चलें उस मार्ग में झाड़ू लगाने की सेवा ) ही ले लीजिये…ये बहुत बड़ी सेवा है ।

और हाँ… .युगल मन्त्र का आस्वादन जिव्हा से…

🙏राधे कृष्ण राधे कृष्ण कृष्ण कृष्ण राधे राधे !
राधे श्याम राधे श्याम श्याम श्याम राधे राधे !!

पर ये तो भावना हैं, इससे क्या होगा ?

पूछने वाले वेदान्ती थे… .मैंने उनसे कहा… आप लोगों को समझाते रहते हो… कि हम ही ब्रह्म हैं…”अहं ब्रह्मास्मि” ये क्या है ? ये भी तो भावना ही है !… देखो ! सब भावना का ही खेल है… भावना से ही सब कुछ होगा…करो तो ।

चलिये ! जल विहार का दर्शन करना है… आँखें बन्द कीजिये ।

🙏यमुना में कमल- समूह के मध्य श्रीजी विराजीं हैं…बड़ी सुन्दर लग रही हैं…मन्द मन्द मुस्कुरा रही हैं…क्यों कि श्रीजी को रिझानेँ के लिये श्याम सुन्दर अब तैरनें लगे हैं यमुना में…

कभी ताली बजाकर जोर से हँसती हैं…

इसलिये हँस रही हैं क्यों कि कमल की नाल तोड़ कर ले आये हैं श्याम सुन्दर और उसमें जल भर कर जोर से फूँक मारते हैं…तो जल की धार बहुत दूर तक जाती है… श्रीजी ताली बजा रही हैं… ।

मैं भी करूंगी… श्रीजी ने कहा… और प्यारे ! मेरे फूँक से जल की धार आपसे ज्यादा दूर जायेगी…

तुरन्त श्यामसुन्दर दूसरी कमल नाल तोड़ कर ले आये…श्री जी ने जब जल भर कर उसमें फूँक मारी…तो ज्यादा दूर नही गयी धार ।

🙏प्यारी ! आपसे ये काम नही होगा…हँस पड़े थे श्यामसुन्दर ।

श्री जी ने दूसरी बार जब ये किया… तो सचमुच श्याम सुन्दर से भी दूर जल की धार पहुँचा दी ।

कहो प्यारे !

नयनों को नचाती हुयी श्रीजी प्रसन्नता से बोल रही थीं ।

तुरन्त जल में तैरने लगे श्याम सुन्दर… आपको तैरना आता है ?

इतराते हुए बोल रहे थे ।

बड़ी मासूमियत से श्रीजी ने कहा… नही ।

तो आइये – हम आपको सिखा देते हैं…नही… मुझे डर लगता है… श्रीजी मना कर रही हैं, पर…आप आइये तो… डरिये मत ।

श्याम सुन्दर ने अपने कर कमलों का आश्रय देते हुए कहा… आप को मैं सम्भाल लूँगा…

श्रीजी को तैरना सिखा रहे हैं श्याम सुन्दर…

नही… नही… प्यारी ! आप अपने चरण और हाथ दोनों को चलाइये…

नही, मैं तो डूब जाऊँगी… श्रीजी डर रही हैं ।

ऐसे कैसे डूब जाओगी प्यारी ! मैं हूँ ना ! आप बस…

श्रीजी तैरना सीख रही हैं… आहा ! कितनी सुन्दर झाँकी है ये ।

पर तभी – सखियाँ जो छुप कर इन लीलाओं का दर्शन कर रही थीं… वो सब बाहर आ गयीं ।


🙏जय हो… जय हो नागर शिरोमणि ! आपकी सदा ही जय हो !!

ये क्या कर रहे हो श्याम सुन्दर !

रंगदेवी सखी ने हँसते हुये आगे आकर पूछा ।

सखियों ! श्रीजी ने मुझ से कहा… मुझे तैरना नही आता… तो मैंने सोचा क्यों न इनको तैरना सिखा दिया जाए !

श्याम सुन्दर मटकते हुए बोले ।

आप श्रीजी को तो तैरना सिखा रहे हो… या उनके रूप सुधा में स्वयं डूब रहे हो… ! ललिता सखी ने छेड़ते हुए कहा ।

श्याम सुन्दर सिर नीचा करके खड़े रहे… और इतना ही बोले… “हम तो श्रीजी की आज्ञा का पालन कर रहे थे” ।

पर तभी… श्रीजी एकाएक बोल उठीं… सखियों ! तुम भी आजाओ… तुम भी जल क्रीड़ा करो…

बस इतना सुनते ही… सारी की सारी सखियों ने जल में छलाँग लगा दी…

रंगदेवी, ललिता, इन्दुलेखा इत्यादि श्रीजी के पक्ष में हो गयीं…

और विशाखा, सुदेवी, चित्रा इत्यादि श्याम सुन्दर के पक्ष में ।

बस जल की बौछार करने लगीं एक दूसरे पर… भारी तो श्रीजी की सखियाँ और श्रीजी ही पड़ीं… बेचारे श्याम सुन्दर ने जल की मार से आँखों को मूंद लिया…

श्रीजी ने आगे बढ़कर श्यामसुन्दर को अपने हृदय से लगा लिया था ।

सखियाँ इस झाँकी का दर्शन करके आनन्दित हो उठी थीं ।


🙏हे युगल सरकार ! बहुत बेर से आप लोग जल में क्रीड़ा कर रहे हैं… अब कृपा करके बाहर पधारिये ! चित्रा सखी ने ये बात कही ।

चित्रा सखी की बात सुनकर युगलवर प्रसन्न हुए… और बाहर मणि मण्डित सीढ़ियों पर आकर खड़े हो गए ।

आहा ! सौन्दर्य सिन्धु युगल सरकार !…गीले वसन में… कैसे सुन्दर लग रहे हैं… युगलवर के केश से टपकते हुए जल कन ऐसे लग रहे हैं… जैसे श्याम रंग के रेशम से मोती के फूल झर रहे हों ।

उनके अंग से जल चुचा रहा है…

सखी ! देख तो… इनके मुखारविन्द से जो जल की बूँदें गिर रही हैं… वो तो ऐसा लगता है जैसे – चन्द्रमा में अमृत की बूँदें छा गयी हों… और वो गिर रही हों ..।

सखियाँ इस दिव्य रूप सुधा का पान करके अघाती नही हैं…

पर स्वयं का सुख नही… युगल का सुख आवश्यक है ।

तभी रेशमी कोमल वस्त्र एक सखी लाई… और सखियाँ ही युगल के केशों को पोंछने लगीं… उनके अंगों को पोंछ रही हैं ।

“मृदुल अंग अंगुछाये दोऊ, पाटम्बर पहिराये दोऊ !
करन सिंगार सुहाये दोऊ, “श्रीहरिप्रिया” हुलसाये दोऊ !!

उफ़ !

शेष “रसचर्चा” कल…

जय श्रीराधे कृष्णा

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