रसोपासना – भाग-2

(चलहुँ चलहुँ चलिये निज देश…


प्रियतम तो सच्चे “वही” हैं… उन्हीं प्रियतम की लगन में जो “खुदी” को जला दे… वह सखी धन्य है ।

चलिये ! अपने देश चलिये… ये देश अपना नही है… ये तो किसी का नही है… अरे ! ये है ही नही… ये तो भ्रम मात्र है ।

वो देश… जहाँ प्रेम ही प्रेम है… वह देश… जहाँ प्रेम के नरेश श्रीश्यामसुन्दर और महारानी श्रीराधारानी विराजमान हैं ।

वह देश… जहाँ स्वसुख वान्छा की दूर-दूर तक गन्ध भी नही है ।

वह देश… जो अपना है… जहाँ सब अपने हैं ।

वह देश… जहाँ प्रेम की नदी सदा बहती रहती है ।

“प्रेम” आहा ! कितना सुन्दर शब्द है… मिश्री-सी घुल जाती है ।

अनिर्वचनीय तत्व है ये… सच में इसे पाने के बाद कुछ और पाने की कामना ही नही रहती… ये मन बड़ा लालची है… पर प्रेम में इतनी ताकत है कि इस लालची मन को पूर्ण तृप्त करके ही ये दम लेता है ।

चलिये… छोड़िये इस देश को… कुछ नही रखा यहाँ… उस देश में चलिये जहाँ रस ही रस है… रस का सिन्धु उमड़-घुमड़ रहा है… रस के ही घन श्रीश्याम और श्रीराधा जहाँ छाई हुयी हैं… सब कुछ जहाँ रस है… रस ही आकार लेकर लीला कर रहा है ।

रस ही सखियाँ… रस ही वन… रस ही वृक्ष… रस ही यमुना ।

रस ही नाना रूपों में दिखाई देता है यहाँ… रस ही एक गौर और श्याम बन विराजमान है ।

पर ये दो नही… एक हैं… जैसे जल और तरंग ।

अब अगर व्याख्या करनी हो… तो जल की व्याख्या अलग होगी और तंरग की अलग… पर क्या जल और तंरग दो हैं ?

छोड़ो… इस सब गहरे सिद्धान्त को… तुम तो चलो ।

जहाँ की पृथ्वी दिव्य सुवर्ण मय है… मणि मण्डित के जहाँ दिव्य-दिव्य खम्भे लगे हैं… हवा चलती है तो वहाँ की रज कपूर की तरह उड़ती है… यमुना कंकण के आकार की हैं… मध्य में दिव्य श्री वृन्दावन है… इसी को नित्य निकुञ्ज कहते हैं ।

सब कुछ प्रेमपूर्ण है यहाँ…

अकारण, एकरस, अनुराग ही प्रमाणिक प्रेम कहलाता है ।

उस देश में स्वाभाविक प्रेम है… स्वार्थ रहित प्रेम है… निश्चल प्रेम है… वहाँ सर्वत्र प्रेम ही प्रेम है ।

चलिये उस देश में… प्रेम के देश में ।


आँखें बन्द कीजिये !

… दिव्य श्रीधाम वृन्दावन है ।

मणि माणिक्य से खचित भूमि है यहाँ की… प्रणाम कीजिये और बड़े प्रेम से बोलिये – श्री वृन्दावन ! मन ही मन बोलिये ।

नही नही, ऐसे कैसे प्रवेश मिलेगा उस दिव्य श्रीधाम में ।

वहाँ की नित्य सखियों की पहले कृपा आवश्यक है… उनके बिना आपका प्रवेश नही हो पायेगा… वन्दन कीजिये पहले सखियों को ।

युगल सरकार की अष्ट सखियाँ हैं… चलिये ध्यान करते हैं ।

सबसे पहले – “श्रीरंगदेवी जु”… इनकी कृपा प्राप्त हो… इनके चरणों में प्रणाम कीजिये… इनका रंग गोरा है… ये बहुत सुन्दर है… नीली साड़ी पहनती हैं ये… ये “श्रीजी” के पक्ष की हैं… ये वीणा बहुत सुन्दर बजाती हैं… इनके साथ इनकी भी अष्ट सखियाँ हैं… जो इनकी सेवा में रहती हैं… इन सबको प्रणाम कीजिये… इनके चरण रज को माथे से लगाइये ।

अब दूसरी सखी हैं… “श्री सुदेवी जु”… ये श्याम सुन्दर के पक्ष की हैं… इनका रंग कुछ साँवला-सा है… ये मृदंग बजाने में निपुण हैं… पीली रंग की ये साड़ी पहनती हैं… इनके साथ भी इनकी अष्ट सखियाँ हैं जो इनकी सेवा में रहती हैं… इनको भी प्रणाम कीजिये ।

तीसरी सखी हैं… “श्रीललिता जु”… दिव्य गोरोचन की तरह कांति हैं इनके मुखमण्डल में… ये श्रीजी की निज सखी हैं… ये बड़े प्रेम से बाँसुरी वादन करती हैं… और प्रिया जु को रिझाती हैं ।
इनकी भी अष्ट सखियाँ हैं… जो इनकी सेवा में रहती हैं… इन सब को प्रणाम कीजिये ।

चौथी सखी हैं… “श्रीविशाखा जु”… ये युगल सरकार के मन की बात को तुरन्त समझ जाती हैं… विद्युत की तरह इनकी अंग कांति है ।
मृदंग ये बड़ा सुन्दर बजाती हैं… ये श्यामसुन्दर की प्रिय सखी हैं ।
इनकी भी अष्ट सखियाँ हैं… सबको प्रणाम कीजिये ।

पांचवीं सखी हैं – “श्रीचम्पकलता जु”… आकाश की तरह इनका रंग है… ये अत्यन्त सुन्दरी और शान्त सखी हैं… विशेष इन्हें आनन्द आता है युगल सरकार को चँवर ढुराने में ।
ये सारंगी बजाती हैं… श्रीजी को इनकी सारंगी बहुत प्रिय है । इनकी भी अष्ट सखियाँ हैं… इन्हें भी प्रणाम कीजिये ।

छटी सखी हैं – “श्रीचित्रा जु”… इनकी अंग कांति है… केशर की तरह ।
ये सितार बजाती हैं… और चित्र बहुत सुन्दर काढ़ती हैं । इनकी भी अष्ट सखियाँ हैं… प्रेम से वन्दन कीजिये इन्हें ।

सातवीं सखी हैं – “श्रीतुंगविद्या जु”… इनका रंग श्रीजी की तरह ही है… पीला परिधान पहनती हैं ये… ये गाती बहुत मधुर हैं ।
अष्ट सखियाँ इनकी भी सेवा में निरन्तर लगी रहती हैं… इनको प्रणाम कीजिये ।

और आठवीं सखी हैं – “श्रीइन्दुलेखा जु”… इनको प्रिया प्रियतम दोनों का प्रेम प्राप्त है… गौर वर्णी हैं ये… मंजीरा बजाती हैं… लाल रंग की साड़ी इन्हें प्रिय है… क्यों कि “श्रीजी” ने इन्हें एक बार कहा था कि लाल रंग का परिधान इन्दु ! तुम्हें सुन्दर लगता है… बस उसी दिन से ये लाल परिधान ही पहनने लग गयीं ।

साधकों ! ये सखियाँ वेद की ऋचाएं हैं… ये सखियाँ चिद् शक्ति हैं… चिदाम्बा शक्ति ही ये सखियाँ , भिन्न-भिन्न रूपों में ब्रह्म और आल्हादिनी की सेवा में उपस्थित हैं… इसलिये इनको प्रणाम करना आवश्यक है… तभी इस दिव्य निकुञ्ज में प्रवेश आपको मिलेगा ।


सखी भाव धारण कीजिये ।

ये बहुत ऊँची वस्तु है… सखी भाव ।

वेदो ने स्पष्ट कह दिया है… ब्रह्म ही एक मात्र पुरुष है ।

बाकी सब उस “ब्रह्म पुरुष” की नारियाँ हैं… रसोपासना हमें बताती हैं कि सखी भाव के बिना उस प्रेम नगरी में हमारा प्रवेश सम्भव नही है ।

अहंकार पुरुष है… और समर्पण सखी… सब कुछ हमारे प्रिया प्रियतम जु हैं… ये भाव… हाँ ये भाव ही हमें उस निकुञ्ज का अधिकारी बनाता है… क्यों कि उस “प्रेम देश” में अहंकार का प्रवेश वर्जित है ।

ये अद्भुत रहस्यवाद है… इसको कृपा करके बुद्धि का विषय मत बनाइये… आप का निज रूप सखी है… यही सच्चाई है… आपका निज देश श्री वृन्दावन धाम है… सनातन श्रीवृन्दावन… नित्य श्री वृन्दावन… जहाँ प्रेम नदी निरन्तर बह रही है… हमें वहीं जाना है… क्यों कि हम मूल वहीं के निवासी हैं ।

सखी भाव धारण करके ध्यान कीजिये ।

शेष “रस चर्चा” कल…

🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩

🌷🌻🌷🌻🌷🌻🌷



(Let’s go, let’s go to our country…

Beloved is the true “He”… The one who burns “Khudi” in the passion of that Beloved… That friend is blessed.

Move ! Go to your country… this country is not ours… it does not belong to anyone… Hey! This is not there… This is just an illusion.

That country… where love is only love… that country… where the king of love Shri Shyamsundar and Queen Shriradharani are seated.

That country… where there is not even a smell of self-satisfaction even far and wide.

That country… which is ours… where everyone is ours.

That country… where the river of love always flows.

′′ Love ′′ Oh! Such a beautiful word… it melts like sugar candy.

This is an indescribable element… In truth, after getting it, there is no desire to get anything else… This mind is very greedy… But love has so much power that it takes power only after satisfying this greedy mind completely.

Let’s go… Leave this country… Nothing is kept here… Let’s go to that country where there is only juice… The Indus of juice is overflowing… Where Shri Shyam and Shriradha are surrounded by cubes of juice… Everything where there is juice… Juice He is doing leela by taking shape.

Juice is friends… Juice is forest… Juice is tree… Juice is Yamuna.

Rasa itself is visible in various forms here… Rasa itself is sitting as a Gaur and Shyam.

But these are not two… they are one… like water and wave.

Now if you want to explain… then the explanation of water will be different and that of wave… but are water and wave two?

Leave… all this deep theory… you go.

Where the earth is full of divine gold… Where the divine pillars are adorned with gems… When the wind blows, it blows like camphor… Yamuna is shaped like a bracelet… Divine Sri Vrindavan is in the middle… This is called Nitya Nikunj. They say .

Everything is love here…

Causeless, monotonous, attachment is called authentic love.

There is natural love in that country… there is selfless love… there is constant love… there is only love everywhere.

Let’s go to that country… to the country of love.

Close your eyes!

… The divine Sridham is Vrindavan.

The land here is studded with gems and rubies… Salute and speak with great love – Shri Vrindavan! Speak your mind.

No no, how will you get entry in that divine Shridham like this.

The grace of the daily friends there is necessary first… Without them you will not be able to enter… First of all, bow down to the friends.

The couple are the eight friends of the government… Let’s meditate.

First of all – “Shrirangadevi Ju”… get her grace… bow down at her feet… her complexion is fair… she is very beautiful… she wears blue saree… she is from the side of “Shriji”… she plays Veena very beautifully … Along with him, he also has eight friends… who live in his service… Salute them all… Apply the secret of their feet on your forehead.

Now there is another friend… “Shri Sudevi Ju”… She is from the side of Shyam Sundar… Her complexion is somewhat dark… She is expert in playing the mridang… She wears a yellow colored saree… She also has eight sakhis along with her. Lives in her service… Salute her too.

The third friend is… “Sri Lalita Ju”… Her face shines like divine Gorochan… She is Shreeji’s personal friend… She plays the flute with great love… and pleases Priya Ju. He also has eight friends… who stay in his service… Salute all of them.

The fourth friend is… “Srivishakha Ju”… This couple understands the mind of the government immediately… Their body is like electricity. She plays Mridang very beautifully… She is a dear friend of Shyamsundar. He also has eight friends… Salute everyone.

The fifth friend is – “Shrichampakalata Ju”… Her color is like the sky… She is a very beautiful and calm friend… Especially she enjoys in carrying the couple government. She plays Sarangi… Shreeji loves her Sarangi very much. He also has eight friends… Salute them too.

She is the sixth friend – “Shri Chitra Ju”… her body is radiant… like saffron. She plays the sitar… and embroiders pictures very beautifully. He also has eight friends… Worship them with love.

The seventh friend is – “Shritungvidya Ju”… Her complexion is same as Shreeji… She wears yellow dress… She sings very sweetly. The eight friends are constantly engaged in their service too… Salute them.

And the eighth friend is – “Shri Indulekha Ju”… She is loved by both the beloved… She is very beautiful… She plays Manjira… She loves red color saree… Because “Shriji” once told her that red color Dress of Indu! You look beautiful… From that very day she started wearing only red clothes.

Seekers! These Sakhis are the hymns of the Vedas… These Sakhis are Chid Shakti… Chidamba Shakti itself, these Sakhis, are present in different forms in the service of Brahma and Alhadini… That is why it is necessary to bow down to them… Only then you will get entry into this divine Nikunj.

Keep the feeling of a friend.

This is a very high thing… Friendliness.

Vedas have clearly said… Brahm is the only Purush.

Rest all are the women of that “Brahma Purush”… Rasopasana tells us that it is not possible for us to enter the city of love without the feeling of companionship.

Ego is man…and dedication is friend…everything is our beloved and beloved…this feeling…yes this feeling alone makes us entitled to that Nikunj…because the entry of ego is prohibited in that “country of love”.

This is wonderful mysticism… Please don’t make it a matter of wisdom… Your own form is Sakhi… This is the truth… Your own country is Sri Vrindavan Dham… Sanatan Sri Vrindavan… Nitya Sri Vrindavan… Where the river of love is flowing continuously… We are there Have to go… because we are natives of the same place.

Please meditate with the feeling of Sakhi.

The rest of “Juice Discussion” tomorrow…

🚩Jai Shri Radhe Krishna🚩

🌷🌻🌷🌻🌷🌻🌷

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