मन की पवित्रता

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आनंद एक ऐसा परिस्थिति हैं जो अपने आप विशाल रूप ले लेता है। संसार में यदि एक व्यक्ति की सोच पुरणतः ठीक हो जाती है तब उसमे एक ऐसी महक होगी कि न जाने कितने ही अपने आप तर जाऐगे।

आनंद अनुभुति है।हम भगवान से जब दिल ही दिल में बात करते विनती और स्तुति करते हैं। तब भगवान हमारी सांसो में समा जाते हैं। हमारे दिल में नाम ध्वनि बजती रहती है। भक्त देखता है तु सोता है चलते हुए कार्य करते हुए भगवान का नाम और लीला तुझमें समा गयी है। भगवान् भक्त को आनंदीत करते हैं तो कभी अपनी लिलाओ का दृष्टिकोण कराते हैं। भगवान भक्त को अनेकों भाव से  रिझाते हुए आनंद विभोर करते हैं। ऐसे में भक्त भगवान का जाता हैं।

बाहर से ऊपर से जिस दुख को हम देख कर दुखी होते हैं वह दुख नहीं है। हमे परिस्थिति का सामना नहीं करना आता है। इसलिए हम उसे दुख का लिबास उडाते है। जिस विचार को हम यह सोचते हैं कि यह ऐसे बोल रहा है उसी विचार से आने वाले समय का आंकलन करते हैं तब हमें ज्ञात होता है कि कङवे और सख्त शब्दों में हमारी कितनी भलाई छुपी हुई है। ये शब्द व्यक्ति विशेष नहीं बोल रहा है इसे भगवान बुला रहे हैं। और मेरी साधना की रक्षा भगवान स्वयं करने आयें हैं। मै अमुक सम्बन्धी को प्रणाम करता हूं। आप जिस ध्यान की जिस कर्म की बात करते हैं। वह मन की पवित्रता पर सब गौण हो जाती है। साधना मार्ग में भगवान साधक को पका और सच्चा बनाने के लिए अनेक परिस्थितियां देते हैं। परिस्थिति के लिए भगवान  अपने घर के सदस्य को नियुक्त करते हैं। सबसे पहली स्टेज अपने मन की पवित्रता की खोज है। बुरा जो देखन मै चला बुरा न मिला कोय जो आपन देखन चहु मुझसे बुरा न कोय।
एक गृहस्थ अपनी ध्यान साधना अपने घर के कार्य करते हुए भगवान को जब यह कहता है कि भगवान देख रहा है कभी मेरे विचारों में खोट न आजाये मै जो भी कार्य करू उसे पवित्र मन और लगन से करू इस भाव के माध्यम से हम ध्यान और साधना कर लेते हैं ।जब तक अपने मन में विचारों की पवित्रता नहीं लेकर आते हैं तब तक घर के सदस्यों में हम खोट देखते रहेगे।जय श्री राम अनीता गर्ग



Bliss is a condition that takes on a vast form by itself. If a person’s thinking becomes completely right in the world, then there will be such a fragrance in it that no one knows how many will get absorbed by itself.

Bliss is a feeling. When we talk to God in our heart, we pray and praise. Then God gets absorbed in our breath. The sound of name keeps on playing in our heart. The devotee sees that you sleep while working while walking and the name and pastimes of God are absorbed in you. The Lord pleases the devotee and sometimes makes him see his pastimes. The Lord delights the devotee with many expressions. In this way the devotee goes to God.

The misery that we see from above from outside, we feel sad, is not sorrow. We don’t have to face the situation. That’s why we make him wear the veil of sorrow. The thought which we think that it is speaking like this, we measure the time to come from that thought, then we come to know how much goodness is hidden in our harsh and harsh words. This word is not spoken by a particular person, it is being called by God. And God himself has come to protect my sadhana. I salute such a relative. What kind of meditation are you talking about? It becomes secondary to purity of mind. In the path of spiritual practice, God gives many conditions to make the seeker ripe and true. God appoints a member of his household for the situation. The first stage is the search for the purity of your mind. The bad that I went to see was not bad, whoever I wanted to see myself was not bad with me. When a householder does his meditation while doing his house work, when he says that God is watching, never fall in my thoughts, whatever work I do, do it with pure mind and passion, through this feeling we meditate and do meditation. We do it. Till we do not bring purity of thoughts in our mind, we will keep seeing fault in the members of the house. Jai Shri Ram Anita Garg

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