भाव की गहराई 3

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हम भगवान को भजते रहते हैं तब मालिक इस मन को सुधार देते है। भगवान का सिमरण ऐसी पुंजी है जो दिन दिन बढती जाती है। कभी बैठकर हम यह नहीं सोचते हैं कि परमात्मा ने मुझे मनुष्य जन्म क्यो दिया है। मेरे मनुष्य रुप में पृथ्वी पर आने के लिए कोई कारण अवस्य होगा।

मै परम पिता परमात्मा का चिन्तन करता हूं। एक दिन परमात्मा मुझे अवस्य दर्शायेगे ।फिर मै बैठ कर सोचती हूं कि ये खाना पिना सोने में जिन्दगी की सच्चाई नहीं है। मेरी आत्मा की शान्ति किस चीज में छुपी है। फिर मै सोचती हूं कि देख अभी तुझे परम पिता परमात्मा के अहसास होते हैं। अभी तुझमे पुरणता नहीं आई है।

तु भगवान की स्तुति भाव प्रकट तो करती है। भाव में गहराई नहीं है। अभी दिल मे मिलन की तङफ में आग प्रकट नहीं हुई है। फिर मै अपने आपको कहती हूं कि अहो ये आनंद मुझे आगे बढ़ाने नहीं देता है। 

साधना में भक्त गहरा डुबने लगता है तब भगवान बीच में आन्नद बिखेरते हैं। मै फिर जगती हूं कि अहो मेरे प्रभु मेरे स्वामी भगवान् नाथ मुझे दिखाई क्यों नहीं देते हैं। दिन रात मैं परमात्मा के नाम चिंतन में डुबना चाहती  हूं।अब मुझे इस शरीर की भी चिंता नहीं है। ये शरीर एक दिन चल ही जाना है परम पिता परमात्मा मेरे सहायक हुए हैं। मै परमात्मा की बन जाना चाहती हूं। पंख होते तो उङ जाती रे।

जय श्री राम अनीता गर्ग

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