प्रभु संकीर्तन 19

images T

ध्यान में परमात्मा के चिन्तन के अलावा कुछ भी नहीं है। भगवान को हम शरीर रूप से भजते भगवान को ध्यान में भजते हैं।ध्यान के चिन्तन में चाहे बाहर नगाड़े बज रहे हो तब भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। बाहरी शरीर संसार के सब कार्य निभाते हुए भी भगवान को भजते हुए गौण हैं।

  हम मन्दिर में बैठे घण्टों भगवान को निहारते भजन तो गाते ही साथ में दिल ही दिल में सौ सौ बार प्रणाम करते हैं ।भजन गाते गाते भाव गहरा हो जाता प्रभु से वन्दना में खो जाती और भजन की तर्ज टुट जाती सभी समझते भजन अच्छा नहीं गाया। वे यह नहीं समझ पाती प्रभु प्राण नाथ के लिए  गाया हुआ भाव प्रभु ने स्वीकार कर लिया।

हम भगवान को रिझाने आये हैं शिश झुकाकर वन्दना करते ।भगवान भी अन्तर्मन में आकर लीला कर जाते है जिस दिन भगवान लीला करते उस दिन वो नजर फिर उठती नहीं है । मोन मन्दिर से चल पङती।

कभी आनंद सागर में गोते लगते तो कभी भगवान से फिर मिलन की तङफ में नैन नीर बहाते थे।मन्दिर जाती तब अन्तर्मन पुछता कहां जा रही है क्या करने जा रही है।

अन्तर्मन से आवाज आती प्रभु प्राण नाथ प्यारे से साक्षात्कार करने जा रही हूं परमात्मा  से मिलने जा रही हूं।कुछ अपने दिल की कहुंगी, कुछ प्राण नाथ की सुनूगी नैनो से नैन मिलेगे प्रभु प्राण नाथ के नैनो में खो जाऊगी।भक्त भगवान के भाव मे लीन होता है तब भक्त भगवान मे खो जाता है। यह दिल का दिल से सम्बन्ध है। अपने अन्तर्मन मे बैठे श्री हरी से सम्बन्ध बनने पर भक्त भगवान के भाव मे है। जय श्री राम अनीता गर्ग



There is nothing in meditation except the contemplation of God. While worshiping God in physical form, we worship God in meditation. Even if drums are being played outside, there is no effect in the contemplation of meditation. The external body is secondary while performing all the tasks of the world while worshiping the Lord.

While sitting in the temple looking at God for hours, while singing bhajans, we bow down 100 times in our heart. . She could not understand that the Lord accepted the song sung for Prabhu Pran Nath.

We have come to pacify God and worship him by bowing down our heads. God also appears in our hearts and performs leela. Mon used to walk from the temple.

Sometimes I used to dive in the ocean of joy, sometimes I used to shed tears in the yearning to meet God again. When I go to the temple, my inner mind asks where is it going, what is it going to do.

I am going to interview Lord Pran Nath beloved, I am going to meet God. I will say something from my heart, I will listen to Pran Nath, eyes will meet eyes, I will get lost in the eyes of Lord Pran Nath. Devotee in the spirit of God When he is engrossed, the devotee gets lost in God. It is a heart to heart relationship. The devotee is in the spirit of God after having a relationship with Shri Hari sitting in his inner heart. Jai Shri Ram Anita Garg

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *