आत्मा से परमात्मा तक की यात्रा

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हरि ॐ तत्सत

वो जो परमात्मा अदृश्य, अरूप अलख अनामी अखंड अप्रगट अविनाशी निर्गुण निरलेपी निराकार व्यापक ब्रह्म है।

वो जब भी प्रगट होता है तो अपनी माया यानी प्रकृति को लेकर साधारण मानव के रूप में अवतरित होता है।


हम उसे पहचान नहीं पाते हम उसे देह शरीर के रूप में देखते हैं।यही हमारी चर्म दृष्टी है।


जबकि
वहीं परमात्मा है।उसे ही ब्रह्म कहते हैं।
उसे न पहचा कर हम उसे बाहर ढूंढते फिरते हैं।
वहीं
तीन लोक झोली में भर कर छिप गया आप तमाशा करके
ऐसा जोर अकेले में
बाजीगर ने खेल रचाया माया पुर के मेले में
इसी माया नगरी में वो अपने आपमें अकेला है।
इस अकेले में ही में मिलना है।
आत्मा से परमात्मा तक की यात्रा
इसी में मिलन करना यानी मेला है।

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