शांत होकर बैठ जाओ

यह जगत तुम्हारा घर है। अगर एक क्षण को भी तुम्हारा भीतर का वार्तालाप टूट जाए…सारे सत्संगों का, सारे गुरुओं का एक ही लक्ष्य है कि किस भांति तुम्हारे भीतर का वार्तालाप तोड़ा जाए। वे उसे ध्यान कहें, मौन कहें, योग कहें, नाम स्मरण कहें, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। सारी चेष्टा यह है कि भीतर तुम्हारी जो एक सतत धारा चल रही है शब्दों की, उसको छिन्न-भिन्न कैसे करना! उसमें बीच में खुली जगह कैसे आ जाए! थोड़ी भी देर को खुली जगह आ जाए तो तुम समझ पाओगे कि नानक क्या कह रहे हैं।

नानक कहते हैं, ‘श्रवण से ही सिद्ध, पीर, देवता और इंद्र होते हैं। श्रवण से ही धरती और आकाश स्थित है। श्रवण से ही द्वीप, लोक, पाताल चल रहे हैं। श्रवण से ही मृत्यु स्पर्श नहीं करती। नानक कहते हैं, श्रवण से ही भक्त सदा आनंदित होते हैं और श्रवण से ही दुख तथा पाप का नाश होता है।’

सुणिऐ सिध पीर सुरि नाथ। सुणिऐ धरति धवल आकास।।

सुणिऐ दीप लोअ पाताल। सुणिऐ पोहि न सकै कालु।।

नानक भगता सदा विगासु। सुणिऐ दुख पाप का नासु।।

भरोसा नहीं आता कि सुनने से ही कोई सिद्ध, पीर, देवता और इंद्र हो जाता है! और सुनने से ही धरती और आकाश चल रहे हैं! और सुनने से ही द्वीप, लोक, पाताल खड़े हैं! सुनने से ही मृत्यु स्पर्श नहीं करती! अतिशयोक्ति मालूम पड़ती है।

जरा भी अतिशयोक्ति नहीं है। क्योंकि जैसे ही तुम्हें सुनने की कला आयी, तुम्हें जीवन से परिचित होने की कला आ गयी। और जैसे ही तुम्हें अस्तित्व का बोध होना शुरू हुआ, तुम पाओगे कि जैसा सन्नाटा तुम्हारे भीतर है सुनने के क्षण में, श्रवण के क्षण में जैसी शून्यता तुम्हारे भीतर है, वही शून्यता तो सारे अस्तित्व का आधार है। उससे ही आकाश टिका है, उससे ही पाताल टिका है। उसी शून्य पर, उसी मौन में तो सारा जगत परिभ्रमण कर रहा है। उसी मौन में बीज टूटता है और वृक्ष बनता है। उसी मौन में सूरज उगता है। उसी मौन में चांदत्तारे बनते हैं और बिखरते हैं। जब तुम अपने भीतर शब्दों को शून्य कर देते हो, तब तुम उस जगह पहुंच गए जहां से सृष्टि पैदा होती है और जहां सृष्टि लीन होती है।

ऐसा हुआ कि एक मुसलमान फकीर नानक के पास आया और उसने कहा कि मैंने सुना है कि तुम चाहो तो क्षण में मुझे राख कर दो और तुम चाहो तो क्षण में मुझे बना दो। यह चमत्कार है; मुझे भरोसा नहीं आता। पर आदमी ईमानदार था, मुमुक्षु था; ऐसे ही कुतूहल से नहीं आ गया था। साधक था, जो पूछा था, बड़ी अभीप्सा से पूछा था।

नानक ने कहा तो फिर आंख बंद कर लो और शांत हो कर बैठ जाओ, तो जो तुम चाहते हो, वह मैं करके ही दिखा दूं। वह फकीर आंख बंद करके शांत हो कर बैठ गया।

अगर मुमुक्षु न होता तो भयभीत हो जाता। क्योंकि जो पूछा था, खतरनाक पूछा था कि राख कर दो, मिटा दो, फिर बना दो। प्रलय और सृष्टि तुम्हारे हाथ में है, ऐसा मैंने सुना है।

सुबह का वक्त–ऐसी ही सुबह रही होगी। एक गांव के बाहर एक वृक्ष के नीचे, एक कुएं के पास नानक बैठे थे। उनके भक्त मरदाना और बाला मौजूद थे। वे भी थोड़े हैरान हुए कि ऐसा तो नानक ने कभी किसी से कहा नहीं! और अब क्या होगा! वे भी सजग हो गए। उस क्षण जैसे आस-पास वृक्ष भी सजग हो गए होंगे। पत्थर भी सजग हो गए होंगे। क्योंकि नानक ने कहा, बैठ जाओ, आंख बंद करो, शांत हो जाओ। जैसे ही तुम शांत हो जाओगे, मैं चमत्कार दिखा दूंगा।

वह फकीर शांत हो कर बैठ गया। बड़ी आस्था का आदमी रहा होगा। वह भीतर बिलकुल शून्य हो गया। नानक ने उसके सिर पर हाथ रखा और ओंकार की ध्वनि की। और कहानी कहती है कि वह आदमी राख हो गया। फिर नानक ने ओंकार की ध्वनि की। और कहानी कहती है, वह आदमी फिर निर्मित हो गया।

अगर कहानी को ऊपर से पकड़ोगे तो चूक जाओगे। लेकिन भीतर यह घटना घटी। जब वह सब भांति शांत हो गया और नानक ने ओंकार की ध्वनि की, श्रवण को उपलब्ध हुआ, भीतर का वार्तालाप टूट गया। सिर्फ ओंकार की ध्वनि गूंजी। उस ध्वनि के गूंजने के बाद प्रलय की स्थिति भीतर अपने आप हो जाती है। सब खो गया–सब संसार, सब सीमाएं–राख हो गया, ना-कुछ हो गया। भीतर कोई भी न बचा, खोजे से भी कोई न मिला। कोई था ही नहीं, घर सूना था। फिर नानक ने ओंकार की ध्वनि की। वह आदमी वापस लौटा। उसने आंखें खोलीं। उसने चरणों में, पैरों में सिर रखा और कहा कि मैं तो सोचता था, यह असंभव है। लेकिन यह करके दिखा दिया!

कहानी को मानने वाले इसे न समझ पाएंगे। वे तो समझते हैं कि वह आदमी राख हो गया, फिर राख से नानक ने उसको बना दिया। ये सब नासमझी की बातें हैं। तब तुम समझे नहीं, चूक गए। पर भीतर प्रलय और सृष्टि की घटना घटती है।

लेकिन वह फकीर सुनने में समर्थ था। जब कोई सुनने में समर्थ होता है तो तुम मुझे ही थोड़े सुनोगे! सुनने की कला आ गयी। मैं तो बहाना हूं, गुरु तो बहाना है। सुनने की कला आ गयी तो जब वृक्षों में हवाएं बहेंगी, तब भी तुम सुनोगे। और उस सन्नाटे में तुम्हें ओंकार का नाद सुनाई पड़ेगा; जीवन का जो मूल स्वर है, वह सुनाई पड़ेगा। पर्वत से पानी का झरना गिरेगा, उसके नाद को तुम सुनोगे। उस नाद में तुम पाओगे कि सभी शून्य में टिका है। नदियां उसी में बहती हैं, सागर उसी में लीन होते। तुम आंख बंद कर दोगे तो तुम अपनी ही हृदय की धड़कन सुनोगे; खून की गति की धीमी-धीमी आवाज सुनोगे। और तुम पाओगे, यह मैं नहीं हूं; मैं तो सुनने वाला हूं; मैं तो साक्षी हूं। फिर तुम्हें मृत्यु स्पर्श न कर पाएगी। जिसे सुनने की कला आ गयी, उसे कुछ भी जानने को बाकी न रहा।

इसलिए नानक कहते हैं, ‘श्रवण से ही सिद्ध, पीर, देवता और इंद्र होते हैं। श्रवण से धरती और आकाश स्थित हैं। श्रवण से ही द्वीप, लोक, पाताल चल रहे हैं।’

सारा अस्तित्व श्रवण से हो रहा है। श्रवण का अर्थ हुआ, सारा अस्तित्व शून्य से हो रहा है। और जब तुम श्रवण में होते हो, तब शून्य की छाप तुम पर आती है, तब शून्य तुम में गूंजता है। वही गूंज अस्तित्व की मौलिक गूंज है। वही ध्वनि अस्तित्व की मूल इकाई है।


ओशो

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