इस संसार के रास्ते पर हम सब अजनबी हैं।घड़ीभर का मिलना है, फिर रास्ते अलग हो जाते हैं। घड़ीभर साथ चल लेते हैं, इसी से संसार बसा लेते हैं। फिर रास्ते अलग हो जाते हैं। जब कोई मरता है, तो उसका रास्ता अलग हो गया। फिर अलविदा देने के सिवाय कोई मार्ग नहीं है। फिर दुबारा तुम उसे खोज भी पाओगे अनंतकाल में—असंभव है।
इसलिए न तो बच्चे सत्य हैं, न पति सत्य है, न पत्नी सत्य है, न भाई, न बहन, न मा, न बाप। संबंध हैं ये, सत्य नहीं। संबंध भी क्षणभंगुर हैं।
फिर पूछा है : ‘क्या आप सत्य हैं?’
थोड़ा ज्यादा सत्य हूं। जितना पति—पत्नी का संबंध होता है, उससे गुरु—शिष्य का संबंध थोड़ा ज्यादा सत्य है। क्योंकि पति—पत्नी का संबंध देह पर चुक जाता है। या अगर बहुत गहरा जाए तो मन तक जाता है।
गुरु—शिष्य का संबंध मन से शुरू होता है और अगर गहरा चला जाए, तो आत्मा तक जाता है। लेकिन फिर भी कहता हूं : थोड़ा ज्यादा सत्य है। क्योंकि गुरु—शिष्य का संबंध भी परमात्मा तक नहीं जाता; आत्मा तक ही जाता है। और जाना है तुम्हें परमात्मा तक, इसलिए एक दिन गुरु को भी छोड़ देना पड़ता है। आत्मा की सीमा आयी, उस दिन गुरु गया।
इसलिए बुद्ध ने कहा है. अगर मैं भी तुम्हें राह पर मिल जाऊं, तो मेरी गरदन काट देना। राह पर मिल जाऊं अर्थात अगर तुम्हारे और तुम्हारे परमात्मा के बीच में आने लगू तो मुझे हटा देना।
गुरु द्वार बने, तो ठीक। द्वार का मतलब ही होता है कि उसके पार जाना होगा। द्वार पर कोई रुका थोड़े ही रहता है! द्वार पर कितनी देर खड़े रहोगे? द्वार कोई रुकने की जगह थोड़े ही है। उससे तो प्रवेश हुआ और आगे गए।
तो गुरु द्वार है। इसलिए नानक ने ठीक कहा, अपने मंदिर को गुरुद्वारा कहा। बस, गुरुद्वारा ही है गुरु। वह द्वार है। उससे पार चले जाना है। गुरु इशारा है, जिस तरफ इशारा है, वहा चले जाना है।
इसलिए गुरु भी थोड़ा ज्यादा सत्य है, लेकिन असली सत्य तो परमात्मा है। तो यहां तीन बातें हो गयीं सांसारिक संबंध; आध्यात्मिक संबंध, पारमार्थिक संबंध। सांसारिक संबंध—पति, पत्नी, बच्चे। बड़े ऊपर के हैं, शरीर तक जाते हैं। बहुत गहरे जाएं, तो मन तक।
आध्यात्मिक संबंध—शिष्य और गुरु का संबंध। या कभी—कभी बहुत गहरे प्रेम में उतर गए प्रेमियों का संबंध। शुरू होता है मन से। अगर गहरा चला जाए, तो आत्मा तक पहुंच जाता है।
और फिर कोई संबंध नहीं, तुम अकेले बचो। तुम्हारे स्वात में ही परमात्मा आविर्भूत होता है, तुम ही परमात्मा हो जाते हो। फिर कोई संबंध नहीं है। परमात्मा और आदमी के बीच कोई संबंध नहीं हो ती—असंबंध है। क्योंकि परमात्मा और आदमी दो नहीं हैं।
तो तू पूछती है ‘क्या आप सत्य हैं?’
थोड़ा ज्यादा, ललित और बच्चों से। लेकिन परमात्मा और तेरे संबंध से थोड़ा कम।
फिर पूछा है. ‘क्या धर्म सत्य है?’
धर्म सत्य है। धर्म का अर्थ है : असंबंधित दशा। धर्म का अर्थ है अपने स्वभाव में थिर हो जाना, अपने में डूब जाना। कोई बाहर न रहा। किसी तरह का संबंध बाहर न रहा। गुरु का संबंध भी न रहा।
वही है गुरु, जो तुम्हें उस जगह पहुंचा दे, जहां गुरु से भी मुक्ति हो जाए। उस गुरु को सदगुरु कहा है। उस गुरु को मिथ्या—गुरु कहा है, जो तुम्हें अपने में अटका ले। जो कहे, मेरे से आगे मत जाना। बस, यही तुम्हारा पड़ाव आ गया, मंजिल आ गयी। अब आगे नहीं। जो तुम्हें अपने में अटका ले, वह मिथ्या—गुरु। जो तुम्हें अपने से पार जाने दे, जो सीढ़ी बन जाए, द्वार बन जाए; तुम चढ़ो और पार निकल जाओ, वही सदगुरु
We are all strangers on the path of this world. We have to meet for a moment, then we part ways. We walk together for an hour, this is how we settle the world. Then the paths diverge. When someone dies, his path is parted. Then there is no other option except saying goodbye. Then you will be able to find him again in eternity – it is impossible.
Therefore neither children are true, nor husband is true, nor wife is true, neither brother, nor sister, nor mother, nor father. These are relations, not truth. Relationships are also fleeting. Then asked: ‘Are you true?’
I am a little more truthful. The relationship between Guru and disciple is a little more true than the relationship between husband and wife. Because the relationship between husband and wife ends in the flesh. Or if it goes too deep, it reaches the mind.
The relationship between Guru and disciple starts from the mind and if it goes deep, it reaches to the soul. But still I say: A little more is true. Because even the relationship between Guru and disciple does not extend to God; Goes till the soul only. And you have to go to God, so one day you have to leave even the Guru. The limit of the soul came, that day the Guru left.
That is why Buddha has said. If I also meet you on the road, then cut my neck. If I meet you on the path, that is, if I start coming between you and your God, then remove me.
If Guru Dwar is built then it will be fine. The door itself means that one has to go beyond it. Hardly anyone waits at the door! How long will you stand at the door? There are hardly any stopping places at the gate. That allowed entry and went ahead. So there is Guru Dwar. That’s why Nanak was right, he called his temple Gurudwara. That’s it, Gurudwara is the Guru. That is the door. We have to go beyond that. Guru is a sign, wherever the sign is directed, go there.
Therefore, Guru is also a little more truthful, but the real truth is God. So here three things happened in worldly relations; Spiritual relationship, spiritual relationship. Worldly relations—husband, wife, children. The larger ones are on the upper side, reaching up to the body. Go very deep, till the heart.
Spiritual relationship – the relationship between disciple and guru. Or sometimes the relationship of lovers deeply in love. It starts from the mind. If you go deep, you reach the soul. And then there is no relation, you are left alone. God appears within you, you become God. Then there is no relation. There is no relation between God and man – there is no relation. Because God and man are not two.
So you ask ‘Are you true?’ A little more than Lalit and the children. But a little less than your relationship with God. Asked again. ‘Is religion true?’
Religion is truth. Dharma means: unrelated condition. Religion means becoming stable in one’s nature, being immersed in oneself. No one remained outside. There was no outside connection. There was no connection with the Guru either.
He is the Guru who can take you to that place where you can be liberated even from the Guru. That Guru is called Sadguru. That guru is called a false guru, who keeps you stuck in himself. Whatever he says, don’t go ahead of me. That’s it, your stop has arrived, your destination has arrived. No further now. The one who traps you in himself is a false guru. Which allows you to cross yourself, which becomes a ladder, a door; You climb up and cross, the same Sadguru