क्षणिक सुख सत्य नहीं

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हमे अंग संग खङे प्रभु भगवान श्री हरि की खोज करनी है। उस ज्योति में समाना है जो हमारे भीतर प्राण रूप में है। जो जन्म और मृत्यु से परे है।

जब तक हम अपने अन्तर्मन को नहीं टटोलेगे तब तक वही के वहीं बैठे हुए आते और जाते रहेंगे। परमात्मा ने हमें मनुष्य जन्म देकर बहुत बङी कृपा की है ।हम क्या करते हैं। परमात्मा की बनाई आकृति एक बार भी यह नहीं सोचती है कि हे परम पिता परमात्मा तुने मुझे पुरणतः घङ कर भेजा है।

इस आकृति में मेरे प्राण नाथ प्यारे बैठे हैं। आन्नद शान्ति प्रेम कहीं बाहर से ग्रंथ के पढने मात्र से प्राप्त होने वाला नहीं है। ये अन्तर्मन की खेती है। परमात्मा का नाम भजते रहने पर हमारी इच्छाएं पुरण होने लगती है।

परमात्मा जब हमारी भोतिक जीवन की इच्छाओं को पुरण करने लगे तब परम पिता परमात्मा के आगे नतमस्तक होकर प्रार्थना करें हे स्वामी भगवान् नाथ इस संसार में कोई भी चीज टिकने वाली नहीं है।

हे भगवान मै तुम्हे भजना चाहता हूं। तुम्हे दिल में बिठाना चाहता हूं तुम्हें निहारना चाहता हूं और तुम्हारा बन जाना चाहता हूं। हे परम सत्य के स्वरूप हे जगत गुरु मेरे दिल की तमन्ना यही कि एक बार तुम्हें पा जाऊं मैं। नहीं ये संसार का सुख मेरे काम का है जिसे देकर तुम मुझे रिझाना चाहते हो।

प्रभु मुझे तुम अपना बना क्यों नहीं लेते हो। प्यासे की प्यास को पानी ही बुझा सकता है। हे नाथ दिल में तङफ तुम से मिलन की है और तुम मुझे क्षणिक सुख से लुभाते हो मेंरे प्रभु प्राण नाथ ।

परमात्मा का नाम लेते हुए हमे जो भी प्राप्त हो उसे जगत में बांटते और त्यागते जाओ। यदि त्याग भाव नहीं आता है। तब हम आगे की सीढ़ी पर नहीं चढ सकते हैं। जय श्री राम अनीता गर्ग

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