एक भक्त के दिल की तङफ होती है कब मेरे अन्दर वैराग्य आएगा। भक्त सोचता है पुरण वैराग्य आ जाए मुझमे ऐसा वैराग्य हो मै चलते हुए भी न चलने वाला होऊ। सोते हुए भी जग रहा हूं भोजन करते हुए मै भोजन न करने वाला हूँ। मुझमें हर क्षण नाम ध्वनि गुंज रही है। सबकुछ ईश्वरमय हो तभी वैराग्य है।
एक यह भाव है दुसरे भाव में भक्त प्रभु प्राण नाथ का नाम चिन्तन करता है नाम करते हुए वैराग्य को याद करता है।
मन के अन्दर भक्ति का बैठना वैराग्य है प्रभु भाव में भक्त लीन हो जाता है तब मन से संसार निकल जाता है मन से संसार का निकलना वैराग्य है। प्रभु प्राण नाथ से मिलन की जब तङफ हृदय में जागृत होती है तब संसार निकल जाता है भक्त समर्पित प्रभु भगवान के होता है। आज हम समझते हैं घर से सन्यास धारण करने पर ही वैराग्य को धारण कर सकते हैं नहीं घर में रहते हुए आप अपने जीवन लक्ष्य पर दृष्टि को टिका कर रखे ।लक्ष्य की दृढ़ता आपको वैराग्य की और ले जाती है आपका दृढ सकंल्प शक्ति आपमें वैराग्य पैदा कर देती है संसार में रहते हुए बाहरी रूप से सब निभाते हुए हमे दृष्टि भीतर टिका कर रखे अपने आप को पढते को पढते हुए अध्यात्म हमारे भीतर समा जाये
परिस्थिति से भागकर संसार
नाम चिन्तन में वैराग्य शब्द का भी चिन्तन करने लगता है। भक्त जानता है घर त्यागने से वैराग्य की पुरणता साधक में आऐ और नहीं भी आए। एक गृहस्थ घर त्याग कर के वैराग्य धारण नहीं कर सकता है क्योंकि कर्तव्य सामने खङा है कर्तव्य से बढ़कर कुछ भी नहीं है। तब वह नाम चिन्तन करते-करते वैराग्य का चिन्तन करता है।
वह यह जानता है तु प्रतिदन वैराग्य का चिन्तन करता है तब तुझमें वैराग्य के भाव पैदा होने लगेंगे भगवान भक्त के दिल की जानते हैं। भक्त को भगवान का दृढ़ विश्वास है कि एक दिन भगवान की कृपा हो ही जाएगी। ऐसे भक्त अन्तर्मन से प्रभु चरणों में समर्पित है।
जय श्री राम अनीता गर्ग