*कारज सिध *

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इस संसार मे हम आये है तो अवश्य ही कोई कर्तव्य हमारा पूरा करना बाकी रह गया है जो पीछे पूरा नही कर सके। वह कर्तव्य भी पूरा करना है और आत्मकल्याण भी करना है। दोनो कार्य साथ साथ ही करने है। इसी समझ का आ जाना ज्ञान है। और ये कर्तव्य एवम आत्मकल्याण करने के लिए ह्रदय भाव चाहिए संकल्प से परिपूर्ण मन चाहिए। साथ ही साथ विषयो से वैराग्य चाहिए। तभी मुक्ति होगी अन्यथा पुनः आना ही होगा कोई रोक नही सकता।

अतः…..
चिन्तन कर ले रे मना जितनी जल्दी इस बात को हम समझ जाते हैं कि बहुत अधिक पढने से हमारे अन्तर्मन का अध्यात्म को ठेस पहुंचती है ऊपर से ऐसे लगता है अब मैं बहुत ज्ञानी बन गया हूँ। अन्तर्मन का अध्यात्म हमारे हजारों बार करने पर अनुभव पर टिका हुआ होता है। शब्द वहीं पुरण है जो तोल कर बोले जाते हैं पहले हम एक हनुमान चालीसा पढते थे उसमें भगवान को देखते उसे भक्ती बनाते वहीं हमारी शक्ति बनती उस हनुमान चालीसा में प्रेम का पाठ पढते।हनुमान चालीसा को पढते पढते कारज सिध हो जाते थे।

हनुमान चालीसा में प्रथम हम गुरु चरणों में शिश नवाते, एण्ड में राम लक्ष्‍मण सीता जी को हृदय में बिठाते है। हनुमान चालीसा पढते हुए अनजाने में गुरु की पुजा करते हैं। अन्तर्मन में भगवान राम को विराजमान करते हैं हनुमान चालीसा पढते पढते दर्शन भाव जाग्रत हो जाता है। दर्शन भाव भक्ति को दृढ करता है। जय श्री राम अनीता गर्ग

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