गत पोस्ट से आगे …………
राम का उपासक है, रकार जिस वस्तु में है उस को याद करते ही मुग्ध हो जाय | रकार उच्चारण होने से ही मुग्ध हो जाय | अध्यात्मरामायण में मारीच ने रावण को कहा है – राम बड़े बलवान हैं, मुझे उनसे इतना भय लगता है, वे सदैव पास में दीखते हैं | राज, रत्न, रमणी आदि शब्दों के उच्चारण होने से ही मुझे भय लगने लगता है | ऐसे राम से विरोध नहीं करना चाहिये |
राममेव सततं विभावये भीतभीत इव भोगराशिभि: |
राजरत्नरमणीरथादिभि: श्रोत्रयोर्यदि गतं भयं भवेत् ||
उसको भय से भगवान् की स्मृति होती थी | भय से भगवान् का स्मरण करने वाले को भी लाभ ही होता है | किसी से द्वेष है उससे आशंका हो कि वह मुझ पर घात करेगा तो उसको बहुत स्मृति रहती है | हत्या का मामला है | उसे यह मालूम हो कि तू पकड़ा जायगा तो उसे पुलिस आदि की बहुत स्मृति रहे | भय से भी स्मृति होती है, प्रेम से भी होती है | इसी प्रकार भगवान् में प्रेम होने से उनकी स्मृति ह्रदय में बनी रहती है | कहीं भगवान् का चित्र, नाम सामने आ जाय तो विह्वल हो जाय | किसी प्रकार भी भगवत-प्रेम का अंश प्राप्त हो जाय तो विह्वल हो जाय, इसलिये हम लोगों को प्रेमी होना चाहिये |
भगवान् की प्रत्येक क्रिया आकर्षित करने वाली है | जैसे भगवान् श्रीकृष्णचन्द्रजी प्रत्येक क्रिया उनके भक्त गोप-गोपियों को आकर्षित करने वाली थी | भगवान की प्रत्येक क्रिया में आकर्षण शक्ति रहती है | इसका ख्याल करके भगवान् जो लीला करते हैं उसमे चित को लगायें | मन से भगवान् की लीलाओं का अनुभव करें, उनकी लीलाओं को सामने देखें | प्रत्यक्ष की तरह देखें कि वह लीला हो रही है |
— :: x :: — — :: x :: —
शेष आगामी पोस्ट में |
गीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रद्धेय जयदयाल गोयन्दका जी की पुस्तक *जन्म-मरण से छुटकारा* पुस्तक कोड १७९० से |
— :: x :: — — :: x ::—
[3]भगवान् से मानसिक
रमण की विशेषता
Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email
One Response
I am a student of BAK College. The recent paper competition gave me a lot of headaches, and I checked a lot of information. Finally, after reading your article, it suddenly dawned on me that I can still have such an idea. grateful. But I still have some questions, hope you can help me.