कन्हैया दर्शन को शिव आए हैं

IMG WA

यशोदाजी शिवजी के पास आई है औए कहने लगी -महाराज -अगर भिक्षा कम लगती हो मै आपको कम्बल और कमंडल दू। आप हठ मत कीजिये। आप जो मांगो,वह मै देने को तैयार हूँ पर मै अपने लाला को बाहर नहीं लाऊँगी। वह अभी बालक है,आपके गले में सर्प है। आपको देखकर वह डर जायेगा।

शिवजी बोले -माँ,तेरा कन्हैया तो “काल का काल- ब्रह्म को ब्रह्म-शिव को धन और संत को सर्वस्व” है।
वह न तो किसी से डर सकता है और न उसे किसी की कुदृष्टि लग सकती है। वह तो मुझे पहचानता भी है।

यशोदाजी- यह आप क्या बोल रहे हो? मै आपको अब तक पहचान न सकी तो मेरा कन्हैया तो
अभी तीन दिन का है। आपको कैसा पहचान सकता है?

शिवजी ने कहा – माँ,बहुत दूर से लाला के दर्शन की आशा से आया हूँ।उसके दर्शन किये बिना मै पानी भी नहीं पियूँगा। मै बारह साल तक यहाँ बैठा रहूँगा पर दर्शन किए बिना नहीं जाऊँगा।
श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए मै साधु बना हूँ।
यशोदाजी ने वंदन कर कहा -आप हठ करो यह ठीक नहीं है। मै लाला को बाहर नहीं लाऊँगी।
बालकृष्ण के दर्शन की आशा से शिवजी एक पेड़ के नीचे जाकर बैठे है।

प्रेम अन्योन्य होता है। जिस तरह भक्त भगवान के दर्शन के लिए आतुर होते है।
भगवान भी भक्त के दर्शन के लिए आतुर होते है.
इस तरफ बाल कन्हैया को पता चला कि शिवजी आये है और माँ मुझे बाहर नहीं निकालती। वे जोरों से रोने लगे। रोते -रोते वे हाथ ऊँचे करके बताते है कि मुझे बाहर जाना है। फिर भी माँ बहार नहीं ले जाती।

गोपियाँ दौड़ती हुई आती है। तीन-चार दिन से कन्हैया बिलकुल रोया नहीं है,पर आज उसे क्या हो गया?
एक गोपी बोली-माँ, उस साधु के होंठ हिल रहे है। मानो-या न मानो उसी ने कुछ मन्त्र प्रयोग किया है
जिससे लाला रो रहा है। ऐसा साधु कभी देखा नहीं है।
दूसरी गोपी बोली-शायद शंकर भगवान तो लाला को आशीर्वाद देने नहीं आये है?
माँ मै लाला को उनके पास ले जाऊँगी तो वे उन्हें आशीर्वाद देंगे। यशोदाजी फिर भी नहीं मानती।
अन्त में शांडिल्य ऋषि को बुलाया और सब बात बताई।

शांडिल्य ऋषि पूरी बात समझ गए और कहा – पेड़ के नीचे जो साधु बैठे है उनके लिए कन्हैया रो रहा है।
वह साधु और कन्हैया का जन्मोजन्म से सम्बन्ध है। आँगन में साधु भूखे बैठे रहे वह ठीक नहीं है।
उनको कन्हैया के दर्शन कराओ।
बालकृष्ण को श्रृंगार किया है। यशोदाजी फिर भी घबराती है। उन्होंने दासी से कहा -साधु महाराज से कहना –
लाला को देखना किन्तु टिक-टिक कर मत देखना। उसे शायद नज़र न लग जाए।

शिवजी महाराज आँगन में आये है और अंत में उनकी जीत हुई है। यशोदाजी आँगन में आये है।
(कल्पना करो) सभी की हाजरी में कन्हैया का रोना बंद हुआ। शिवजी और कन्हैया की आँखे मिली है।
“हरि(विष्णु -या-नारायण) और हर (महादेव-या-रूद्र) दोनों के गाल में स्मित हुआ है।
लालाजीके दर्शन होते ही शिवजी को समाधि लगी है।

शिवजी के दर्शन होते ही कन्हैया को आनन्द हुआ है। वह हँसने लगा। यशोदाजी सोचती है कि घर में तो कन्हैया खूब रो रहा था और साधु की नजर पड़ते ही हँसने लगा। जरूर यह साधारण साधु नहीं है। परमानन्द हुआ है। शिवजी लालाजी के और लालाजी शिवजी के दर्शन करते है।

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *