( मैं का अहंकार )

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बात है प्रभु श्री कृष्ण के बाल्यकाल की। कन्हैया को माखन चोरी का बहुत शौक था।
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सब गोप ग्वालो के साथ मिलकर एक मंडली बनाई थी इस महत्वपूर्ण लीला को करने के लिए और बने खुद इस माखन चोर मंडली के अध्यक्ष।
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हर रोज पूरी मंडली किसी न किसी घर में जाकर माखन चोरी करती थी और फिर गोपियाँ आकर माता यशोदा से लाला की शिकायत करती.. पर माता उनकी बातो को नही मानती।
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एक दिन मंडली के सारे मित्र कन्हैया के पास आए और बोले- बोलो कन्हैया आज कहाँ चलना है माखन चोरी के लिए।
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श्रीजी कहते है कही नहीं आज तो हम अपने ही घर का माखन उडाएँगे। कन्हैया देखते है की माता आँगन में काम कर रही है इतने में उन्होंने अपने सभी मित्रों को अन्दर बुलाया।
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किये हुए उपकारो को परमात्मा कभी नहीं भूलते, रामावतार में वानरों ने प्रभु की बड़ी मदद की थी। आज भगवान उनको भी माखन खिला रहे है।
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इतने में यशोदा जी अन्दर आती है देखती है मटकी फूटी हुई है और सारा माखन बिखरा हुआ है।
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लाला को चोरी करते देख माता समझ जाती है की गोपियां सच कहती है कन्हैया को चोरी की आदत है।
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आज तो इसे पकड़ कर बंधना होगा। यशोदा जी लकड़ी लेकर कन्हैया के पीछे दौड़ी।
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मित्रों ने कन्हैया से कहा माँ आई भागो। आगे जगन्नाथ जी दोड़ते है और पीछे माता लकड़ी लिए दौड़ती है।
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जिन परमात्मा को योगी नहीं पकड़ पा रहे उनको पकड़ने के लिए यशोदा दौड़ रही है।
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बहुत दौड़कर यशोदा थक गई लेकिन कन्हैया हाथ नहीं आया। एसा क्यों हुआ?
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यह कारण एक बहुत बड़ी शिक्षा देता है। माता के हाथ में लकड़ी है। लकड़ी लिए पकड़ने वह दौड़े, लाला को यह पसंद नही।
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उसे डर लगता है। “यहाँ लकड़ी प्रतीक है अभिमान का। लकड़ी लेकर दौड़ना यानी अभिमान को साथ लिए दौड़ना, अभिमानी सेवा नही कर सकता।
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श्री कृष्णचन्द्र कहते है अपना अभिमान छोड़ कर मेरे पास आना ”
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यशोदा दौड़ते दौड़ते थक गई लेकिन कन्हैया हाथ न लगा। अब लकड़ी भी बोझ सी लगने लगी सो माता ने लकड़ी फेक दी।
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कन्हैया तो यही चाहते थे की माता लकड़ी रूपी अभिमान छोड़ दे। माता ने लकड़ी फेक दी तो न केवल कन्हैया रुका बल्कि वापिस भी आने लगा।
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यशोदा जी ने कन्हैया का मुख देखा। मुख दर्शन हुआ और लाला पकड़ा गया।
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भगवान सभी दोषों को क्षमा करते है लेकिन अभिमान को नहीं। अभिमान करने जैसा कुछ है नही.. फिर भी हम अभिमान क्यों करते है।
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माता ने लकड़ी अभिमान को त्यागा, साधन रहित हुई तो कन्हैया पकड़ा गया.. क्योकि जहा मैं का अहंकार है वहा हरि नहीं है।
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जय जय श्री राधे

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