नारद जी दर्शन करने आते हैं भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप का.

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पदम पुराण के अनुसार जो घर राधा रानी के चरण-चिन्हों से विभूषित होगा वहां भगवान नारायण (भगवान श्री कृष्ण) संपूर्ण देवताओं के साथ निवास करेंगे और भगवती लक्ष्मी भी सब प्रकार की सिद्धियों के साथ वहां पर मौजूद रहेगी (पदम पुराण खंड 4 अध्याय 133)

माता पार्वती ने भगवान शंकर के पूछा, अत्यंत मोहक रूप धारण करने वाले भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ किन किन विशेषताओं के कारण क्रीडा की थी मुझसे वर्णन कीजिए.

भगवान शंकर ने माता पार्वती को कहा- देवी पार्वती! एक समय की बात है मुनिश्रेष्ठ नारद यह जानकर कि भगवान श्री कृष्ण का प्राकटय हो चुका है वीणा बजाते हुए नंद जी के गोकुल में पहुंचे वहां जाकर उन्होंने देखा महायोगमाया के स्वामी सर्वव्यापी भगवान श्री कृष्ण अच्युत बालक का स्वांग धारण किए नंद जी के घर में कोमल बिछौनों से युक्त सोने के पलंग पर सो रहे हैं, और गोपकन्याएं बड़ी प्रसन्नता के साथ निरंतर उनकी और निहार रही है, भगवान का श्री विग्रह अत्यंत सुकुमार था, उनके काले काले घुंघराले बाल सब ओर से बिखरे हुए थे, किंचित्- किंचित् मुस्कुराहट के कारण उनके दो एक दांत दिखाई दे जाते थे, वे अपनी प्रभा से समूचे घर के भीतरी भाग में प्रकाश फैला रहे थे नग्न शिशु के रूप में भगवान की झांकी करके नारद जी को बड़ा हर्ष हुआ वह भगवान के प्रिय भगत तो थे ही, गोपति नंद जी से बातचीत करके सब बातें बताने लगे, नंद जी भगवान के भक्तों का जीवन अत्यंत दुर्लभ होता है आपके इस बालक का प्रभाव अनुपम है इसे कोई नहीं जानता, शिव और ब्रह्मा आदि देवता भी इसके प्रति सनातन प्रेम चाहते हैं, इस बालक का चरित्र सबको हर्ष प्रदान करने वाला होगा, भगवत भगत पुरुष इस बालक की लीलाओं का श्रवण, गायन और अभिनंदन करते हैं आपके पुत्र का प्रभाव अचिन्त्य हैं जिनका इसके प्रति हार्दिक प्रेम होगा वे संसार समुंदर से तर जाएगा उन्हें इस जगत की कोई भी बाधा नहीं सतायेगी, अतः नंद जी! आप भी इस बालक के प्रति निरंतर अनन्य भाव से प्रेम कीजिए

यों कहकर मुनिश्रेष्ठ नारद जी नंद के घर से निकले नंद ने भी भगवत बुद्धि से उनका पूजन किया और उन्हें विदा किया तदनन्तर वे महाभागवत मुनि मन ही मन सोचने लगे जब भगवान का अवतार हो चुका है तो उनकी परम प्रियतमा भगवती भी अवश्य अवतीर्ण हुई होगी, वे भगवान की क्रीड़़ा के लिए गोपी ने रूप धारण करके अवश्य ही प्रकट हुई होगी इसमें तनिक भी संदेह की बात नहीं है इसलिए अब मैं ब्रजवासियों के घर-घर घूमकर इसका पता लगाऊंगा, ऐसा विचारकर मुनिवर नारद जी  ब्रजवासियों के घरों में अतिथिरूप में जाने लगे, उनके द्वारा विष्णु बुद्धि से पूजित होने लगे नंदकुमार श्री कृष्ण में समस्त गोप गोपियों का प्रगाढ प्रेम देखकर नारद जी ने उन्हें मन ही मन प्रणाम किया.

तदनन्तर बुद्धिमान नारदजी किसी श्रेष्ठ गोप के विशाल घर में गए वह नंद के सखा महात्मा भानु का घर था वहां जाने पर भानु ने नारद का विधिवत सत्कार किया,  तत्पश्चात महामना नारद जी ने पूछा, साधो! तुम अपनी धर्मनिष्ठता के लिए इस भूमंडल पर विख्यात हो, बताओ, क्या तुम्हें कोई योग्य पुत्र अथवा उत्तम लक्षणों वाली कन्या है? मुनि के ऐसा कहने पर भानु ने अपने पुत्र को लाकर दिखाया, उसे देखकर नारद ने कहा- तुम्हारा यह पुत्र बलराम और श्रीकृष्ण का श्रेष्ठ सखा होगा, तथा आलस्यरहित होकर सदा उन दोनों के साथ विहार करेगा.

भानु ने कहा- मुनिवर! मेरे एक पुत्री भी है, जो इस बालक की छोटी बहन भी है कृपया उसपर भी दृष्टिपात कीजिए.

यह सुनकर नारद के मन में बड़ा कौतूहल हुआ उन्होंने घर के भीतर प्रवेश करके देखा, भानु की कन्या धरती पर लोट रही है, नारद ने उसे अपनी गोद में उठा लिया, उस समय उनका चित अत्याधिक स्नेह के कारण विहवल हो रहा था, महा मुनि नारद भगवत प्रेम के साक्षात स्वरूप है बालरूप श्रीकृष्ण को देखकर जो उनकी अवस्था हुई थी वही इस कन्या को देखकर भी हुई है, उनका मन मुग्ध हो गया, वे एकमात्र रस के आश्रयभूत परमानंद के समुंदर में डूब गए काफी समय तक नारदजी पत्थर की मूरत बन गए कुछ समय बाद धीरे-धीरे उनकी आंखें खुली और महानआश्चर्य में गुम होकर काफी देर तक गुमसुम रहे, तत्पश्चात वह महाबुद्धिमान महर्षि मन ही मन इस प्रकार सोचने लगे- मैं स्वच्छंद विचरने वाला हूं मैंने सभी लोकों में भ्रमण किया परंतु रूप में इस बालिका की समानता करने वाली कोई स्त्री नहीं देखी, महामायास्वरूपिणी गिरिराज कुमारी भगवती उमा को भी देखा, किंतु वह भी इस बालिका की शोभा को कदापि नहीं पा सकती, लक्ष्मी सरस्वती विद्या आदि सुंदर स्त्रियां तो कभी इसके सौंदर्य की छाया का भी स्पर्श करती नहीं दिखाई देती, अतः मुझ में इसके तत्व को समझने की किसी प्रकार की शक्ति नहीं है यह भगवान की प्रियतमा है, इसे प्राय: दूसरे लोग भी नहीं जानते, जिसके दर्शन मात्र से ही श्री कृष्ण के चरण कमलों में मेरे प्रेम की जैसी वृद्धि हुई है वैसी आज से पहले कभी भी नहीं हुई थी, अतः मैं अब एकांत में इस देवी की स्तुति करूंगा इसका रूप श्रीकृष्ण को अत्यंत  आनंद प्रदान करने वाला होगा ऐसा विचार करके नारद जी ने भानु को कहीं और भेज दिया और स्वयं एकांत में उस दिव्य रूपधारिणी बालिका की स्तुति करने लगे, देवी! तुम महा योगमाया थी, तुम्हारा तेजपुंज महान है, तुम महान माधुर्य की वर्षा करने वाली हो, तुम्हारे दृष्टि सदा सुख देने वाली है. मेरा महान सौभाग्य है कि मैंने आपके इस बाल रूप में दर्शन किए हैं इच्छा-शक्ति,ज्ञान-शक्ति, और क्रिया-शक्ति यह सब तुम्हारे अंश-मात्र हैं. भगवान श्री कृष्ण वृंदावन में तुम्हारे ही साथ क्रीड़ा करते हैं. कुमारावस्था में भी तुम अपने रूप से विश्व को मोहित करने वाली हो तुम्हारा जो स्वरूप भगवान श्री कृष्ण को परम प्रिय है मैं उसके दर्शन करना चाहता हूं, मुझ पर दया करके वह मनोहर रूप प्रकट करो जिसे देखकर भगवान श्री कृष्ण नंद नंदन तुम पर मोहित हो जाते हैं.

यह कहकर देव ऋषि नारद भगवान श्री कृष्ण का ध्यान करते हुए इस प्रकार गुणगान करने लगे भक्तों के चित चुराने वाले भगवान श्री कृष्ण तुम्हारी जय हो, वृंदावन के प्रेमी गोविंद तुम्हारी जय हो, मोर मुकुट धारण करने वाले गोपी मोहन तुम्हारी जय हो, नारद जी इस प्रकार कीर्तन कर रहे थे उसी समय वह बालिका क्षणभर में अत्यंत मनोहर दिव्य रूप धारण करके पुन: नारद जी के सामने प्रकट हुई वह रूप चौदह वर्ष की अवस्था अनुरूप और सौंदर्य की चरम सीमा को पहुंचा हुआ था, नारद ने भानु जी को कहा- जो घर इसके चरण चिन्ह से ही विभूषित होगा वहां पर श्री हरि नारायण भगवान श्री कृष्ण सभी देवताओं के साथ वहां पर वास करेंगे और भगवती लक्ष्मी जी सभी सिद्धियों के साथ वहां मौजूद रहेगी ऐसा कहकर नारद ने मन ही मन उस देवी को प्रणाम किया और गवहर वन के भीतर चले गए (पुराण खंड 4 अध्याय 133)



According to Padma Purana, the house which is adorned with the footprints of Radha Rani, Lord Narayana (Lord Shri Krishna) will reside there along with all the deities and Goddess Lakshmi will also be present there with all kinds of siddhis (Padma Purana Volume 4 Chapter 133) )

Mother Parvati asked Lord Shankar, please describe to me the characteristics due to which Lord Krishna, who assumed a very attractive form, played with the Gopis.

Lord Shankar said to Mother Parvati – Goddess Parvati! Once upon a time, sage Narada, knowing that Lord Shri Krishna had appeared, reached Nand ji’s Gokul playing the veena and went there and saw Lord Krishna, the omnipresent Lord of Mahayogmaya, in the guise of an infallible child, in the house of Nand ji. Sleeping on a golden bed full of bedding, and the gopkanyas are continuously gazing at him with great happiness, the Sri Deity of the Lord was very soft, his black curly hair scattered all over, slightly smiling because of One or two of his teeth were visible, he was spreading light in the entire interior of the house with his effulgence, Narad ji was overjoyed by the tableau of God in the form of a naked baby. After talking to him, he started telling everything, Nand ji, the life of the devotees of God is very rare, the effect of this child of yours is unique; Will be the provider, Bhagwat Bhagat Purush hearing, singing and Congratulations, the influence of your son is unimaginable, those who have heartfelt love for him, the world will be able to cross the sea, no obstacle in this world will bother him, so Nand ji! You also love this child with exclusive feelings.

Having said this, Nanda, who came out of the house of sage Narad ji, also worshiped him with Bhagwat intellect and sent him away. After that, Mahabhagwat Muni started thinking in his mind that since God has incarnated, then his most beloved Bhagwati must also have incarnated. She must have appeared in the form of a Gopi for the play of God, there is no doubt about it, so now I will find out about it by visiting every house of the Brajvasis, thinking that Munivar Narad ji started going to the homes of the Brajvasis as a guest. Seeing the deep love of all the gopes and gopis for Nandkumar Shri Krishna, who started worshiping Vishnu through him, Narad ji bowed down to him in his heart.

After that intelligent Naradji went to the huge house of a great Gop, that was the house of Mahatma Bhanu, a friend of Nanda. On going there, Bhanu duly felicitated Narad, after that Mahamana Narad ji asked, Saints! You are famous on this earth for your piety, tell me, do you have any worthy son or daughter with good qualities? On being told by the sage, Bhanu brought his son and saw him, Narad said – This son of yours will be the best friend of Balram and Shri Krishna, and without laziness will always spend time with both of them.

Bhanu said – Munivar! I also have a daughter, who is also the younger sister of this child, please look into her too.

Hearing this, Narada was very curious, he entered inside the house and saw Bhanu’s daughter rolling on the earth, Narad lifted her in his lap, at that time his heart was trembling due to excessive affection, Maha Muni Narad is the personification of Bhagwat love. Seeing the child Shri Krishna, his condition was the same when he saw this girl. After some time, his eyes slowly opened and remained lost in great wonder for a long time, after that the great wise Maharishi started thinking in this way – I am a free wanderer, I have traveled in all the worlds but in the form of this girl. Haven’t seen any woman equal to her, Mahamayaswarupini Giriraj Kumari Bhagwati Uma too, but she too can never match the beauty of this girl, Lakshmi Saraswati Vidya etc. beautiful women never seem to even touch the shadow of her beauty, Therefore I have no power to understand its essence This is the beloved of God, who is not even known to others, whose darshan has increased my love for the lotus feet of Shri Krishna like never before; I will praise her thinking that her form will give immense pleasure to Shri Krishna, Narad ji sent Bhanu somewhere else and himself started praising that divine form of girl, Goddess! You were the great Yogmaya, your splendor is great, you are the one who showers great sweetness, your vision is always the one who gives happiness. It is my great fortune that I have seen you in this form of a child. Will-power, knowledge-power, and action-power are all just a part of you. Lord Shri Krishna plays with you in Vrindavan. You are going to fascinate the world even in your virginity. Let’s go.

By saying this, Dev Rishi Narad started praising Lord Shri Krishna while meditating in this way, hail you Lord Shri Krishna, who steals the hearts of the devotees, hail you Govind, the lover of Vrindavan, hail you Gopi Mohan, who wears the peacock crown, Narad ji. While doing kirtan in this way, at the same time, the girl appeared in front of Narad ji in a very graceful divine form in a moment. The house which will be decorated with its footprints, Shri Hari Narayan Lord Shri Krishna will reside there along with all the deities and Bhagwati Lakshmi ji will be present there with all the achievements. Went inside the forest (Purana Volume 4 Chapter 133)

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