मीरा चरित भाग- 48

आज महाराणा साँगा का मुख प्रसन्नता से खिल उठता था।अस्सी घावों भरी देह, एक हाथ, एक पाँव और एक आँख से अपंग होने पर भी आजतक किसी को उनके मुख की ओर देखने की हिम्मत नहीं हुई थी।कोई नहीं बता सकता था कि उनकी कौन सी आँख है और कौन सी नहीं।वे ही महाराणा साँगा आज प्रसन्न हो उमरावों को गले लगा रहे थे।अपने सर्वगुण सम्पन्न लक्ष्मण बलराम से सुंदर युवा पुत्र को वर वेश में वधू के साथ देखकर उनका हर्ष हृदय में नहीं समा पा रहा था।
आरती कर नजर उतार महारानियों ने वर-वधू को माया में ला बिठाया।माया को धोक दे, उन्हें पुन: रथ में बिठा देवताओं को धोक देने भेजा गया।लौटकर कंगन डोरडे खोलने माया में आये।सर्वप्रथम काले तिल मिलाये मीठे चावल के सात सात कौर दोनों को एक-दूसरे को देने थे।दूध की परात में स्वर्ण मुद्रा डाल दोनों को खोजने को कहा गया।भोजराज तो वैसे ही दूध में हाथ फेरते रहे, तीनों ही बार जीत मीरा की ही हुई।
उदय कुँवर बाई सा (भोजराज की बहिन) ने कहा- ‘नहीं बावजी आप तो यों ही हाथ फेर रहें थे।जानबूझकर भाभीसा को जिता रहे हैं।’

भोजराज उसकी ओर देख कर मुस्करा दिये।उदा ने होठों पर अँगुली रख कर चुप रहने का संकेत करते हुए कहा- ‘बोलियेगा नहीं हो? अकाल पड़ जायेगा।विवाह मंडप में तो नहीं बोले न, नहीं तो बेचारा मेड़ता अकाल से सूख जायेगा।’ साथ जाने वाली दासियों ने बताया कि नहीं बोले। कंगन खोलते समय मीरा ने दोनों हाथों से उनके कंगन डोरडे खोल दिए पर भोजराज को तो एक ही हाथ का प्रयोग करना था, इस पर भी वे सावधानी बरत रहे थे कि हाथ से हाथ न छू जाये।बैठते समयभी अपने और मीरा के बीच थोड़ा अंतर रखा तो भाभियों और बहिनों ने थोड़ा धक्का देकर समीप खिसकाते हुये कहा- ‘लालजी सा पास खिसक कर बैठिये।अभी का अंतर सदा ही आँतरा ( अंतर- दूरी) रहता है।
‘वह तो है ही’- भोजराज ने मन में कहा।
‘ऐसे कहीं कंगन खुलते हैं बावजी’- उदा ने कहा- ‘मैं सहायता करूँ?’
पुरोहितानी ने मना किया- ‘यह तो महाराज कुमार को ही खोलना है।’
‘ जो न खुले’ उदा ने पूछा।
‘ बाई सा ऐसा कभी होता है’
‘ अरे मेड़ता की स्त्रियों ने कस कस के सात गाँठे लगाईं हैं और बावजी हुकुम का तो हाथ काँप रहा है।खुलेगा कैसे ?’

मीरा का हाथ दु:ख चला तो उसने अपने घुटनों पर हाथ रख लिया।भोजराज भी क्या करें, उनकी दृष्टि कभी मेहंदी रंजित अँगुलियों पर जा ठहरती, कभी हथफूल पर और कभी हाथी दाँत के बने चूड़े से शोभित कलाईयों पर।वे भरसक प्रयत्न करके कंगन पर नज़र केन्दित करते हुए गाँठ खोलने का प्रयत्न करते किंतु दृष्टि भटक ही जाती।स्त्रियाँ विनोद कर कहीं थीं और बेटियाँ बहिनें उत्साह दिला रहीं थीं- ‘हारने का नाम हमारे वंश में नहीं है।बावजी हुकुम भी हारेगें नहीं।दूध परात में तो भाभीसा का मन रखने के लिए जानबूझकर जिता दिया था।अरे यह डोरडा है ही क्या, हमारे बावजी हुकुम न्याय में कठिन से कठिन गाँठ सुलझा देते हैं।युद्ध के मैदान में सात सौ वीरों को अकेले ही मार भगाते हैं।इन सात गाँठों की क्या बिसात है।अरे बावजी हुकुम तो ऐसे लाल हुये जा रहे हैं मानों यह बीनणीं हो।लगता है कि लालजी सा जानबूझकर देर लगा रहे हैं।’
भाभी ने कहा- ‘और नहीं तो क्या, देखो जरा इनकी नजर किधर है? इस प्रकार तो प्रात: तक गाँठ नहीं खुलने की।’
‘अहा बावजी हुकुम देखिए न ये भाभियाँ कितनी डींग मार रही हैं।कृपाकर अपने साथ हमारी भी लाज रख लीजिए न।’

कठिन प्रयत्न करके पाँच गाँठें भोजराज ने खोल दीं।अब दो और रह गईं।तब धीरे से मीरा ने अपना दूसरा हाथ बढ़ाया, यह देख कर भोजराज ने अपना हाथ हटा लिया।कोई कुछ समझे तब तक मीरा ने दोनों गाँठें खोल दीं।यह देखकर सब स्त्रियाँ हँसने लगीं।
बहुत रात गये मीरा को उसके महल में पहुँचाया गया।दासियों ने एक कक्ष में गिरधर लाल को पधरा दिया।मीरा भी वहीं पहुँची, भोग आरती करके शयन से पूर्व वह तानपूरा लेकर गाने लगी-

म्‍हाँरे घर होता जाज्‍यो राज।
अब के जिन टाला दे जावो, सिर पर राखूँ बिराज।
म्‍हे तो जनम-जन्‍म की दासी, थे म्‍हाँका सिरताज।
पावणड़ा म्‍हाँके भलाँ ही पधारो, सब ही सुधारण काज।
म्‍हे तो बुरी छाँ थाँके भली छै घणेरी, तुम हो एक रमराज।
थाँमे हम सबहिन की चिंता तुम, सबके हो गरिब निवाज।
सबके मुगट सिरोमनि सिर पर, मानुँ पुण्‍य की पाज।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, बाँह गहे की लाज।

जै- जैवंती राग उस मधुर कंठ के मिलने से अपूर्व हो उठा।भोजराज ने शयन कक्ष में साफा उतार कर रखा ही था कि मधुर रागिनि ने कर्ण स्पर्श किया।वे अभिमंत्रित नाग से उस ओर चल दिए। वहाँ पहुँच कर उनकी आँखे मीरा के मुख कंज की भ्रमर हो जा लगीं।भजन पूरा हुआ तो उन्हें चेत आया।प्रभु को प्रणाम करके लौट आये।

शुभ दिन शोधकर बहू की मुँह दिखाई हुई।जिसने भी घूँघट उठाकर देखा देखती ही रह गई।प्रशंसा के शब्द भी सपष्ट न हो पाये।सभी के मन वचन बहू की रूप सराहना में मुखर थे।पगेलागणी हुई।बहू द्वारा गुरूजनों के चरण स्पर्श होने पर अपनी शक्ति के अनुसार सभी ने मुँह दिखाई दी।महाराणा ने पुर और मांडल ये दो परगने दिये।इनमें से मीरा ने दो हजार बीघा सिंचित भूमि अपने साथ मेड़ता से आये हुए श्रीगजाधर जोशी को दी।

भक्तिपूर्ण पारिवारिक जीवन…..

मीरा अपने नित्यकर्म में लग गई।अवश्य ही अब इसमें भोजराज की परिचर्या एवं समय पर सासुओं की चरण वंदना भी समाहित हो गई।आरम्भ में मीठी रागिनि सुनकर ससुराल के कई लोग इकट्ठे हो जाते।दासियाँ उनकी यथायोग्य अभ्यर्थना करतीं।मेतड़नी के नाचने गाने की चर्चा महलों से निकल कर महाराणा के पास पहुँची।

‘यों तो बीनणी को नाचने गाने को कहे तो कहती है मुझे नहीं आता और उस पीतल की मूरत के सामने बाबुड़ियों (साधुनियों) की तरह घुँघरू बाँध कर तालें बजाती हुई थिरक थिरक कर नाचती है’- उसकी छोटी सास हाड़ी रानी (कर्मावती) ने पति से कहा- ‘बहुत सौभाग्यशाली हैं हम कि ऐसी बहू प्राप्त हुई।’
महाराणा ने कहा- ‘वह हमें नहीं तीनों लोकों के स्वामी को रिझाने के लिए नाचती गाती है।
क्रमशः



Today Maharana Sanga’s face used to blossom with happiness. Despite being crippled with eighty wounds, one hand, one leg and one eye, no one had the courage to look at his face till date. No one could tell that his Which eye is there and which is not. Maharana Sanga himself was happy today and was hugging the Umrao’s. His heart could not contain his joy seeing the beautiful young son of Lakshman Balram with his bride dressed as a groom. After performing aarti, the queens made the bride and groom sit in Maya. Betraying Maya, they were again sent in a chariot to deceive the deities. Returning, came to Maya to open the bracelet door. Kaur had to give both of them to each other. They were asked to find both by putting a gold coin in the bowl of milk. Bhojraj kept on turning his hands in the milk, Meera won all the three times. Uday Kunwar Bai Sa (Bhojraj’s sister) said- ‘No Bavji, you were just turning your hands. You are deliberately making Bhabhisa win.’

Bhojraj smiled looking at him. Uda kept a finger on his lips indicating to remain silent and said- ‘Will you speak? There will be a famine. You didn’t speak in the wedding hall, otherwise poor Medta will dry up due to the famine. While opening the bracelet, Meera opened her bracelet doors with both hands, but Bhojraj had to use only one hand, even then he was careful not to touch hand to hand. Even while sitting, there was a slight difference between himself and Meera. When I kept it, the sisters-in-law and sisters pushed me a little and pushed me closer and said- ‘Lalji, move closer and sit. ‘He is there’ – Bhojraj said in his mind. ‘Bracelets open like this somewhere, Bavji’- Uda said- ‘Shall I help?’ The priest refused – ‘Only Maharaj Kumar has to open it.’ ‘The ones that don’t open’ Uda asked. ‘Bai sa aisa hai kabhi hota hai’ ‘ Hey, the women of Merta have tightly tied seven knots and Bavji Hukum’s hand is trembling. How will it be untied?’

When Meera’s hands were in pain, she put her hands on her knees. What should Bhojraj also do, his eyes sometimes fixed on the henna-stained fingers, sometimes on the hand flowers and sometimes on the wrists adorned with bangles made of ivory. Focusing on the bracelet, he would try to untie the knot, but his vision would go astray. The women were joking and the daughters and sisters were encouraging – ‘The name of defeat is not in our dynasty. To keep Bhabhisa’s mind, he had won deliberately. Arey, what is this Dorda, our Bavji Hukum solves the most difficult knots in justice. He single-handedly kills seven hundred heroes in the battlefield. What about these seven knots? It is a chessboard. Hey Bavji, the spades are being red as if it were a pick. It seems that Lalji is deliberately delaying.’ Sister-in-law said- ‘And if not then what, just see where his eyes are? In this way the knot could not be untied till morning. ‘Aha Bavji Hukum, see how much these sisters-in-law are bragging. Please keep our shame along with yours.’

With great effort, Bhojraj untied five knots. Now two more were left. Then Meera slowly extended her other hand, seeing this, Bhojraj withdrew his hand. Meera untied both the knots till someone understood something. All the women started laughing. After a long night Meera was taken to her palace. The maidservants brought Girdhar Lal to a room.

There is no rule in my house. If you avoid this now, I will keep it on your head. I have been a maidservant for many births, I was the crown of my mother. Come to the holy place only for the good, everything is for improvement. Thank you for being bad, you are a Ramraj. You are the concern of all our sisters, everyone’s poor life. Everyone’s crown is on their head, I believe in the glory of virtue. Meera’s Lord Girdhar Nagar, shame on the arm.

Jai-Jaivanti melody became unique after meeting that melodious voice. Bhojraj had taken off his turban in the bedroom when the melodious Ragini touched his ear. After reaching there, his eyes started getting confused by Meera’s mouth Kanj. When the bhajan was completed, he got alert. He returned after saluting the Lord.

On an auspicious day, the daughter-in-law’s face was visible. But everyone showed their face according to their power. Maharana gave Pur and Mandal these two parganas. Out of these Meera gave two thousand bighas of irrigated land to Shree Gajadhar Joshi who came with her from Merta.

Devotional family life…..

Meera got engaged in her daily work. Of course, now Bhojraj’s care and mother-in-law’s feet were also included in this. The discussion left the palaces and reached the Maharana.

‘Even if Binani is asked to sing and dance, she says that she does not know how to dance and dances in front of that brass idol like a babudis (sadhunis) tying ghungroos and dancing to the beats’- her younger mother-in-law Hadi Rani (Karmavati) Told the husband- ‘We are very fortunate to have such a daughter-in-law.’ Maharana said- ‘She does not sing to please the Lord of the three worlds. respectively

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *