मीरा चरित भाग- 70

वे पिता को अपनी निधि दिखाना चाहते थे, समझाना चाहते थे।वे चाहते थे कि जो उन्हें मिला, वह सबको मिले, किंतु सुख के दीवानों को फ़ुरसत कहाँ देखने सुनने की?’
‘बाई सा हुकुम एक बात फरमाईये, क्या भक्त, धर्मात्मा और भले लोग पिछले जन्म में दुष्कर्म ही करके ही आये हैं जो वर्तमान में दु:ख पाना उनका भाग्य बन गया है और सभी खोटे लोग पिछले जन्म में धर्मायती थे कि इस जन्म में मनमानी करते हुए पिछले कर्मों के बल पर मौज मना रहें हैं?’
‘अरे नहीं ऐसा नहीं होता।शुभ अशुभ और मिश्रित, इस प्रकार के कर्म करने वाले ये तीन भाँति के मनुष्य होते हैं।इनमें से मिश्रित कर्म करने वालों की संख्या अधिक है।इतने पर भी पापी केवल पाप ही नहीं करते, जाने अनजाने में किसी न किसी तरह के कुछ न कुछ पुण्य वे करते ही हैं।इसी प्रकार पुण्यात्मा के द्वारा भी कोई न कोई पाप हो ही जाता है।तुनमे देखा होगा मिथुला, माता पिता अपनी संतान में तनिक सा भी खोट सह नहीं पाते।यदि दो बालक खेलते हुए लड़ पड़ेंतो माँ बाप अपने ही बच्चे को डाँटते हैं कि तू उसके साथ खेलने क्यों गया?ठीक वैसे ही प्रभु अपने भक्त में तनिक सी भी कालिख नहीं देख नहीं सह पाते।जब प्रारब्ध बनने का समय आता है तो भक्त के संचित कर्मों में से ढूँढ ढूँढ करके बुरे कर्मों का समावेश किया जाता हैकि शीघ्र से शीघ्र ये सब समाप्त हो जाये और वह प्रभु चरणों में पहुँच जायें।पापियों पर दया करके शुभ कर्मों का फल प्रारब्ध भोग में समावेशित किया जाता है कि किसी प्रकार यह सत्संग पाकर सुधर जाये।भक्त के पास तो भगवन्नाम रूपी चिंतामणि है, जिसके बल सेवह कठिन दु:ख और विपत्तियों कोसह जाता है, फिर प्रभु की दृष्टि उस पर से जरा भी हटती नहीं।यही कारण है कि भक्त सज्जन दु:खी और दुर्जन सुखी दिखाई देते हैं।’
‘जगत में इतने लालच हैं बाईसा हुकुम, मनुष्य का मन विचलित न हो, यह असंभव प्राय है।यदि भक्त नमक जीव अशेष दु:ख उठाकर कभी लालच की शिला पर फिसल पड़ा तो बेचारा दोनों से गया।’- मिथुला ने कहा और दूसरी दासियों ने भी मुस्करा कर सिर झुका लिया।
‘यदि इस पथ का पथिक विचलित होकर संसार के प्रलोभनों की शिला पर फिसल भी जाये, फिर भी उसी जीवन में ऐसे कई प्रसँग उपस्थित हो जाते हैं कि वह सम्हँल जाये।यदि नहीं सम्हँलते तो अगला जन्म लेने पर जहाँ से उसने साधना छोड़ी थी, वहीं से आगे चल पड़ेगा।उसके अराध्य बार बार फिसलने का खतरा उपस्थित नहीं होने देगें।अपने भक्त की सम्हाँल वे स्वयं करते हैं, मिथुला।दु:खो की सृष्टि मनुष्य को उजाला करने के लिए हुई है।दु:खसे वैराग्य का जन्म होता है, क्योंकि सुख की प्राप्ति के लिए किये गये प्रयत्न को प्रभु निरस्त कर देते हैं।हार थक के वो संसार की ओर पीठ करके चलने लगता है।फिरतो क्या कहें? संत शास्त्र और वे सभी उपकरण जो उसकी उन्नति में आवश्यक हैं, एक एक करके प्रभु जुटा देतें हैं।इस प्रकार एक बार इस पथ पर पाँव धरने के पश्चात लक्ष्य के शिखर तक पहुँचना आवश्यक हो जाता है, भले हा दौड़ कर पहुँचे या पंगु की भाँति सरकते सरकते पहुँचे।उसके लिए संसार के द्वार बंद हो गये।जिसने एक बार सच्चे मन से यहजानना चाहा कि ईश्वर क्या है? अथवा मैं कौन हूँ? उसका नाम ज्ञानी या भक्त की सूचि में लिख गया।अब वह दूसरी ओर जाने के लिए चाहे जितना भी प्रयत्न करे, कभी सफल नहीं हो पायेगा।गिर गिर करके उठना होगा।भूल भूल कर पुन: पथ पकड़ना होगा।पहले और पिछले सब कर्मों में छाँट छूँट करके वे कर्मफल प्रारब्ध बनेगें, जो लक्ष्य की ओर ठेल दें।जैसे स्वर्णकार स्वर्ण को, जब तक खोट न निकल जाये, तब तक बार बार भट्ठी में पिघलाकर ठंडा करता है और फिर कूट पीटकर, छीलकर और नाना रत्नों से सजा कर सुंदर आभूषण तैयार कर देता हैं, वैसे ही प्रभु भी जीव को तपा तपा कर मार मार कर महादेव बना देतें हैं।एक बार चल पड़ा फिर ते आनंद ही आनंद है।’

‘परसों एक महात्मा फरमा रहे थे कि कर्मफल या तो ज्ञान की अग्नि में भस्महोते हैं अथवा भोगकर ही समाप्त किया जा सकता है, तीसरा कोई उपाय नही है।’- चम्पा ने पूछा- ‘बाईसा हुकुम, भक्त यदि मुक्ति पा ले तो उसके संचित कर्मों का क्या होगा?’
‘ये कर्म भक्त का भला बुरा करने और कहने वालों में बँट जायेगे।समझी?’
मीरा ने मुस्करा कर चम्पा की ओर देखा- ‘लगता है आजकल चप्पा बहुत गुनने लग गई है।’
चम्पा ने मुस्करा कर सिर झुका लिया- ‘सरकार की चरण रज का प्रताप है।लगता है मैनें किसी जन्म में ईश्वर कौन है? यह जानने की इच्छा की होगी।इसी कारण प्रभु ने कृपा करके मुझे इन चरणों का आश्रय प्रदान किया है।’

क्षुब्ध उदयकुँवर बाईसा का गुबार……

ज्यों ज्यों विक्रमादित्य का क्रोध बढ़ता जाता,मीरा का यश भी बढ़ता जा रहा था।मंदिर और महल की ड्योढ़ी पर यात्रियों संतों की भीड़ लगी ही रहती।जो मीरा के भजन लिखना चाहते थे, ऐसे लोग चम्पा को घेरे रहते क्योंकि भजन पुस्तिका उसी के पास रहती।यहसब देख सुन करके महाराणा के कलेजे में ऐंठन होती, पर करें क्या? सभी यही कहते- ‘पहले ससुर और पति ही कुछ नहीं कहते थे, तो अब कुछ कहने में क्या सार है?’
रनिवास की स्त्रियाँ भी दो हिस्से में बँटी हुई थीं।कुछ मीरा की ओर और कुछ कर्मावती बाई एवं उदयकुँवर बाईसा की ओर। इन्हें महाराणा की शह मिली हुई थी। कभी-कभी कर्मावती कहती, ‘कब मरेगी यह मेड़तणी? यह मरे तो राज्य में और घर में सुख शांति आये।जब से इसका का पाँव पड़ा है, तब से आने वाले कष्टों की सीमा नहीं।’

एक दिन ईडर गढ़ उदयकुँवर बाईसा के पति पधारे। सारी हँसी ख़ुशी के बीच उन्होंने पत्नी को उलाहना दिया, ‘तुम्हारी भाभी मौड़ौं की भीड़ में नाचती गाती है।कैसी रीति है हिन्दू पति राणा के घर की?’
उदयकुँवर बाईसा मन ही मन कट कर रह गईं।दूसरे ही दिन आकर उन्होंने सारी भड़ास मेड़तणी भाभी पर निकाल दी।
बाईसा उदयकुँवर ने कहा- ‘भाभी म्हाँरा, जानतीं हैं आप अपनी करतूतों का परिणाम?
क्रमशः



वे पिता को अपनी निधि दिखाना चाहते थे, समझाना चाहते थे।वे चाहते थे कि जो उन्हें मिला, वह सबको मिले, किंतु सुख के दीवानों को फ़ुरसत कहाँ देखने सुनने की?’ ‘बाई सा हुकुम एक बात फरमाईये, क्या भक्त, धर्मात्मा और भले लोग पिछले जन्म में दुष्कर्म ही करके ही आये हैं जो वर्तमान में दु:ख पाना उनका भाग्य बन गया है और सभी खोटे लोग पिछले जन्म में धर्मायती थे कि इस जन्म में मनमानी करते हुए पिछले कर्मों के बल पर मौज मना रहें हैं?’ ‘अरे नहीं ऐसा नहीं होता।शुभ अशुभ और मिश्रित, इस प्रकार के कर्म करने वाले ये तीन भाँति के मनुष्य होते हैं।इनमें से मिश्रित कर्म करने वालों की संख्या अधिक है।इतने पर भी पापी केवल पाप ही नहीं करते, जाने अनजाने में किसी न किसी तरह के कुछ न कुछ पुण्य वे करते ही हैं।इसी प्रकार पुण्यात्मा के द्वारा भी कोई न कोई पाप हो ही जाता है।तुनमे देखा होगा मिथुला, माता पिता अपनी संतान में तनिक सा भी खोट सह नहीं पाते।यदि दो बालक खेलते हुए लड़ पड़ेंतो माँ बाप अपने ही बच्चे को डाँटते हैं कि तू उसके साथ खेलने क्यों गया?ठीक वैसे ही प्रभु अपने भक्त में तनिक सी भी कालिख नहीं देख नहीं सह पाते।जब प्रारब्ध बनने का समय आता है तो भक्त के संचित कर्मों में से ढूँढ ढूँढ करके बुरे कर्मों का समावेश किया जाता हैकि शीघ्र से शीघ्र ये सब समाप्त हो जाये और वह प्रभु चरणों में पहुँच जायें।पापियों पर दया करके शुभ कर्मों का फल प्रारब्ध भोग में समावेशित किया जाता है कि किसी प्रकार यह सत्संग पाकर सुधर जाये।भक्त के पास तो भगवन्नाम रूपी चिंतामणि है, जिसके बल सेवह कठिन दु:ख और विपत्तियों कोसह जाता है, फिर प्रभु की दृष्टि उस पर से जरा भी हटती नहीं।यही कारण है कि भक्त सज्जन दु:खी और दुर्जन सुखी दिखाई देते हैं।’ ‘जगत में इतने लालच हैं बाईसा हुकुम, मनुष्य का मन विचलित न हो, यह असंभव प्राय है।यदि भक्त नमक जीव अशेष दु:ख उठाकर कभी लालच की शिला पर फिसल पड़ा तो बेचारा दोनों से गया।’- मिथुला ने कहा और दूसरी दासियों ने भी मुस्करा कर सिर झुका लिया। ‘यदि इस पथ का पथिक विचलित होकर संसार के प्रलोभनों की शिला पर फिसल भी जाये, फिर भी उसी जीवन में ऐसे कई प्रसँग उपस्थित हो जाते हैं कि वह सम्हँल जाये।यदि नहीं सम्हँलते तो अगला जन्म लेने पर जहाँ से उसने साधना छोड़ी थी, वहीं से आगे चल पड़ेगा।उसके अराध्य बार बार फिसलने का खतरा उपस्थित नहीं होने देगें।अपने भक्त की सम्हाँल वे स्वयं करते हैं, मिथुला।दु:खो की सृष्टि मनुष्य को उजाला करने के लिए हुई है।दु:खसे वैराग्य का जन्म होता है, क्योंकि सुख की प्राप्ति के लिए किये गये प्रयत्न को प्रभु निरस्त कर देते हैं।हार थक के वो संसार की ओर पीठ करके चलने लगता है।फिरतो क्या कहें? संत शास्त्र और वे सभी उपकरण जो उसकी उन्नति में आवश्यक हैं, एक एक करके प्रभु जुटा देतें हैं।इस प्रकार एक बार इस पथ पर पाँव धरने के पश्चात लक्ष्य के शिखर तक पहुँचना आवश्यक हो जाता है, भले हा दौड़ कर पहुँचे या पंगु की भाँति सरकते सरकते पहुँचे।उसके लिए संसार के द्वार बंद हो गये।जिसने एक बार सच्चे मन से यहजानना चाहा कि ईश्वर क्या है? अथवा मैं कौन हूँ? उसका नाम ज्ञानी या भक्त की सूचि में लिख गया।अब वह दूसरी ओर जाने के लिए चाहे जितना भी प्रयत्न करे, कभी सफल नहीं हो पायेगा।गिर गिर करके उठना होगा।भूल भूल कर पुन: पथ पकड़ना होगा।पहले और पिछले सब कर्मों में छाँट छूँट करके वे कर्मफल प्रारब्ध बनेगें, जो लक्ष्य की ओर ठेल दें।जैसे स्वर्णकार स्वर्ण को, जब तक खोट न निकल जाये, तब तक बार बार भट्ठी में पिघलाकर ठंडा करता है और फिर कूट पीटकर, छीलकर और नाना रत्नों से सजा कर सुंदर आभूषण तैयार कर देता हैं, वैसे ही प्रभु भी जीव को तपा तपा कर मार मार कर महादेव बना देतें हैं।एक बार चल पड़ा फिर ते आनंद ही आनंद है।’

‘The day before yesterday a Mahatma was saying that the fruits of action either get burnt in the fire of knowledge or can be finished only by suffering, there is no third way.’- Champa asked- ‘Baisa Hukum, if the devotee attains liberation then his accumulated What will happen to the deeds?’ ‘These deeds will be divided between those who do and say good and bad to the devotee. Understood?’ Meera smiled and looked at Champa- ‘It seems nowadays Chappa has started humming a lot.’ Champa bowed his head with a smile – ‘Sarkar’s feet are the glory of Raj. I think who is God in some birth? Must have wanted to know this. That is why the Lord has graciously given me the shelter of these feet.

Angry Udaykunwar Baisa’s balloon……

As Vikramaditya’s anger increased, Meera’s fame was also increasing. The temple and the palace’s courtyard were crowded with pilgrims and saints. Maharana’s heart used to cramp after seeing and hearing all this, but what to do? Everyone used to say- ‘Earlier father-in-law and husband did not say anything, so what is the point in saying anything now?’ The women of Ranivas were also divided into two parts. Some towards Meera and some towards Karmavati Bai and Udaykunwar Baisa. He had got the instigation of Maharana. Sometimes Karmavati would say, ‘When will this Medtani die? If he dies, there will be happiness and peace in the state and in the house. There is no limit to the sufferings coming from the time he set foot.

One day Udaykunwar Baisa’s husband came to Idargarh. Amidst all the laughter and happiness, he scolded his wife, ‘Your sister-in-law dances and sings in the crowd of Maudons. What is the custom of Hindu husband Rana’s house?’ Udaykunwar Baisa was heartbroken. Coming the very next day, she vented her anger on Medtani sister-in-law. Baisa Udaykunwar said- ‘Sister-in-law Mhanra, do you know the result of your misdeeds? respectively

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