मीरा चरित भाग-81

राजपूत के बेटे की जागीर उसकी तलवार है।उसके बल से वह जहाँ खड़ा होगा जागीर बना लेगा।’
वे कमर से तलवार खोलने लगे कि राजपुरोहित ने बढ़ कर उनका हाथ थाम लिया- ‘यह क्या कर रहे हैं आप? धैर्य रखें।बड़े हुजूर के गुण याद करने की कृपा करें।मातृभूमि को किसके भरोसे छोड़ रहे हैं? कल मेवाड़ को शत्रु खोदेंगे रौदेगें तो हजार कोस दूर बैठे होने पर भी आपकी थाली का जीमण जहर हो जायेगा।श्रीजी अभी बालक हैं।आप जिस कार्य के लिए आये हैं, उसकी चर्चा करावैं।’
राजपुरोहित जी की बातों से वे सावधान हुये।बाठेड़ा रावतजीने कहा- ‘सरकार और मेवाड़ के लिए हमारे सिर सदा प्रस्तुत हैं हुकुम, किंतु हम मनमानी तो नहीं कर सकते।हुक्म पालन में कभी भूल न होगी।हम केवल यह निवेदन करने आये थे हैं कि हुजूर ने मेड़तणीजी सा को विष दिलवाया तो क्यों? हम लोगों को क्या उत्तर दें? किस आधार पर उनकी बात काटे। राजा का धन प्रजा है हुकुम, प्रजा का विश्वास उठने पर राज्य का टिकना कठिन होता है।’
‘मैं तो कहता हूँ कि विष दिया ही नहीं गया।विष दिया होता तो भाभी म्हाँरा देवलोक पधारतीं कि नहीं?’
‘ठीक है, वैद्यजी कैसे मरे?’
‘मरे होते तो चिता पर न पौढ़ गये होते? वो तो मैने किसी कारणवश मैंने वैद्यजी को डाँटा तो वह भय के मारे अचेत हो गये। घर के लोग उठाकर भाभी म्हाँरा के पास ले गये। वे भजन गा रही थीं। भजन पूरा हुआ तब तक उनकी चेतना लौट आई।बाहर यह बात फैला दी कि मैंने वैद्य जी को मार डाला उन्होंने जीवित कर दिया।मैनें किसी को जहर नहीं दिया।यदि इतने परभी सभी कहते हैं तो कहने दो।जहर दिया तो दिया मेरी भौजाई को।इसमें दूसरों का क्या गया? यह मेरे घर की बात है।औरों को दखल देने का क्या हक है?’
‘यह बात भूल जायें सरकार’- सलुम्बर रावतजी फिर बिफर उठे- ‘राजा के प्रत्येक कार्य का प्रभाव पूरे राज्य और प्रजा पर पड़ता है।आप तो यहाँ महलों में विराजते हैं, हमें सुनना भारी पड़ता है।हमारा स्वामी तो बल और गुणों में हमसे दुगना होना चाहिये।अयोग्यों के लिए यह आसन नहीं है।’
‘क्या कहा?’- महाराणा ने तलवार खींच ली।

पुरोहित जी दोनों के बीच खड़े हो गए और सरदरों को धैर्य रखने के लिये निवेदन किया, किंतु बाबजी बोलते ही चले गये- ‘अपने मुँह से कहना हमें अच्छा नहीं लगता किंतु यह स्मरण रखें सरकार कि एकलिंग के दीवान उन्हीं के समान भरखिये (धैर्य क्षमा बल और बुद्धिमान) होने चाहिए।ये हजारों हजारों पहलवान पाल रखें हैं, इन पाड़ों को पालने के बदले प्रजा को पाला होता तो राज्यके पाँव मजबूत होते।इन भाँडो और भगतण्यों (वेश्याओं) के नाच से अफीम और भाँग की मनुहारों से राज्य नहीं चला करते।राजगद्दी या सिहाँसन सुख की सेज नहीं, काँटों का मुकुट है।समझ गये हुजूर? बहुत दिन हो गये सहते हुए।छाती पक गई है और कलेजे छालों से भर गये हैं।यदि मेड़तणी जी सा का रोम भी टेढ़ा हुआ तो फिर देखियेगा।’- कहकर वे लौटने के लिए मुड़े।
‘नहीं तो क्या करोगे तुम?’- क्रोध से भन्ना कर महाराणा उठ खड़े हुए।
उनकी बातसुनते ही फिरकी सी लेकर रावतजी मुड़े- ‘किसी भरोसे में या किसी अंदेशे में न रहिये अन्नदाता’- वे क्रोधपूर्वक हँसकर बोले- ‘राजा धरती फोड़ कर नहीं प्रकट होते।’
रावतजी ने प्रथम बार आँखे उठाकर महाराणा की ओर देखा और दोनों हथेलियों से अपनी भुजायें ठोकीं- ‘राजा को ये, ये भुजायें बनातीं हैं, यह याद रखिएगा।’
वे मुड़कर चल दिये।उनके साथ आये हुए अन्य सामंत भी चले गये।
‘मेड़तणी, हाँ यह मेड़तणी ही सारे अनर्थ की मूल है’- राणाजी मन ही मन कहकर अपने दाँत पीस लियें।

शयन कक्ष में परम पुरुष…..

‘सरकार, सरकार, कुवँराणीसा के महल में से किसी पुरुष का स्वर सुनाई दे रहा है’- दासी भूरीबाई ने आकर सूचना दी।
‘क्या कह रही है तू’- महाराणा अचकचा गये।
‘सरकार की आन हुजूर, कुवँराणीसा के पौढ़ने वाले कक्ष से हँसने बोलने के स्वर आ रहें हैं।मैं उधर गई तो देखा द्वार बंद है और भीतर से बातचीत के स्वर आ कहे हैं।मैं पेट पकडे़ दौड़ी दौड़ी आई हूँ खबर करने।’
‘उस कक्ष में दूसरा द्वार तो नहीं है?’
‘नहीं अन्नदाता’
‘ठीक है चल।वहाँ किसी को खड़ा किया है? हम जाये तब तक…..’
‘अपनी साथण( सहेली) को छोड़ आई हूँ सरकार’
नंगी तलवार लेकर महाराणा को ड्योढ़ी में प्रवेश करते हुये देखकर ड्योढ़ीवान हक्का बक्का हो अभिवादन करना ही भूल गया।भीतर दासियाँ और ठकुरानियाँ अटाले में अपनी अपनी पंगत में बैठकर भोजन कर रहीं थीं।चम्पा ने पूछा- ‘अरे, ये भूरीबाई कहाँ गई?’
‘अभी तो यहीं थी’- गुलाब बाई बोली।
‘अरे वो खायेगी कब? राजू भी दिखाई नहीं देती?’
‘आ जायेगी हम सब खायेगें तब तक, नहीं तो गुलाब बाई तुम उनका भोजन अपने कक्ष में ले जाना।’ गुलाब ने हाँ में सिर हिला दिया।
‘अरे यह धमाका कैसा है?’- चम्पा का कौर उसके हाथ में ही रह गया- ‘यह …. तो बाईसा हुकुम के शयन कक्ष से आवाज आ रही है।’
तभी एक धमाका पुन: हुआ और साथ ही पुरुष कंठ का क्रुद्ध गर्जन सुनकर भोजन छोड़ कर उस ओर दौड़ पड़ीं।वहाँ का दृश्य देख वे पत्थर की मूर्तियों की भाँति स्थिर हो गईं।

महाराणा भूरी के बताये हुये कक्ष के सम्मुख खड़े हुए थे।उनके पीछे थोड़ी दूर ड्योढ़ीवान और सैनिक सहमें खड़े थे।राणाजी के केश खुले बिखरे हुए, बिना किसी कमरबंद का अँगरखा, हाथ में नंगी तलवार, नंगा पाँव और लाल सुलगती आँखे, क्रोध से काँपता देह, कुछ क्षण द्वार पर कान लगाये लगाये सुनते रहे, फिर किवाड़ पर खींच कर एक लात मारी।किवाड़ चरमरा उठे।भीतर से पतला मीठा स्वर आया- ‘कौन है चम्पा?’
‘द्वार खोलो मैं हूँ तुम्हारा काल’- जहरीले स्वर में राणाजी बोले।
‘अरे लालजी सा’- कहते हुये मीरा ने हँसते हँसते द्वार खोल दिया- ‘पधारो’
उन्होंने एक ओर खड़े देवर को भीतर आने का संकेत किया।
भीतर प्रवेश करके राणाजी ने चारों ओर देखा।एक ओर पलँग बिछा हुआ था, सिरहाने की ओर काष्ठाधार पर जल की कलशी, भूमि पर जाजिम गलीचा बिछा हुआ और द्वार के सम्मुख ही गद्दी मसनद लगे हुये, वहीं चौसर और पाँसे बिखरे से, मानों अभी अभी कोई खेलते खेलते उठ गया हो।
क्रमशः



The fiefdom of a Rajput’s son is his sword. With his strength, he will make a fiefdom wherever he stands.’ When he started opening the sword from his waist, the Rajpurohit reached out and held his hand – ‘What are you doing? Be patient. Please remember the virtues of the great Huzoor. In whose trust are you leaving the motherland? Tomorrow Mewar will be dug up by the enemies and if you cry, even if you are sitting a thousand miles away, the jiman on your plate will be poisoned. Shreeji is still a child. Let us discuss the work for which you have come.’ He was wary of Rajpurohitji’s words. Batheda Rawatji said- ‘Our heads are always present for the government and Mewar, but we cannot act arbitrarily. There will never be a mistake in following orders. That Huzoor gave poison to Medtaniji, so why? What answer should we give to the people? On what basis cut his words. The wealth of the king is the rule of the people, it is difficult for the kingdom to survive if the people lose their faith. ‘I say that the poison was not given at all. Had the poison been given, would my sister-in-law have come to Devlok or not?’ ‘Okay, how did Vaidyaji die?’ ‘Had you died, would you not have been raised on the pyre? For some reason, when I scolded Vaidyaji, he became unconscious due to fear. The people of the house picked him up and took him to sister-in-law Mhanra. She was singing hymns. By the time the bhajan was completed, his consciousness returned. It was spread outside that I had killed Vaidyaji and he brought him back to life. I did not poison anyone. Ko. What happened to others in this? This is a matter of my house. What right do others have to interfere?’ ‘Government should forget this thing’ – Salumbar Rawatji again got up – ‘Each action of the king affects the whole state and the people. You sit here in palaces, it is difficult for us to listen. Our master is in strength and qualities. We should be double. This is not easy for the unqualified.’ ‘What did you say?’- Maharana drew the sword.

Purohit ji stood between the two and requested the Sardars to be patient, but Babaji went on speaking – ‘We do not like to say from our mouth, but remember that the government should fill the diwans of Ekling like them (forgive patience) These thousands of wrestlers keep the sails, instead of keeping these scaffolds, the people would have kept the feet of the state strong. Do. The throne or the throne is not a bed of happiness, it is a crown of thorns. Understood sir? It has been a long time since suffering. The chest has become ripe and the liver is full of ulcers. If Medtani ji’s hair is also crooked, then you will see.’- Saying this, he turned to return. ‘Otherwise what will you do?’- Maharana got up saying with anger. On listening to him, Rawatji turned around with a twist – ‘Don’t live in any trust or in any doubt’ – He laughed angrily and said – ‘The king does not appear by breaking the earth.’ Rawatji raised his eyes for the first time and looked at the Maharana and patted his arms with both the palms – ‘Remember, these arms are made to the king.’ They turned and left. The other feudal lords who came with them also left. ‘Medtani, yes this Medtani is the root of all disaster’ – Ranaji gritted his teeth saying in his mind.

The ultimate man in the bedroom…..

‘Sarkar, Sarkar, a man’s voice is being heard from the palace of Kuvarranisa’ – Maid Bhuribai came and informed. ‘What are you saying’ – Maharana was taken aback. ‘Sirkar ki Aan Huzoor, voices of laughter and talking are coming from Kuvaranisa’s growing room. When I went there, I saw that the door was closed and voices of conversation came from inside. I ran holding my stomach to inform.’ ‘Isn’t there another door in that room?’ ‘No Annadata’ ‘Okay let’s go. Has anyone been made to stand there? Till then we go…’ ‘Government has left my friend’ Seeing the Maharana entering the courtyard with a bare sword, the Deodhiwan was stunned and forgot to greet. Inside, the maidservants and Thakuranis were sitting in their own ranks in the atalae, having their meals. Champa asked- ‘Hey, where has this Bhuribai gone?’ ‘It was here only now’ – said Gulab Bai. ‘Hey, when will she eat? Can’t even see Raju?’ ‘We will all eat till she arrives, otherwise Gulab Bai you take her food to your room.’ Gulab nodded in yes. ‘Hey, how is this explosion?’ – Champa’s Kaur remained in his hand – ‘This…. So the sound is coming from Baisa Hukum’s bedroom.’ Just then there was an explosion again and at the same time, hearing the angry roar of the male voice, leaving the food, ran towards it. Seeing the scene there, they became stable like stone idols.

Maharana was standing in front of Bhuri’s told room. Deodhiwan and soldiers were standing a little far behind him. Ranaji’s hair scattered open, tunic without any waistband, naked sword in hand, bare feet and red smoldering eyes, with anger. Body trembling, kept listening to the door for a few moments, then pulled on the door and kicked it. The door creaked. A thin sweet voice came from inside – ‘Who is Champa?’ ‘Open the door, I am your death’ – said Ranaji in a poisonous voice. Meera smilingly opened the door while saying ‘Hey Lalji Sa’- ‘Come in’ He signaled to the brother-in-law standing on one side to come inside. Entering inside, Ranaji looked around. There was a bed spread on one side, a water pot on a wooden base near the head, a rug was spread on the ground and in front of the door there were cushions, back and forth, as if now Someone just got up while playing. respectively

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *