बाबा परिक्रमा लगाते हुए।कुछ मिला क्या

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कल हमसे एक जिज्ञासु ने पूछा :- बाबा आपको इतने वर्ष हो गए श्री गिरिराज जी की परिक्रमा लगाते हुए।कुछ मिला क्या ?

हमनें कहा :- यदि संसारिक दृष्टि से पूछ रहे हो।तो हमने उनसे कभी कुछ मांगा ही नहीं।क्योंकि हमें पता है यदि कुछ मांग लिया होता तो यह सब इतना लम्बा नहीं चलता।अर्थात :- परिक्रमा मे कोई ना कोई बाधा आती ओर यह सब छूट जाता।

(यह मै लोगों का अनुभव बता रहा हूँ। मुझे उन लोगों ने स्वयं बताया हैं कि बाबा पहले तो हम भी परिक्रमा करने जाते थे परन्तु अब छूट गया)

इसके पीछे कारण है अभिलाषा।

लोग अक्सर कहते है कि मैं तेरे दर का भिखारी।मुझे यह बात ठीक नहीं लगती।अरे भईया बनना ही हैं तो उसका प्रेमी बनो।भिखारी बनोगे तो वो दया करके आपके कटोरे में कुछ ना कुछ डाल देगा।और अपना पीछा छुडा लेगा।

अच्छा एक बात बताओं यदि आपके द्वार पर कोई भिखारी आता है।और आप उसे कुछ ना कुछ दे देते हो।परन्तु क्या कभी ऐसा हुआ है कि आपको उसका बेसब्री से इंतजार हो।कि आज अभी तक भिखारी नहीं आया।यदि भिखारी नहीं आया तो मेरे प्राण निकल जाएंगे।
ऐसा कभी नहीं होता।

परन्तु यदि उसके स्थान पर कोई आपका प्रेमी हो।कोई ऐसा जन जिसे आपने खुद से भी अधिक प्रेम किया हो।तो आपको उससे मिलने की बेचैनी बनी रहेगी।

अब मै उसी प्रश्न पर वापिस आता हूँ। जिज्ञासु ने हमसे पूछा :- बाबा कुछ मिला क्या ?

हमने कहा :- जब हम पहले परिक्रमा लगाने जाते है तो हमें सुख मिलता था।

जिज्ञासु हमारी बात को बीच में ही काटते हुए :- “पहले से” का क्या अर्थ ? क्या अब आपको परिक्रमा लगाने में सुख नहीं मिलता।

हमने फिर अपनी बात दोराही :- जब हम पहले परिक्रमा लगाने जाते है तो हमें सुख मिलता था।
परन्तु अब हम परिक्रमा लगाने जाते है तो उन्हें सुख मिलता है।

तो चलों आज फिर से उनको सुख पहुंचे हैं।
गिरिराज जी की एक परिक्रमा और लगाते हैं।

(जय जय श्री राधे)

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