राधा जी का मान

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श्री राधा मान कर रहीं हैं। रूठी हुई राधा रानी को श्याम सुन्दर मनाने का बहुत प्रयास कर रहे हैं।श्री कृष्ण ने रूठी राधा को मनाने के बहुत से उपाए किये।कभी उनके चरणों में मस्तक रखते हैं, कभी उनको पंखा करते हैं , कभी दर्पण दिखाते हैं और कभी विनती करते हैं किंतु जब सभी प्रयास विफल हो जाते हैं

जब राधा रानी नहीं मानती हैं तब श्याम सुन्दर सखियों का आश्रय लेते हैं।ये मान किसी लड़ाई या क्रोध से नहीं होता है।ये मान एक प्रेम की लीला है।झूठमूठ की लड़ाई झूठमूठ की रूसा रूसी।राधा रानी श्याम सुन्दर के सुख हेतु मान करती हैं।
राधा रानी का मान शिखर के नीचे से शुरू हुआ और जैसे – जैसे श्याम सुंदर ने मनाया वैसे – वैसे श्री जी ऊपर चढ़ती आयीं।जब श्री जी ऊपर चढ़ आयीं तो श्याम सुंदर ने सखियों का सहारा लिया।उन्होंने विशाखा जी व ललिता जी से कहा कि जाओ राधा रानी को मनाओ अब हमारी तो सामर्थ्य नहीं है।हम तो थक गये हैं।तब श्री ललिता जी व अन्य सखियाँ जब यहाँ आती हैं और श्री जी से कहती हैं कि आप अपना मान तोड़ दो तो श्री जी स्पष्ट इन्कार कर देतीं हैं।
सखी ठाकुर जी के पास नीचे जाती हैं तो ठाकुर जी फिर ऊपर भेज देते हैं।फिर नीचे जाती हैं तो फिर ऊपर भेज देते हैं। तब आखिर में सखी बोली कि हे राधे मानगढ़ पर मैं कई बार चढ़ी और कई बार उतरी।मैं तो थक गई।आपका मान तो टूटता ही नहीं अब मैं और कहाँ तक दौडूँ ? इधर से आप भगा देती हो और उधर से वो बार-बार प्रार्थना करते हैं कि जाओ-जाओ।
सखी कहती है कि हे राधे मैं चौगान की गेंद की तरह से भटक रही हूँ।अन्य क्रीड़ाओं में तो एक आदमी ही गेंद को मरता है पर चौगान में हर कोई गेंद को मरता है।वैसे ही आप दोनों मुझे मार रहे हैं।हे राधे जल्दी से श्याम सुंदर से मिलो।ये रात बीतती जा रही है।
अब राधिका जी द्रवित हो जातीं हैं और उनका मान स्त्रवत होने लगता है।सखी प्रसन्नता से भर दौड़ी जाती है और श्यामसुन्दर को ऊपर बुला लाती है। सब सखियाँ मिल कर श्यामश्यामा का मेल करातीं हैं और उन्हें कुँज में एकांत में छोड़ आतीं हैं।

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