श्यामा जी की कृपा

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एक बार श्री कृष्ण दास के मन में इच्छा जागी कि वे निकुंज में “श्री राधा” एवं “श्री राधा रमण” कि सेवा करें !
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उन्होंने अपनी इच्छा “श्री जीव गोस्वामी” को बताई !
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श्री जीव ने उन्हें मानसी सेवा में, निशांत लीला के समय निधिवन में राधा दासी रूप में झाड़ू करने का आदेश दिया !
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वे नित्य निधिवन में मानसिक झाड़ू सेवा करने लगे !
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झाड़ू लगाते लगाते वे कभी नृत्य करने लगते , कभी विरह में रोने लगते, इस प्रकार कई दिन बीत गये।
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एक दिन श्री राधा रानी कि कृपा से झाड़ू लगाते हुए सहसा उनका ध्यान एक नूपुर की और गया जो अलौकिक प्रकाश से निधुवन को आलौकित कर रहा था !
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उन्होंने नूपुर को उठा कर मस्तक से लगाया ! मस्तक से लगते ही उनके शरीर में सात्विक भावों का उदय हो गया !
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उनकी संविद शक्ति भी नूपुर के स्पर्श से जाग गयी ! वे समझ गये कि ये राधा रानी के चरणों का नूपुर है !
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वे नूपुर को बार बार कभी सर से, कभी ह्रदय से, कभी स्नेह कि दृष्टि से देख देख कर चूमने लगे !
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फिर प्रेम से व्याकुल हो रो रो कर कहने लगे, स्वामिनी, तुमने नूपुर के दर्शन दिए परन्तु नूपुर सहित चरणों के दर्शन क्यूँ नही दिए ?
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ऐसी कृपा कब होगी जब इस नूपुर को तुम्हारे चरण कमल में धारण करने का सौभाग्य प्राप्त होगा !
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तुम्हारे चरण कमल स्पर्श करने कि मेरी इच्छा बौने कि आकाश के चाँद को स्पर्श करने जैसी है,
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परन्तु तुम्हारी करुणा से क्या संभव नही हो सकता ? कृष्ण दास बार बार रो रहे थे !
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उसी समय नित्य लीला में श्री राधा रानी ने देखा, उनके चरण में नूपुर नहीं है…
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उन्होंने तुरंत ललिता को बुलाकर कहा, मेरा नूपुर कहीं गिर गया है. निधुवन में जाकर देखो वहां तो नहीं है !
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ललिता समझ गयी कि राधा रानी को कोई नई लीला करनी है ! इसलिए नूपुर निधिवन में छोड़ आई है !
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सुबह हो चुकी थी इसलिए ललिता वृद्ध ब्रह्मिनी के वेश में निधुवन गयी !
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वहां कृष्णदास से पुछा, “तुमने यहाँ कहीं नूपुर देखा है ? मेरी बहु जल लेने गयी थी, उसके पैर से निकल पड़ा यदि तुम्हे मिला हो तो बताओ ?”
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कृष्ण दास बोले, मुझे मिला तो है, पर वह नूपुर तुम्हारा नहीं है !
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जिसे देखते ही मै मूर्छित हो गया, स्पर्श करते ही प्रेम समुन्द्र में गोते खाने लगा, मनुष्य के नूपुर से ऐसा संभव नही है !
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ज़रूर ये नूपुर श्री राधा रानी का है ! तुम्हे नहीं दूंगा, जिसका है, उसी के चरणों में पहनाऊंगा !
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वृद्ध रूपिणी ललिता ने कहा, तुमने ठीक जाना, नूपुर राधा रानी का है, तुम भाग्यशाली हो,
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तुम पर राधा रानी कि विशेष कृपा है, तभी तुम्हे ये मिला है ! तुम मुझे नूपुर दो और कोई वर मांग लो !
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कृष्णदास ने सोचा ये वृद्धा वर मांगने को कह रही है और नूपुर राधा रानी को देगी ! निश्चय ही ये राधा रानी कि कोई सखी हो सकती है, जो वृद्ध के वेश में आई है !
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कृष्ण दास बोले, ठकुरानी, मै तुम्हे नूपुर ऐसे नही दे सकता !
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पहले अपना परिचय दो, अपने स्वरुप के दर्शन कराओ और नूपुर ले जाओ !
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तब वृद्धा ने बताया, मै राधा रानी कि दासी हूँ ! मेरा नाम ललिता है !
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इतना कह ललिता सखी ने अपने स्वरुप के दर्शन कराये, दर्शन करते ही कृष्ण दास मूर्छित हो गये !
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चेतना आते ही उन्होंने प्रणाम किया और उनके नेत्रों से अश्रु बहने लगे,
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सर्वांग पुलकित हो उठा, कंठ गड गड हो जाने के कारण वे कुछ कह न सके ! ललिता ने वर मांगने को कहा,
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कृष्ण दास ने कहा, ऐसी कृपा करें कि आपकी दासी बन, राधा कृष्ण कि सेवा करूँ !
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तुम्हे राधा कृष्ण प्राप्त हों, कह ललिता ने कान में मंत्र दिया ! इस मंत्र का स्मरण करने से तुम्हे राधा के दर्शन प्राप्त होंगे !

ललिता ने अपना चरण उनके मस्तक पर रख दिया फिर उठाकर आशीर्वाद दिया !

नूपुर लेकर उनके माथे से स्पर्श किया और हंसकर कहा यह राधा का चिह्न तुम्हारे माथे पर रहा ! नूपुर रूप में तुम्हे श्यामा जी कृपा प्राप्त हुई !
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इसलिए आज से तुम्हारा नाम श्यामानंद हुआ ! ललिता के स्पर्श से श्यामा नन्द का शरीर तेजोमय कांचन वर्ण का हो गया !!



. एक बार श्री कृष्ण दास के मन में इच्छा जागी कि वे निकुंज में “श्री राधा” एवं “श्री राधा रमण” कि सेवा करें ! . उन्होंने अपनी इच्छा “श्री जीव गोस्वामी” को बताई ! . श्री जीव ने उन्हें मानसी सेवा में, निशांत लीला के समय निधिवन में राधा दासी रूप में झाड़ू करने का आदेश दिया ! . वे नित्य निधिवन में मानसिक झाड़ू सेवा करने लगे ! . झाड़ू लगाते लगाते वे कभी नृत्य करने लगते , कभी विरह में रोने लगते, इस प्रकार कई दिन बीत गये। . एक दिन श्री राधा रानी कि कृपा से झाड़ू लगाते हुए सहसा उनका ध्यान एक नूपुर की और गया जो अलौकिक प्रकाश से निधुवन को आलौकित कर रहा था ! . उन्होंने नूपुर को उठा कर मस्तक से लगाया ! मस्तक से लगते ही उनके शरीर में सात्विक भावों का उदय हो गया ! . उनकी संविद शक्ति भी नूपुर के स्पर्श से जाग गयी ! वे समझ गये कि ये राधा रानी के चरणों का नूपुर है ! . वे नूपुर को बार बार कभी सर से, कभी ह्रदय से, कभी स्नेह कि दृष्टि से देख देख कर चूमने लगे ! . फिर प्रेम से व्याकुल हो रो रो कर कहने लगे, स्वामिनी, तुमने नूपुर के दर्शन दिए परन्तु नूपुर सहित चरणों के दर्शन क्यूँ नही दिए ? . ऐसी कृपा कब होगी जब इस नूपुर को तुम्हारे चरण कमल में धारण करने का सौभाग्य प्राप्त होगा ! . तुम्हारे चरण कमल स्पर्श करने कि मेरी इच्छा बौने कि आकाश के चाँद को स्पर्श करने जैसी है, . परन्तु तुम्हारी करुणा से क्या संभव नही हो सकता ? कृष्ण दास बार बार रो रहे थे ! . उसी समय नित्य लीला में श्री राधा रानी ने देखा, उनके चरण में नूपुर नहीं है… . उन्होंने तुरंत ललिता को बुलाकर कहा, मेरा नूपुर कहीं गिर गया है. निधुवन में जाकर देखो वहां तो नहीं है ! . ललिता समझ गयी कि राधा रानी को कोई नई लीला करनी है ! इसलिए नूपुर निधिवन में छोड़ आई है ! . सुबह हो चुकी थी इसलिए ललिता वृद्ध ब्रह्मिनी के वेश में निधुवन गयी ! . वहां कृष्णदास से पुछा, “तुमने यहाँ कहीं नूपुर देखा है ? मेरी बहु जल लेने गयी थी, उसके पैर से निकल पड़ा यदि तुम्हे मिला हो तो बताओ ?” . कृष्ण दास बोले, मुझे मिला तो है, पर वह नूपुर तुम्हारा नहीं है ! . जिसे देखते ही मै मूर्छित हो गया, स्पर्श करते ही प्रेम समुन्द्र में गोते खाने लगा, मनुष्य के नूपुर से ऐसा संभव नही है ! . ज़रूर ये नूपुर श्री राधा रानी का है ! तुम्हे नहीं दूंगा, जिसका है, उसी के चरणों में पहनाऊंगा ! . वृद्ध रूपिणी ललिता ने कहा, तुमने ठीक जाना, नूपुर राधा रानी का है, तुम भाग्यशाली हो, . तुम पर राधा रानी कि विशेष कृपा है, तभी तुम्हे ये मिला है ! तुम मुझे नूपुर दो और कोई वर मांग लो ! . कृष्णदास ने सोचा ये वृद्धा वर मांगने को कह रही है और नूपुर राधा रानी को देगी ! निश्चय ही ये राधा रानी कि कोई सखी हो सकती है, जो वृद्ध के वेश में आई है ! . कृष्ण दास बोले, ठकुरानी, मै तुम्हे नूपुर ऐसे नही दे सकता ! . पहले अपना परिचय दो, अपने स्वरुप के दर्शन कराओ और नूपुर ले जाओ ! . तब वृद्धा ने बताया, मै राधा रानी कि दासी हूँ ! मेरा नाम ललिता है ! . इतना कह ललिता सखी ने अपने स्वरुप के दर्शन कराये, दर्शन करते ही कृष्ण दास मूर्छित हो गये ! . चेतना आते ही उन्होंने प्रणाम किया और उनके नेत्रों से अश्रु बहने लगे, . सर्वांग पुलकित हो उठा, कंठ गड गड हो जाने के कारण वे कुछ कह न सके ! ललिता ने वर मांगने को कहा, . कृष्ण दास ने कहा, ऐसी कृपा करें कि आपकी दासी बन, राधा कृष्ण कि सेवा करूँ ! . तुम्हे राधा कृष्ण प्राप्त हों, कह ललिता ने कान में मंत्र दिया ! इस मंत्र का स्मरण करने से तुम्हे राधा के दर्शन प्राप्त होंगे !

Lalita placed her feet on his head and then lifted up and blessed him.

He took Nupur and touched his forehead and said with a laugh that this Radha’s sign remained on your forehead! You have received the blessings of Shyama ji in Nupur form! , That’s why from today your name is Shyamanand! With the touch of Lalita, the body of Shyama Nand became of bright color.

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One Response

  1. It’s hard to find educated people on this topic, but you seem like you know what you’re talking about! Thanks

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