सत्संग 1

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मैं दासी अपनी राधा की
करत खवासी जो रुचि पावत ।
सूधे वचन न बोलत सपनेहु
हरिहू को अँगुठा दिखरावत ॥
ब्रह्मानंद मगन सुख सिधि निधि
श्रीवन गैल पांव ठुकरावत ।
मुसतगनी मगरूरी डोलत
ललितकिशोरी को गुन गावत ॥

मैं अपनी राधा की नित्य ही दासी हूं और उनको जो जो रुचिकर होता है वही वही करके विभोर होती हूं ।

मैं श्री हरि की भी परवाह नहीं करती (उनको सपने में भी मृदु वचन नहीं बोलती) और श्री राधा के बल से उनको भी अंगूठा दिखला देती हूं ।

श्री वृंदावन की निकुंज गलियों में अपने पाँव से मैं ब्रह्मानंद के सुख, सिद्धि और निद्धि इत्यादि को ठुकरा देती हूं ।

मैं तो श्री ललित किशोरी अर्थात श्री राधा के प्रेम में उन्मत्त हुई डोलती फिरती हूं एवं उन्हीं का अनन्य रूप से गुणगान करती हूं ।

उन्मत्त, अनन्य रूप



I am the maid of my Radha Kart Khawasi who gets interested. I don’t speak sweet words. Showing the thumb to Harihu. Brahmananda Magan Sukh Siddhi Nidhi Shreevan gal foot thukrawat. Mustagni Magroori Dolat Singing to Lalitkisori

I am always my maidservant of Radha and I am engrossed by doing whatever pleases her.

I don’t even care about Shri Hari (I don’t speak soft words to him even in dreams) and with the strength of Shri Radha, I show my thumb to him.

With my feet in the Nikunj streets of Sri Vrindavan, I reject Brahmananda’s happiness, accomplishment and wealth etc.

I oscillate frantically in the love of Shri Lalit Kishori i.e. Shri Radha and praise Him exclusively.

frantic, exclusive

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