निखिल ब्रह्माण्ड-मण्डल जिसके परतन्त्र है, वह मायापति भगवान् भास्वती भगवती श्रीकृपादेवी के पराधीन है और वह अनुकम्पा महारानी भी दीनता के परतन्त्र है। भगवान् के यहाँ दीनों की खूब सुनवायी होती है।
जगद्विधेयं ससुरासुरं ते
भवान् विधेयो भगवन् कृपायाः।
सा दीनताया नमतां विधेया
ममास्त्ययत्नोपनतैव सेति।।
जो दीनता अन्यत्र अवहेलना की दृष्टि से देखी जाती है, वही भगवान् के यहाँ परमादरणीया है। शोक, मोह, जरा, मरण, आधि-व्याधि, दारिद्र्य-दुःखों से उत्पीडित प्राणियों के यहाँ दीनता की कमी नहीं है। उसी का दुखड़ा सर्वत्र गाया जाता है, परंतु दुर्भाग्यवश वह गाया जाता है।
ऐसी जगह जहाँ कुछ मिलना-जुलना तो दूर रहा, फूटे मुहँ से सहानुभूति का भी एक शब्द नहीं निकलता, वहाँ तो दीन को अवहेलनाओं का ही पात्र बनना पड़ता है। परंतु ‘दीनानाथ’ होने के नाते भगवान् दीनता के ग्राहक हैं। उनके सामने दीनता प्रकट करने में तो कृपणता न होनी चाहिये।
जैसे संघर्ष के द्वारा व्यापक अग्नि का सगुण साकार रूप में प्राकट्य होता है, किंवा शैत्य के सम्बन्ध से जल का ओला हो जाता है, वैसे ही प्रेमियों के प्रेम-प्राखर्य से विशुद्ध सत्त्वमयी श्रीकौसल्याम्बा से पूर्णतम पुरुषोत्तम भगवान् का प्राकट्य होता है। यज्ञपुरुष द्वारा समर्पित चरु के विभागानुसार भगवान् का ही श्रीराम, लक्ष्मण, भरत एवं शत्रुघ्नरूप में आविर्भाव होता है।
।। जय भगवान श्री ‘राम’ ।।
Nikhil universe-mandal to whom is dependent, that Mayapati Bhagwan Bhaswati Bhagwati is subordinate to Shri Kripadevi and that Compassionate Queen is also subordinate to humility. The poor are heard a lot in God’s place.
The world is yours with the gods and demons You are the object of the Lord’s mercy. She is to be bowed down to in humility I have the effort to achieve it.
The humility that is seen elsewhere from the point of view of defiance, the same is supreme in God’s place. There is no dearth of humility among the creatures who are oppressed by grief, fascination, old age, death, half-disease, poverty-sorrows. His sorrow is sung everywhere, but unfortunately it is sung.
In such a place where there is no contact, even a word of sympathy does not come out of the open mouth, there the poor have to become the object of defiance. But being ‘Deenanath’, God is the customer of humility. There should be no miserliness in showing humility in front of them.
Just as through struggle the good of the all-pervading fire manifests in its form, or hail of water from the relation of Shaitya, in the same way the Supreme Personality of Godhead appears from pure sattvamayi Srikausalyamba from the love-prakhara of the lovers. According to the division of Charu dedicated by Yajnapurush, God himself appears in the form of Shriram, Lakshmana, Bharata and Shatrughna.
, Hail Lord Shri ‘Ram’.