जय प्रभु शंकर दीनदयाला ।प्रभु जी मोहे करो निहाला ।।सत्य संतोष शील मोहित दीजिए । मोर दोष दुर सब किजिए ।
दया ममता मन में आवे।मन भोगन में कब हूं ना जावे ।
पर पिडा से चित हटाओ। पाप कर्म से मोहे बचाओ ।।
निर्मल चित करो प्रभु मोरा। निशि दिन भजन करूं मैं तोरा ।।
यही कामना मन में स्वामी ।पूर्ण करो प्रभु अंतर्यामी ।।
जब लग कृपा न तुम्हारी होवे । तब तक लगे वर्धा जन्म खोवे
माया के बस पढा भुलाना । बार-बार दुख पावे नाना।।
बिन संतोष न सुख कहुँ होई। भटकी -भटकी नर जीवन खोई।।
अन्तकाल में रो-रो पछतावे ।गया वक्त फिर हाथ ना आवे।।
भोग शोक की खानी बखाने ।तिनसो मन कबहुं न अघाने ।।
ग्लानि योग्य जो वस्तु सारी ।तिनसो प्रेम मुढ को भारी ।।
छोडा चहे न कबहुँ जिनको ।छिन मे काल छुडावत तिनकों ।।
आपा छोड जो तुमको ध्यावे ।सो नर सहज मुक्ति पावे ।।
काम, क्रोध ,मद,लोभ,घनेरे ।प्रभुजी जग मे बैरी मेरे ।।
भगवन इनसे मुझे बचाओ।निज चरणों का दास बनाऔ ।।
और न जग मे न ऐसा कोई।करुणाकरें दीन पर जोई ।।
दुख मोचन है नाम तिहरा।मै हुँ जग मे अति दुखियारा ।।
भव सागर है घोरा ।देख देख डरपत मन मोरा ।।
मात पिता तुम बन्धु मोरे।चरण गहूँ मै प्रभु जी तोरे ।।
सब मे अपना रुप दिखाऔ ।जनम मरण से मुझे बचाओ।।
कामदिक है ग्राह भयंकर ।इनसे मोहे बचाओ शँकर ।।
रागदिक दोष मिटाओ । जन्म मरण मे कबहुँ न जाऊँ।।
दोहा
बार बार विनती करु ,सुनिए दिनदयाल ।
कृपा दृष्टि करके प्रभु ,बेगी करो निहाल ।।
शरीर साधन के लिये है,जैसे है जलपान ।।
वैसे ही मन के लिये, ये सत्संग है प्रमाण ।।
जय प्रभु शंकर दीनदयाला ।प्रभु जी मोहे करो निहाला
- Tags: प्रभुपाद, शंकर दीनदयाला
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