हे ! मनमोहन, आपकी मीठी मधुर
हंसी से ऐसा लगता है,
जैसे चारों तरफ असंख्य
जलतंरग बज रहे हो
मीठी मीठी सी धुन कानों में
मधुर रस घोल रही हो ।
आपकी तिरछी चितवन,
जिधर जाती है,
पतझड़ में बहार आ जाती है,
सूखे वृक्ष हरे हो जाते हैं,
जिधर ड़ाल दो दृष्टि,
हंसने लगे सारी सृष्टि
मुस्कुराती इक नजर,
करती जादू का असर ,
अंधियारी अमावस की रात्रि में,
आपकी कोटि भानु सी,
शुभ्र ज्योत्सना जगमग कर,
जीवन में उजियारा भर देती है ।
जीवन संगीत यही है,
बहती रस धार यही है
नाम सिमरन में पुकार यही है
प्रेमी चातक की प्यास यही है,
आओ, आओ, आ जाओ प्यारे,
पुकारते हैं तुमको धरती गगन,
जल और पवन,
दसों दिशाएं जगमगा रही है
आप, आप बस,
आपके गुण गा रही हैं
गाती है धरती, गाता है आसमान,
तुम यही हो, यही हो,
सर्वत्र रमे हुए हो,