क्रोध  अग्नि में क्या क्या जलता है


क्रोध की अग्नि में अरमान जल जाते हैं जलती है भावनाएं जल जाते हैं रिस्ते। संवेदनाएं क्रोध अग्नि में जल कर स्वाह हो जाती है 
क्रोध  घर परिवार की खुशियां छिन लेता है क्रोध में हम होश खो बैठते हैं कभी सोचते नहीं है सामने वाले की क्या दिल की दशा हुई होगी
मात पिता मौन हो जाते हैं अरमान सभी जल जाते हैं इच्छा समाप्त हो जाती है बस जीवन ढोने जैसा बन जाता है पिता कुछ बोलता नहीं है पर समझता सब कुछ है सुबह एक घंटा पहले उठता है सब कार्य कर के देता कोल्हू के बैल जैसी जिन्दगी मात पिता की है। बच्चे कहते यह घर हमारा है मात पिता की इच्छाएं इस अग्नि में जल जाती है फिर बच्चे कहते अच्छा पहनो किस के लिए पहने एक मन था वह तो कब का क्रोध अग्नि में स्वाह हो गया अब दुसरा मन कंहा से लेकर लाऊं। न खाने की इच्छा होती है न कुछ बोलने की किस मन को सुंदर वस्त्र पहनाऊं। मन क्रोध अग्नि की भेंट चढ़ जाता है तब फिर कितना ही टांका लगाओ जुङता नहीं है।
क्रोध अग्नि दिल में दरार पैदा करती है बच कर रहना राही इस अग्नि से जब जब अग्नि भङके मन पर अंकुश रखना।  धन दोलत है किसी काम की नहीं अगर मन में शान्ति नहीं है  शान्त मन जीवन को बनाता है कभी बैठ कर सोच कर देखो क्यों हम इतने भङक गये क्या हम अपने मन को रोक नहीं सकते थे।
जल जाता है मोह का सम्राज्य एक अध्यात्मिक भीतर से आनंदित होता है।

मोह का धुआँ छट जाता है तब आसमान साफ दिखाई देता है। भक्त के लिए यह एक परिक्षा है। भक्त कहता है परमात्मा तुझे क्रोध के माध्यम से सचेत कर रहे हैं। यह सच्चा साथी नहीं है यह तुझे संसारिक रंग दिखाकर तेरी साधना को तोड़ेगा।

तु सम्भल जा इस साथी से किनारा कर ले। कोई नहीं है अपना रे झुठे है रिश्ते नाते सब खेल झुठा है।जय श्री राम अनीता गर्ग

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