माँ यशोदा का प्रेम

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मैया ओ मैया !!!! उद्धव ने पालने के पास बेठी माँ यशोदा को पुकारा तो मैया के हाथ में लगा पंखा गिर गया और हड़बड़ाहट में बोली “तनिक धीरे बोलो ,मेरौ लाला जाग जायगो ।

बड़ी मुश्किल से लोरी गाय गाय के सुलायो है ।वैसे ही बहुत तंग करे हे कबहू चन्दा मांगे कबहू दुल्हिन मांगे ।पर मैया कृष्ण यहाँ कहाँ है?उसे तो में मथुरा में छोड़कर आरहा हूँ । मैया को क्रोध आने लगा तो उद्धव ने अपना परिचय दिया “मैया में उद्धव ,कृष्ण का मित्र मथुरा से आया हूँ।

मुझे कृष्ण ने भेजा है ।
क्या करूँ उद्धव ;में जानती हूँ मेरो लाल अब यहाँ नही हे पर मुझे लगता हे की आज भी लाला पालने में सोया है ।में रोज लाला कू ताजा माखन निकाल के रखती हूँ ।रोज उसके लिए गरम पानी रखती हूँ ।स्नान के लिए ।क्योंकि मुझे लगता हे की लाला गाय चरा के आएगा ।मुझे लगता हे की वो सुबह माखन मांगेगा ।अब तुम बताओ क्या करूँ ।

ओहो!उद्धव के ज्ञान की सीढ़ी खिसक गयी ।इतना प्रेम !मैया सोचती है आज भी कृष्ण यहीं है।


पर मैया जो मथुरा में निवास करता है यहाँ कैसे हो सकता है ?अरे उद्धव तुम क्या सोचते हो “कृष्ण एक देशीय हे ?वो कहाँ नही है? अरे जो कण कण में व्याप्त है वो यहाँ कैसे नही हो सकता है । बृज का अर्थ है व्याप्ति और कन्हैया भी व्याप्त है ।
उद्धव के नेत्र खुले रह गए ।बोलना बन्द हो गया ।
ज्ञान को भूलकर माता की प्रेममयी रसभरी वाणी में बहते चले गए उद्धव ।कब रात्रि हो गयी पता ही नही चला।माता लाला की बाल लीलाओ का वर्णन करने लगीं ।उनके नटखट और प्रेममयी लीलाओ को सुनकर उद्धव भुलगये अपने ज्ञान को ।

अपने हृदय में सदा भगवान को बिठा कर रखो घङी घङी देखते रहो भगवान दिल मे बैठे हैं जय श्री राम

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