भक्तराज हनुमान


हनुमानजी के जीवन में यह विशेषता है कि जो इनके सम्पर्क में आया, उसे इन्होने किसी-न-किसी प्रकार भगवान् की ‘सन्निधि में पहुँचा ही दिया | लंका में विभीषण इनसे मिले, इनके संसर्ग और आलाप से वे इतने प्रभावित हुए की भरी सभा में उन्होंने हनुमान का पक्ष लिया और अन्त में रावण को छोड़कर वे रामजी की शरण आ गये | उस समय जब सुग्रीव के विरोध करने पर भी भगवान् ने शरणागत रक्षा के प्रण की घोषणा की, तब इन्हें कितना आनन्द हुआ, यह कहा नहीं जा सकता | अंगद को साथ लेकर सबसे पहले हनुमान उमंग भरी छलांग मारकर विभीषण के पास चले गये और उन्हें भगवान् के पास ले आये | उनका एकमात्र काम है भगवान् की सेवा, भगवान् की शरण में जाने वालों की सहायता |

समुद्र-बन्धन हुआ, उसमे हनुमान कितने पहाड़ ले आये, उसकी गिनती नहीं की जा सकती | सेतु पूरा होते-होते भी ये उत्तर की सीमा से एक पहाड़ लिये आ रहे थे |इन्द्रप्रस्थ से कुछ दूर चलने के बाद उन्हें मालूम हुआ कि सेतु-बन्धन का कार्य पूरा हो गया | उन्होंने सोचा कि अब इस पहाड़ को ले चलकर क्या होगा, वहीँ रख दिया, परंतु वह पहाड़ भी साधारण पहाड़ नहीं था, उसकी आत्मा ने प्रकट होकर हनुमान से कहा – ‘भक्तराज ! मैंने कौन-सा अपराध किया है कि आपके करकमलों का स्पर्श प्राप्त करके भी मैं भगवान् की सेवा से वंचित हो रहा हूँ | मुझे यहाँ मत छोडो, वहां ले चलकर भगवान् के चरणों में रख दो, पृथ्वी पर स्थान न हो तो समुद्र में डुबा दो, भगवान् के काम आऊँ तो जीवित रहना अच्छा, नहीं तो इस जीवन से क्या लाभ ?

हनुमान ने कहा – ‘गिरिराज ! तुम वास्तव में गिरिराज हो | तुम्हारी यह अचल निष्ठा देखकर मेरे मन में आता है कि मैं तुम्हे ले चलूँ; परंतु भगवान् की ओर से घोषणा की जा चुकी है कि अब कोई पर्वत न लावे | मैं विवश हूँ | परंतु मैं तुम्हारे लिये भगवान् से प्रार्थना करूँगा, जैसा वे आज्ञा देंगे, वैसा मैं तुमसे कह दूँगा |’

हनुमान भगवान् के पास गये | उन्होंने उसकी सच्चाई और प्रार्थना भगवान् के सामने निवेदन की | भगवान् ने कहा – ‘वह पर्वत तो मेरा परम प्रेमपात्र है | उसका तुमने उद्धार किया है | जाकर उससे कह दो कि द्वापर में मै कृष्ण रूप में अवतार लेकर उसे अपने काम में लाऊंगा और सात दिनों तक अपनी ऊँगली पर रखकर व्रजजनों की रक्षा करूँगा | हनुमान ने व्रजभूमि में जाकर गोवर्धन से भगवान् का संदेश कहा | हनुमान की कृपा से गोवर्धन गिरि भगवान् का परम कृपा पात्र बन गया | भगवान् की नित्यलीला का परिकर हो गया |

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