पुजा मन की है आपका अन्तर्मन पुजा करना चाहता है तब उनके सामने मस्तक नवा देने मात्र से पुजा हो जाती है। मन मे भाव नहीं है तब कितने देवी देवता के समाने घंटी बजाऔ।घंटी बजा रहे आरती कर रहे हैं लेकिन मन मन्दिर में न होकर इधर-उधर डोल रहा है भगवान के सामने खङे होकर हाथ जोड़ते ही मांगना शुरू करते हैं वह पुजा नहीं है। आप घर का कार्य कर रहे हैं साथ भगवान् को नमन और वन्दन कर लेते हैं तब भगवान स्वीकार कर लेते हैं आप मन्दिर में एक तस्वीर रखो कई रखो इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता है। आपने मन्दिर में पुजा करके दिल के मन्दिर को सजाया है या नहीं ये बात सोचने की है। जय श्री राम
अनीता गर्ग
