गुरुवायुर मंदिर करीब 5000 साल पुराना है,

गुरुवायुर मंदिर करीब 5000 साल पुराना है, श्रीकृष्ण के बाल रुप की पूजा की जाती है यहां

जीवन मंत्र डेस्क. गुरुवायुर केरल में त्रिशूर जिले का एक गांव है। जो कि त्रिशूर नगर से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर है। यह स्थान भगवान कृष्ण के मंदिर की वजह से बहुत खास माना जाता है। गुरुवायूर केरल के लोकप्रिय तीर्थ स्थलों में से एक है। इस मंदिर के देवता भगवान गुरुवायुरप्पन हैं, जो बालगोपालन (कृष्ण भगवान का बालरूप) के रूप में हैं। आमतौर पर इस जगह को दक्षिण की द्वारका के नाम से भी पुकारा जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को केरल पहुंचे हैं और यहां उन्होंने गुरुवायुर मंदिर में पहुंचकर पूजा अर्चना की है। इस मंदिर में अपने वजन के बराबर चीजें भगवान को अर्पित करने की प्रथा है

गुरुवायुर का अर्थ और मूर्ति का इतिहास
गुरु का अर्थ है देवगुरु बृहस्पति, वायु का मतलब है भगवान वायुदेव और ऊर एक मलयालम शब्द है, जिसका अर्थ होता है भूमि। इसलिए इस शब्द का पूरा अर्थ है – जिस भूमि पर देवगुरु बृहस्पति ने वायु की सहायता से स्थापना की| गुरुवायुर नगर और भगवान गुरुवायुरप्पन के बारे में एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि कलयुग की शुरुआत में गुरु बृहस्पति और वायु देव को भगवान कृष्ण की एक मूर्ति मिली थी। मानव कल्याण के लिए वायु देव और गुरु बृहस्पति ने एक मंदिर में इसकी स्थापना की और इन दोनों के नाम पर ही भगवान का नाम गुरुवायुरप्पन और नगर का नाम गुरुवायुर पड़ा। मान्यता के अनुसार कलयुग से पहले द्वापर युग के दौरान यह मूर्ति श्रीकृष्ण के समय भी मौजूद थी।

कैसी दिखाई देती है मूर्ति
गुरुवायुरप्पन मंदिर में भगवान कृष्ण की चार हाथों वाली मूर्ति है। जिसमें भगवान ने एक हाथ में शंख, दूसरे में सुदर्शन चक्र और तीसरे हाथ में कमल पुष्प और चौथे हाथ में गदा धारण किया हुआ है। ये मूर्ति की पूजा भगवान कृष्ण के बाल रुप यानी बचपन के रुप में की जाती है। इस मंदिर में शानदार चित्रकारी की गयी है जो कृष्ण की बाल लीलाओ को प्रस्तुत करती हैं | इस मंदिर को भूलोक वैकुंठम के नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ है धरती पर वैकुण्ठ लोक |

मंदिर का इतिहास और खासियत
गुरुवायुर अपने मंदिर के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध है, जो कई शताब्दियों पुराना है और केरल में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। मान्यता के अनुसार इस मंदिर का निर्माण स्वंय विश्वकर्मा द्वारा किया गया था और मंदिर का निर्माण इस प्रकार हुआ कि सूर्य की प्रथम किरणें सीधे भगवान गुरुवायुर के चरणों पर गिरें। गुरुवायुरप्पन मंदिर को दक्षिण की द्वारिका के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर 5000 साल पुराना है और 1638 में इसके कुछ हिस्से का पुनर्निमाण किया गया था। भगवान श्रीकृष्ण बाल रुप में इस मंदिर में विराजमान हैं। एक अन्य पौराणिक मान्यता के मुताबिक, मंदिर का निर्माण देवगुरु बृहस्पति ने किया था।

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