
अन्दर की खोज
परमात्मा अन्दर बैठा है और हम उसे बाहर ढुढते है हम यह नहीं समझते हैं भक्ति प्रेम श्रद्धा शान्ति तृप्ति

परमात्मा अन्दर बैठा है और हम उसे बाहर ढुढते है हम यह नहीं समझते हैं भक्ति प्रेम श्रद्धा शान्ति तृप्ति

किराए के घर में अपना कुछ भी नहीं है। ये काया और माया यहीं की यहीं रह जाएगी। अ प्राणी

भगवान् देख तुमने मुझे बना कर पृथ्वी पर भेजा। तुमने मुझे एक ही दिल दिया, दिल में या तो संसार

सच्चे भक्त के दिल की एक ही पुकार होती है कि किस प्रकार मेरे स्वामी भगवान् नाथ का मै बन

अध्यात्मवाद पढने और लिखने की चीज नहीं है। तोते की तरह ग्रंथ और ज्ञान को रटने की चीज नहीं है।

मानव जीवन के दो पहलु है और नहीं। व्यक्ति है में जीवन जीता है वह सकरात्मक सोच और दृढ निश्चय

नित्य किरया कर्म ज्ञान योग भक्ति मार्ग का निचोड़ एवं प्रभु प्रेम का भाव है। हम कितनी ही बैठे बैठे

परमात्मा के नाम धन का सच्चा व्यापार करना है। दिल से नाम धन व्यापार करेगें तब दिन दुगना रात चौगुना

परम पिता परमात्मा का प्रेम ही ऐसा है कि संसार में छुपाए छुप नहीं सकता है। एक प्रभु प्रेमी अपने

मै भगवान को भजता हुं मैं भगवान की पुजा करता हूँ मे मै तत्व का समावेश है मै शरीर हूँ।