परमात्मा का चित से चिन्तन
परम पिता परमात्मा का चित से चिन्तन करते हुए आनंद मे वही डुब सकता है। जिसके दिल में परम पिता
परम पिता परमात्मा का चित से चिन्तन करते हुए आनंद मे वही डुब सकता है। जिसके दिल में परम पिता
हम भगवान को भजते रहते हैं तब मालिक इस मन को सुधार देते है। भगवान का सिमरण ऐसी पुंजी है
सच्चा सिमरण गृहस्थ धर्म में ही सम्भव है। जंहा कोई हमें पुजने वाला नहीं है।हम गृहस्थ धर्म में कितना ही
भगवान कृष्ण सब के साथ सौदेबाजी नहीं करते हैं। जो राम नाम भगवान को भजते हैं भगवान उस के साथ
जिसने दिल ही दिल में प्रभु प्राण नाथ से बात की है। अपने अन्तर्मन में लग्न का दिपक प्रज्वलित किया
दिल की तङफ जब बढ जाती है, तुम चुपके से आते हो, भगवान् से मिलन की तङफ में, बहाया हुआ
भक्त के दिल में प्रेम भाव में वात्सल्य भाव है। भक्त भगवान को ऐसे समेट लेना चाहता है कि जैसे
एक भक्त अपने अराध्य को जब वन्दन कर रहा है तब अपने आप को परमेशवर स्वामी भगवान् नाथ के योग्य
मै स्तुति करती हुई अन्तर्मन से चली जा रही हूं। मैंने भिक्षा की झोली थाम रखी है।मै स्वामी भगवान् नाथ
भक्त भगवान को अपना सर्वस्व समर्पित कर देता है। भगवान से मांगने की कोई इच्छा नहीं बस सम्पर्ण सम्पर्ण। भगवान