सर्वस्व समर्पित
भक्त भगवान को अपना सर्वस्व समर्पित कर देता है। भगवान से मांगने की कोई इच्छा नहीं बस सम्पर्ण सम्पर्ण। भगवान
भक्त भगवान को अपना सर्वस्व समर्पित कर देता है। भगवान से मांगने की कोई इच्छा नहीं बस सम्पर्ण सम्पर्ण। भगवान
मैं कई बार अपने मन से बात करते हुए कहती हूं कि अ मन देख तु चाहे कितना ही इधर
हम मन्दिर में भगवान् से प्रार्थना करने आते हैं। हमारी आन्तरिक प्रार्थना होती है कि हे प्रभु प्राण नाथ स्वामी
साधक परमात्मा से बात करते हुए कहता है कि हे परमात्मा जी ये हाड मास की काया है। मुझे इस
भक्त भगवान से इतनी गहराई से जुड़ जाता है कि उसे हर किरया को करते हुए ऎसा महसुस होने लगता