मीराबाई वृंदावन के मंदिर में
मीरा जब वृंदावन पहुंची तो वृंदावन में जो कृष्ण का सबसे प्रमुख मंदिर था, उसका जो पुजारी था, उसने तीस
मीरा जब वृंदावन पहुंची तो वृंदावन में जो कृष्ण का सबसे प्रमुख मंदिर था, उसका जो पुजारी था, उसने तीस
मेरी दृष्टि वक्ष पर टिकी और तनिक भी प्रतिकार न करते देखकर उन्होंने भी अपने वक्ष की ओर माथा झुकाया-
ऐसी बात सोच कर आप तनिक भी दु:खी न हों।हम सभी एक ही प्रभु की संतान हैं और उन्हें हमारे
‘ए बँदरिया दूर हो’- उन्होंने चिल्लाकर कहा।‘क्यों तुम्हारे बाप का राज है यहाँ?’- मैने कहा।‘जरा इधर आ, फिर बताऊँ कि
यह थोड़ी सी दक्षिणा है। इसे स्वीकार करने की कृपा करें।’- मीरा ने उन्हें भोजन कराकर तथा दक्षिणा देकर विदा
आगे आगे मुकुंद दास जी और प्रताप सिंह जी ने, राजसी वस्त्रों से सजे, कमरबंद में दो दो तलवारें कटारें
बड़ी प्यारी घटना है। जब मीरा वृंदावन के सबसे प्रतिष्ठित मंदिर में पहुंची तो उसे दरवाजे पर रोकने की कोशिश
गंगा दौड़कर कलम कागज ले आई।‘अभी की अभी’- मीरा ने हँसकर कहा।‘हाँ हुकुम, शुभ काम में देरी क्यों?’‘ला दे, पागल
उमड़ घुमड़ कर कारी बदरियाँ, बरस रही चहुँ ओर।अमुवाँ की डारी बोले कोयलिया, करे पपीहरा शोर॥चम्पा जूही बेला चमेली, गमक
‘दीवानजी तुमसे इतने रूष्ट क्यों हैं बीनणी? नित्य प्रति तुम्हें मारने के लिए कोईन कोई प्रयास करते ही रहते हैं।