श्रीमार्कण्डेयपुराणोक्त चण्डिकास्तोत्रम्
ध्यानम्।चामुण्डा प्रेतगा विकृता चाऽहि भूषणादंष्ट्रालि क्षीणदेहा च गर्ताक्षी कामरूपिणी।दिग्बाहुः क्षामकुक्षि मुशलं चक्रचामरेअङ्कुशं विभ्रती खड्गं दक्श्ःइणे चाथ वामके।। खेटं पाशं धनुर्दण्डं
ध्यानम्।चामुण्डा प्रेतगा विकृता चाऽहि भूषणादंष्ट्रालि क्षीणदेहा च गर्ताक्षी कामरूपिणी।दिग्बाहुः क्षामकुक्षि मुशलं चक्रचामरेअङ्कुशं विभ्रती खड्गं दक्श्ःइणे चाथ वामके।। खेटं पाशं धनुर्दण्डं
ॐ अस्या: वैष्ण्व्या: पराया: अजिताया: महाविद्ध्या: वामदेव-ब्रहस्पतमार्कणडेया ॠषयः। गाय्त्रुश्धिगानुश्ठुब्ब्रेहती छंदासी। लक्ष्मी नृसिंहो देवता। ॐ क्लीं श्रीं हृीं बीजं हुं शक्तिः।
लंकायां शांकरीदेवी कामाक्षी कांचिकापुरे।प्रद्युम्ने शृंखलादेवी चामुंडी क्रौंचपट्टणे।।१।। अलंपुरे जोगुलांबा श्रीशैले भ्रमरांबिका।कॊल्हापुरे महालक्ष्मी मुहुर्ये एकवीरा।।२।। उज्जयिन्यां महाकाली पीठिकायां पुरुहूतिका।ओढ्यायां गिरिजादेवी माणिक्या
(स्कन्द-पुराण से) कृष्ण कृष्णेति कृष्णेति यो मां स्मरति नित्यशः।जलं भित्वा यथा पद्मं नरकादुद्वराम्यहम्।। भगवान् विष्णु ने ब्रह्माजी से कहा- तुमने
स्थान – वृंदावन में यमुना किनारे वंशीवट क्षेत्र में है गोपीश्वरमहादेव मंदिर,.यह मंदिर पांच हजार वर्ष पुराना है. यहां भगवान
जय भगवति देवि नमो वरदे, जय पापविनाशिनि बहुफलदे । जय शुम्भ-निशुम्भ-कपालधरे, प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे ।।1।।जय चन्द्रदिवाकर नेत्रधरे, जय पावक
रुद्र रूप में भगवान शिव के साथ संरेखित करने के लिए रुद्र गायत्री मंत्र का अभ्यास किया जाता है। रुद्र
प्रथमं तु महादेवं द्वितीयं तु महेश्वरं।तृतीयं शङ्करं प्रोक्तं चतुर्थं वृषभध्वजम्।।१।। पञ्चमं कृत्तिवासं च षष्ठं कामङ्गनाशनं।सप्तमं देवदेवेशं श्रीकण्ठं चाष्टमं तथा।।२।। नवमं
ममतामयी माता के अनन्त रूप हैं और वही माता संसार में सर्वाधिक पूज्य हैं। “ब्रह्मवैवर्तपुराण” के गणेश खंड में कहा
॥ ॐ श्रीमहादेव्यै नमः ॥ सुप्रभात प्रातः स्मरामि शरदिन्दुकरोज्ज्वलाभां सद्रत्नवन्मकरकुण्डलहार-भूषाम् दिव्यायुधैर्जितसुनील-सहस्रहस्तां रक्तोत्पलाभचरणां भवतीं परेशाम् भावार्थः शरद् कालीन चन्द्रमा के समान