गुरु की सीख
पुराने समय में एक आश्रम में गुरु और शिष्य मूर्तियां बनाने का काम करते थे।.मूर्तियां बेचकर जो धन मिलता था,
पुराने समय में एक आश्रम में गुरु और शिष्य मूर्तियां बनाने का काम करते थे।.मूर्तियां बेचकर जो धन मिलता था,
कई लोग ये पूछते हैं कि श्रीराम ने धनुष उठा कर स्वयंवर की शर्त तो पूरी कर ही दी थी,
महायुद्ध समाप्त हो चुका था। जगत को त्रास देने वाला रावण अपने कुटुंब सहित नष्ट हो चुका था। कौशलाधीश राम
होंठो ने आपका ज़िक्र न किया परमेरी आंखे हर पल आपका पैग़ाम देती है।हम दुनियाँ’ से छुपायें कैसेहर शायरी आपका
अर्जुन कपिध्वज कहे जाते हैं। अर्जुन के झंडे पर हनुमान जी विराजते थे। अध्यात्मिक दृष्टि से विचार करने पर विदित
सुन्दर प्रसंग है जो पूर्वानुराग की अद्भुत और सौंदर्यमयी अभिव्यक्ति है। इधर गुरू की आज्ञा से श्री राम पुष्प वाटिका
‘ज्ञान के द्वारा जिनकी चिज्जन्ग्रंथी कट गयी है, ऐसे आत्माराम मुनिगण भी भगवान् की निष्काम भक्ति किया करते हैं, क्योंकि
मात पिता के घर में सबकुछ बच्चों का है मात पिता का जीवन है बच्चे। बच्चे घर पर आते हैं
यह निश्चित हो गया की प्राण प्रतिष्ठा के बाद निश्चित ही ठाकुर जी विग्रह में आ जाते हैं। एक दिन
आधुनिक दौर में मन की शान्ति से बढ़कर इस दुनिया में कोई भी बड़ी दौलत नहीं है । आज इस