
ज्ञानवापी मंदिर के बारे मे जानकारी:
पुराणों के अनुसार, ज्ञानवापी की उत्पत्ति तब हुई थी जब धरती पर गंगा नहीं थी और इंसान पानी के लिए
पुराणों के अनुसार, ज्ञानवापी की उत्पत्ति तब हुई थी जब धरती पर गंगा नहीं थी और इंसान पानी के लिए
एक बार की बात है**महाभारत के युद्ध के बाद**भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन द्वारिका गये* *पर इस बार रथ अर्जुन
*श्रीकृष्ण के जितने ही समीप हम पहुँचते हैं उतनी ही श्रेष्ठताएँ हमारे अन्तःकरण में बढ़ती हैं। उसी अनुपात से
नंदी महाराज की गवाही मैं शिलादिपुत्र नंदी हूँ, सैकड़ों वर्ष से शीत, आतप, बरखा सहने के बाद एक बार मैंने
*राम* शब्द में दो अर्थ व्यंजित हैं। सुखद होना और ठहर जाना। अपने मार्ग से भटका हुआ कोई क्लांत पथिक
हर समय कण्ठी माला लेकर बैठे रहते हो। कभी कुछ दो पैसे का इंतजाम करो लड़की के लिए लड़का नहीं
बरसने में रहने से राधे राधे केहने सेतेरी पल में मुक्ति हे जायेगी, वेदो का सार है राधे मोहन
. बरसाने के पास एक छोटा सा स्थान है मोर-कुटी। एक समय की बात है जब लीला करते हुए
आरती तेरी गाऊ, ओ केशव कुञ्ज बिहारीमैं नित नित शीश नवाऊ, ओ मोहन कृष्ण मुरारी। है तेरी छवि अनोखी, ऐसी
पहली बात तो यह समझ लें, वह आदमी व्यर्थ जी रहा है जिस के पास ढाई घंटा भी स्वयं के