आनन्द के सागर रघुराई
आनंद के सागर रघुराई, हैं असीम कण-कण में व्यापक, जो जाना सो मुक्ति पाई। हो कितना अंधकार पुराना, पर प्रकाश
आनंद के सागर रघुराई, हैं असीम कण-कण में व्यापक, जो जाना सो मुक्ति पाई। हो कितना अंधकार पुराना, पर प्रकाश
एक बार देवी सत्यभामा ने देवी रुक्मणि से पूछा कि दीदी! क्या आपको मालूम है, कि श्री कृष्ण जी बार
एक गाँव के बाहरी हिस्से में एक वृद्ध साधु बाबा छोटी से कुटिया बना कर रहते थे। वह ठाकुर जी
प्रिय तुम रामचरितमानस जरूर पढ़ना ।।……जीवन के अनुबंधों की,तिलांजलि संबंधों की,टूटे मन के तारो की,फिर से नई कड़ी गढ़ना,प्रिय तुम
मेघनाद से युद्ध करते हुए जब लक्ष्मण जी को शक्ति लग जाती है और श्री हनुमानजी उनके लिये संजीवनी का
सब सखियों ने मिलकर किशोरी जी और कान्हा के लिए सुंदर सी फूलों की सेज तैयार की हुई है और
ठाकुर जी के प्रेमी भक्त ‘श्री जयकृष्ण दास बाबा जी’ के जीवन का एक सुंदर प्रसंग उल्टी रीति == अगर
चरणों में आकर तेरे बस जाऊं दुर कही ना जाऊं।जिंदगी भर को बस तेरे नयनों में कैद हो जाऊं॥ढूंढ सके
जब रात को नींद खुले तब उस प्यारे के सपनो में खो जाओधीरे-धीरे प्रभु का प्रेम से नाम लो ।यह
इस शरीर से ही हम परम तत्व परमात्मा तक पहुंचते हैं। अध्यात्म के मार्ग में करके देखने पर स्वयं ही