मीरा चरित भाग- 57
मेड़तणीजी के महल से रोने कूटने की ध्वनि नहीं सुनाई दी तो महारानी ने दासी के द्वारा समाचार यह सोचकर
मेड़तणीजी के महल से रोने कूटने की ध्वनि नहीं सुनाई दी तो महारानी ने दासी के द्वारा समाचार यह सोचकर
गुरु की महिमा गोविन्द से भी अधिक बतायी गयी हैं, पर यह महिमा उस गुरु की है, जो शिष्य का
मीराबाई भक्तिकाल की एक ऐसी संत हैं, जिनका सब कुछ कृष्ण के लिए समर्पित था। यहां तक कि कृष्ण को
आप स्वयं देखते हैं कि वे नियम से अखाड़े में उतरते हैं, शस्त्राभ्यास करते हैं, आखेट पर जाते हैं, न्यायासन
भगवान शिव महादेव, मां काली के चरणों के नीचे भी मुस्कुराते हैं। भगवान शिव क्रोध और उग्रता के प्रतीक हैं
हिंडोले पर सुंदर सुकोमल बिछौना बिछाया।तब तक उनकी स्वामिनी अपने हृदयधन का हाथ थामें आ गईं। दोनों के विराजित होने
नाम-जप ही प्रधान साधन……. मन न लगे तो नाम-भगवान् से प्रार्थना करनी चाहिए ‘हे नाम-भगवान् ! तुम दया करो, तुम्हीं
गजाननाय गांगेय सहजाय सर्दात्मने।गौरी प्रियतनूजाय गणेषयास्तु मंगलम।।१।। नागयज्ञोपवीताय नतविध्न विनाशिने।नन्द्यादिगणनाथाय नायाकायास्तु मंगलम।।२।। इभवक्त्राय चंद्रादिवन्दिताय चिदात्मने।ईशान प्रेमपात्राय चेष्टादायास्तु मंगलम।।३।। सुमुखाय सुशुन्डाग्रोक्षिप्तामृत
सनातनधर्म में श्रीरामचरितमानस न केवल धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि इसके चरित्र और पात्र आदर्श व्यावहारिक जीवन के सूत्रों और संदेशों
।। श्रीहनुमते नमः ।। आधुनिक समय के सबसे जागृत, सिद्ध, चमत्कार घटित करने वाले एवं अपने भक्तों के दुःखों को