हरी हरी सुमिरन करौ
हरी हरी हरी हरी सुमिरन करौ हरी चरणान वृन्द उर धरौ हरे राम हरे राम रामा रामा हरे हरे हरे
हरी हरी हरी हरी सुमिरन करौ हरी चरणान वृन्द उर धरौ हरे राम हरे राम रामा रामा हरे हरे हरे
श्याम तेरी बंसी बजने लगी, सारी सारी रात मैं तो जगने लगी, बंसी बजा के मेरा मन कर लियाँ, तेरी
मेरी श्याम से हो गयी लडाई मनाने बरसाने आयो उस छलियाँ से रोसा रसाई मनाने बरसाने आयो जाऊ नहाने नदिया
श्री भीष्म उवाच – इति मतिरुपकल्पिता वितृष्णा भगवति सात्वत पुङ्गवे विभूम्नि । स्वसुखमुपगते क्वचिद्विहर्तुं प्रकृतिमुपेयुषि यद्भवप्रवाहः ॥१॥ त्रिभुवनकमनं तमालवर्णं रविकर
कान्हा जी मोहें प्रीत की रीत सिखा दो, हिंय धरि हरी दरसन नित पाऊँ, मोरे मन बीच विरह जगा दो,
कृष्ण मुरारी खोलो किवाड़ी भक्त खड़े तेरे द्वार दर्शन पाने खातिर हमको सब कुछ है स्वीकार श्याम तू दर्शन देदे
जो भजते मुझे भाव से मैं उनका ही बन जाता, उनका ही बन जाता मैं तो उनका ही बन जाता
मेरी अखियो में बस जाओ श्याम दर्शन मैं कर दी रवा तुझे ध्याऊ सुबह और श्याम सुमिरन मैं कर दी
जो करुणाकर तुम्हारा बृज में फिर अवतार हो जाये, तो भक्तो का चमन उजड़ा हुआ फुलजार हो जाये,
सावरिया धोखेबाज बिरज में लूट गई रे सावरिया लूट गई रे सावरिया में तो लूट गई रे सावरिया सावरिया………… सावरिया