
उलझी लट् सुलझाओ रे मोहन
उलझी लट् सुलझाओ रे मोहन मेरे हाथों में मेहंदी लगी… नींद में गिर गई कानो की बाली ज़रा ढूंढ उसे

उलझी लट् सुलझाओ रे मोहन मेरे हाथों में मेहंदी लगी… नींद में गिर गई कानो की बाली ज़रा ढूंढ उसे

प्रभु सुनो विनती हमारी, छोड़ के सारी दुनिया को अब आये शरण तुम्हारी, प्रभु सुनो विनती हमारी भव सागर में

कितना प्यारा दरबार सजा है कितना सौणा दरबार सजा है जी करे देखता रहू तू है दाता तू है दानी

दौलत शोरथ ना ही नाम चाहिए, श्याम तेरी चौकठ पे काम चाहिए, नौकर वफादार बन के रहुगा जो कुछ भी

तेरी मुरली की ये धुन श्याम जब सुनी मैंने पनघट पे, नि चुनी छूट गई हाथो से श्याम मैं दौड़ी

सुन ले कृष्ण कन्हियाँ तेरी बंसी के सुर जब बजईया मन नाचे ता ता थाईया, गाऊ जब मैं तेरे

जगत के रंग क्या देखूं तेरा दीदार काफी है। क्यों भटकूँ गैरों के दर पे तेरा दरबार काफी है॥ नहीं

वधाई है यशोदा वधाई हो वधाई यशोदा तुम्हे लख लख वधाई हो वधाई लाल युग युग जिए नन्द रानी चाँद

छोड़ा क्यों बेसहारा रे तूने हम को ओ कन्हिया मुरली वाले ओ बंसी वाले, खुद तो मथुरा चले गए तुम

मेरे श्याम की कृपा नज़र जो मुझपे चल गई सच कह रही हूँ लाटरी मेरी निकल गई थैंक यू थैंक