
भगवान की लीला
श्रीकृष्ण भगवान द्वारका में रानीसत्यभामा के साथ सिंहासन पर विराजमान थे,निकट ही गरुड़ और सुदर्शन चक्र भी बैठे हुए थे।तीनों
श्रीकृष्ण भगवान द्वारका में रानीसत्यभामा के साथ सिंहासन पर विराजमान थे,निकट ही गरुड़ और सुदर्शन चक्र भी बैठे हुए थे।तीनों
भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में ही सच्चा सुख है। हरि नाम दीपक बिना मन में अंधेरा है। जीवन का
दशहरे से शरद पूर्णिमा तक चन्द्रमा की चाँदनी में विशेष हितकारी किरणें होती हैं। इनमें विशेष रस होते हैं। इन
प्रेम कोई भावना नहीं है, हर व्यक्त्ति के परे प्रेम है। व्यक्त्तित्व बदलता है। शरीर, मन और व्यवहार हमेशा बदलते
हम में से अधिकांश लोग अच्छा दिखने की कोशिश करते हैं, और दिखाने के लिए इतनी अच्छी और ज्ञान भरी
अपने मन को हम कैसे स्वच्छ रखे प्रशन उठता है। मन एक मिनट भी ठहरता नही है। मन बहुत चलायमान
परमात्मा मेरे है, और मैं परमात्मा का हूँ।यह रिश्ता कायम करने और इसे बनाए रखने के लिए पूर्ण समर्पण की
सत्संग, या आध्यात्मिक लोगों की संगति, व्यक्ति के अंतिम उद्देश्य को प्राप्त करने का एकमात्र साधन है। भक्ति एक सिद्धांत
विनयपत्रिका में भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदासजी भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं। हे हरि
मीरा ठीक कहती है: न मैं जानूं आरती-वंदन, न पूजा की रीत।, जिनके जीवन में प्रेम नहीं है। वे ही