श्री गोपीनाथ जी का प्राकट्य
शरद ऋतु की पूर्णिमा की रात, भगवान श्री कृष्ण, अपने सबसे प्रिय भक्तों, वृंदावन की गोपियों के साथ अपने सबसे
शरद ऋतु की पूर्णिमा की रात, भगवान श्री कृष्ण, अपने सबसे प्रिय भक्तों, वृंदावन की गोपियों के साथ अपने सबसे
भगवान के नाम की महिमा का प्रचार बहुत से संतों ने तथा वेद, पुराण और रामायण तक ने किया है।
एक सच्चा भक्त जिसके दिल मे भगवान समा जाते हैं। वह सब कथा और पाठ को छोड़ देता है जिस
जब भगवान के मन्दिर में हम जाते हैं तो वहाँ ‘चार’ ही काम विशेष रूप से होते हैं— एक आरती
–हर हर गंगे! जय जय गंगे पतितपावनी गंगा को देव नदी कहा जाता है क्योंकि शास्त्रों के अनुसार गंगा स्वर्ग
*रावण रथी विरथ रघुवीरा, देखि विभीषण भयहु अधीरा**अधिक प्रीति मन भा सन्देहा, देखि विभीषण भयहु अधीरा**अधिक प्रीति मन
भगवान की भक्ति के अनेकों मार्ग है।किंतु हम जैसे गृहस्थ लोगो के लिए सबसे सहज मार्ग नाम जप या नाम
एक भक्त का भगवान के चरण स्पर्श का भाव प्रकट करती हूँ।भक्त भगवान के चरणों में समर्पित है। कभी शिश
भक्त जितना भगवान के नजदीक होगा भक्त भगवान को बार बार मन ही मन प्रणाम करता है। भक्त का प्रणाम
सभी मानते है कि कोई है जो इस जीवन को चला रहा है।फिर भी हम उसका शुक्रिया करना,उसका नाम लेना