कार्तिक माहात्म्य अध्याय – 13
दोनो ओर से गदाओं, बाणों और शूलों आदि का भीषण प्रहार हुआ। दैत्यों के तीक्ष्ण प्रहारों से व्याकुल
दोनो ओर से गदाओं, बाणों और शूलों आदि का भीषण प्रहार हुआ। दैत्यों के तीक्ष्ण प्रहारों से व्याकुल
सुख भोगे जो कथा, सुने सहित विश्वास। बारहवाँ अध्याय लिखे, ‘कमल’ यह दास।। नारद जी ने कहा – तब इन्द्रादिक
राजा पृथु बोले – हे ऋषिश्रेष्ठ नारद जी! आपको प्रणाम है। कृपया अब यह बताने की कृपा कीजिए कि
जिसको जप कर जीव, हो भवसागर से पार। *ग्यारहवें अध्याय का, ‘कमल’ करे विस्तार।। एक बार सागर पुत्र जलन्धर अपनी
जो पढ़े सुनेगा इसे, वह होगा भव से पार। श्री हरि कृपा से लिख रहा, नवम अध्याय का सार।। राजा
मंगलकारी श्री हरि का, सच्चा नाम ध्याऊं।नारद जी ने कहा – हे राजन! कार्तिक मास में व्रत करने वालों के
जिसके सुनने से सब पाप नाश हो जाये। कार्तिक माहात्म्य का, लिखूं छठा अध्याय।। नारद जी बोले – जब दो
माता शारदा की कृपा, लिखूं भाव अनमोल। कार्तिक माहात्म का कहूं, चौथा अध्याय खोल।। नारदजी ने कहा – ऎसा कहकर
श्रीकृष्ण भगवान के चरणों में शीश झुकाओ।श्रद्धा भाव से पूजो हरि, मनवांछित फल पाओ।। सत्यभामा ने कहा – हे प्रभो!
प्रभु मुझे सहारा है तेरा, जग के पालनहार।कार्तिक मास माहात्म की, कथा करूँ विस्तार।।राजा पृथु बोले – हे नारद जी!